आदिवासी भगोरिया उत्सव क्या है

दोस्तों जैसा की हम जानते है भारत विविधताओं की धरती है, जहाँ हर संस्कृति और समाज की अपनी अपनी परंपराएँ हैं। 

इन्हीं परंपराओं में से एक है आदिवासी लोगों की परम्परा भगोरिया उत्सव (adivasi bhagoria mela) , जिसे विशेष रूप से मध्यप्रदेश, गुजरात और महाराष्ट्र के आदिवासी समाज द्वारा बड़े हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। 

यह उत्सव सिर्फ सामान की खरीदी बिक्री या मेल-जोल का अवसर ही नहीं बल्कि प्रेम, अपनत्व और सामाजिक स्वीकृति का प्रतीक भी है।

आदिवासी भगोरिया उत्सव का इतिहास

भगोरिया उत्सव की उत्पत्ति काफी प्राचीन मानी जाती है। कहा जाता है कि यह उत्सव होली से पहले आदिवासी समुदाय द्वारा मनाया जाता है और इसका संबंध भगवान शिव और पार्वती से भी जोड़ा जाता है। 

“भगोरिया” शब्द की उत्पत्ति “भगोर” नामक गाँव से मानी जाती है, जहाँ यह मेले के रूप में शुरू हुआ था। 

धीरे-धीरे यह परंपरा पूरे क्षेत्र में फैल गई और अब इसे एक भव्य सांस्कृतिक पर्व माना जाता है।

ऐसी मान्यता है कि भगोरिया उत्सव की शुरुआत राजा भोज के शासन काल के समय हुई थी। उस समय दो आदिवासी भील राजाओं कसुमार और बालून ने अपनी राजधानी भगोर में मेले का आयोजन करना शुरू किया। 

raja bhoj

भगोरिया हाटों का आयोजन फागुन मौसम में होली से पूर्व होता है। मुख्यतः पश्चिमी निमाड़, झाबुआ और आलीराजपुर, बड्वानी में यह उत्सव बड़ी धूम धाम से मनाया जाता है।

उत्सव मनाने का समय और स्थान

यह उत्सव मुख्य रूप से मध्यप्रदेश के झाबुआ, धार, बड़वानी, अलीराजपुर, खरगोन जिलों और महाराष्ट्र के नजदीकी आदिवासी इलाकों में मनाया जाता है। 

adivasi bhagoria mela girl photo

भगोरिया हर साल फाल्गुन मास में, होली से लगभग एक सप्ताह पहले आयोजित होता है। इस समय पूरा इलाका उत्सवमय माहौल से भर जाता है और मेले की चहल-पहल चारों तरफ नज़र आती है।

भगोरिया का सांस्कृतिक महत्व

आदिवासी समाज में भगोरिया सिर्फ एक उत्सव नहीं बल्कि उनकी संस्कृति का उत्सव है। यह अपने परिवारों और चाहने वालो का मेल-जोल का अवसर देता है और साथ ही विवाह जैसी परंपराओं को सहज बनाता है। 

माना जाता है युवा-युवतियाँ इस दौरान एक-दूसरे को चुनते हैं और समाज भी इसे खुले मन से स्वीकार करता है। यह उत्सव आदिवासी जीवन की खुली सोच, प्रेम और समानता की भावना को दर्शाता है।

लेकिन आज कल की नए दौर में लड़का लड़की के मेले में भाग जाने की प्रथा कम हो गई है इसकी सबसे बढ़ी वजह है भारत का एजुकेशन सिस्टम 

भगोरिया उत्सव की मुख्य विशेषताएँ क्या है ?

आदिवासी भगोरिया उत्सव रंग-बिरंगे नज़ारों से भरा होता है।

  • पुरुष और महिलाएँ पारंपरिक वेशभूषा और गहनों में सजे-धजे दिखाई देते हैं।
  • लोकनृत्य और ढोल-मांदल की थाप पर गाए जाने वाले गीत माहौल को और भी रोमांचित एवं जीवंत बना देते हैं।
  • मेले में झूले, पारंपरिक पकवान, खिलौने और हस्तशिल्प की दुकानों से रौनक बढ़ जाती है।
  • आदिवासी समाज अपनी कला और संस्कृति को खुले दिल से प्रस्तुत करता है।
  • भगोरिया में पुरष और महिलाओं द्वारा ताड़ी का आनंद लिया जाता है।

भगोरिया में विवाह परंपरा

भगोरियाउत्सव की सबसे अनोखी विशेषता है पसंद की शादी की परंपरा। यहाँ जवान युवा-युवतियाँ एक-दूसरे को चुनते हैं और अक्सर भगाकर विवाह की परंपरा निभाते हैं। 

इसी कारण इसका नाम “भगोरिया” पड़ा भगो का मतलब (भागना) रिया का मतलब (साथ में) । यदि लड़की-लड़के को परिवार की स्वीकृति मिल जाती है, तो समाज इसे मान्यता दे देता है। यह परंपरा आदिवासी समाज की स्वतंत्र सोच और प्रेम के सम्मान को दर्शाती है।

