जोहर दोस्तों आज हम जानेंगे आदिवासी पावरा (Adivasi Pawara Samaj) समुदाय के बारे में जोकि भारत के महाराष्ट्र , मध्य प्रदेश और गुजरात के खानदेशी क्षेत्र में रहते है | जिनकी अपनी अपनी उपजाति (pawara surname caste) होती है जैसे की, बारेला (Barela Pawara), भिलाला (Bhilala pawra), भील (Bheel Pawara), राठवा (Radhawa Pawara) इत्यादि
पावरा या पावरा समाज का इतिहास शुरू से सतपुड़ा प्रदेश से जुड़ा है | भारत के आदिवासी समाज से संबंध रखने वाला यह समाज सतपुड़ा प्रदेश में पाए जाने वाले भीलों की एक उपजाति है जिन्हें कई बार पावरा भील, पावरा नायक और पावरा कोलिस भी कहा जाता है।
पावरा एक भारतीय आदिवासी समाज (pawara caste) की उपजाति हैं। सबसे अधिक पावरा लोग भारत के महाराष्ट्र राज्य (pawara caste in maharashtra) के नंदुरबार जिले में पाए जाते हैं जोकी ST प्रतिशत की दृस्टि से महाराष्ट्र में नंदुरबार सबसे बड़ा जिला है
साथ ही धुळे, जळगाव, और बुलढाणा जिले और मध्यप्रदेश के कई जिलो मे पावरा समाज अपनी परंपरा के साथ बसा हुआ है। वे सतपुड़ा पर्वतमाला के जंगलों में और उसके निकटवर्तीं क्षेत्र में रहते हैं। मुख्यतः ग्रामीण क्षेत्र के पावरा लोग अमावस्या के दिन अम्बा (आम का पेड़), काकड़ (ककड़ी) और पीपल जैसे वृक्षों की पूजा करते हैं। वे अधिकतर आर्थिक रूप से खेती पर निर्भर रहते हैं। वे पशुधन भी पालते हैं और बरसातों में मछलियाँ भी पकड़ते हैं।
पावरा समाज के आदिवासी लोग तीन मुख्य त्योहार मनाते हैं
1) इंद्रजा / इंदल
जिसमे