Boy and girl adivasi bhagoria mela gulala

माना जाता है जब लड़की पेहली बार किसी लड़के को पसंद करती है तो वो उसे गुलाल लगाती है अगर लड़के ने भी उसके गालो पर गुलाल लगाया तो दोनों में प्यार की शुरुआत हो जाती है 

वही दूसरी और अगर लड़के ने लड़की को पान खरदी कर खिलाया तो लड़की उसे स्वीकार कर लेती है नहीं तो मना कर देती है ऐसा जरुरी नहीं के दोनों भाग कर शादी करे कई बार दोनों के परिवार वालो के स्वीकृति के बाद ही शादी होती है 

आधुनिक समय में भगोरिया

आज के आधुनिक समय के साथ भगोरिया उत्सव में काफी बदलाव आए हैं। पहले यह केवल आदिवासी समाज तक सीमित था, लेकिन अब यह एक बड़ा सांस्कृतिक और पर्यटन आकर्षण बन चुका है। भगोरिया मेला देखने के लिए विदेश से लोग भारत आते है 

सरकार भी इसे बढ़ावा देने के लिए विशेष आयोजन करती है। हालाँकि, आधुनिकता के साथ-साथ इस उत्सव की मौलिकता और परंपराओं को बनाए रखना भी एक बड़ी चुनौती है।

भगोरिया से जुड़ी लोककथाएँ और रोचक तथ्य

भगोरिया से कई लोककथाएँ जुड़ी हुई हैं। लोकगीतों में इस उत्सव की झलक साफ मिलती है। कहा जाता है कि इस मेले में न केवल प्रेम की कहानियाँ जन्म लेती हैं बल्कि परिवारों और समाज के बीच रिश्ते भी मजबूत होते हैं। 

adivasi bhagoria mela dhole dancing girl

एक रोचक तथ्य यह है कि कई विदेशी पर्यटक भी अब भगोरिया उत्सव का आनंद लेने आते हैं और आदिवासी संस्कृति से जुड़ते हैं। विदेशी लोगो का भी मानना है की आदिवासी ही नेचर के सही मायने में रख रखाव करते है 

हा वे अपना जीवन व्यतीत करने के लिए पेड़ो को काटते है लेकिन उससे दो गुना पेड़ भी लगाते है 

अंत में 

भगोरिया उत्सव आदिवासी समाज की पुराणी परंपरा और संस्कृति का प्रतीक है। यह सिर्फ एक मेला नहीं बल्कि प्रेम, अपनापन और सामाजिक मेल-जोल का पर्व है। 

इस उत्सव से हमें यह सीख मिलती है कि भारतीय संस्कृति की जड़ें कितनी गहरी और विविध हैं। आज के समय में भी भगोरिया अपनी खास पहचान बनाए हुए है और आने वाली पीढ़ियों के लिए एक अमूल्य धरोहर है।

FAQ

भगोरिया उत्सव का नाम भगोरिया क्यों पड़ा

आदिवासी भगोरिया उत्सव का नाम इसलिए पड़ा क्योंकि इस मेले में लड़का-लड़की अपनी पसंद से एक-दूसरे को चुनते हैं और समाज के सामने अपने रिश्ते को स्वीकार करते हैं।

यही खास प्रथा इस आदिवासी उत्सव (Aadivasi Utsav) को अनोखा बनाती है।

भगोरिया मेले (Bhagoria Mela) में कौन से पारंपरिक व्यंजन मिलते हैं

इस मेले में आदिवासी समाज के लोग परंपरागत खानपान का स्वाद लेते हैं। यहाँ महुआ से बने पेय, ज्वार की रोटी और देसी पकवान काफी लोकप्रिय हैं।

साथ ही, मेले में मिठाइयाँ और स्थानीय स्नैक्स भी खूब बिकते हैं।

क्या भगोरिया उत्सव (Bhagoria Utsav) सिर्फ आदिवासी समाज (Aadivasi Samaj) तक सीमित है

शुरुआत में यह उत्सव आदिवासी समाज तक सीमित था, लेकिन अब यह एक सांस्कृतिक पर्व बन चुका है। आज इसमें स्थानीय लोग, पर्यटक और विदेशी मेहमान भी बड़ी संख्या में शामिल होते हैं।

इस कारण इसे सांस्कृतिक पर्यटन का हिस्सा भी माना जाता है।

क्या भगोरिया मेले (Bhagoria Mela) में धार्मिक अनुष्ठान होते हैं

हाँ, कई जगहों पर मेले की शुरुआत देवताओं की पूजा और पारंपरिक अनुष्ठानों से होती है।

इसके बाद ढोल-मांदल की थाप पर नृत्य और गीतों के साथ उत्सव की शुरुआत होती है।

सरकार भगोरिया उत्सव (Bhagoria Festival) को बढ़ावा देने के लिए क्या करती है

मध्यप्रदेश और महाराष्ट्र सरकार तथा पर्यटन विभाग इस उत्सव को बढ़ावा देने के लिए कई योजनाएँ चलाते हैं। मेले में सांस्कृतिक कार्यक्रम, सुरक्षा व्यवस्था और मीडिया कवरेज के माध्यम से इस आदिवासी भगोरिया उत्सव (Aadivasi Bhagoria Utsav) को राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाई जाती है।

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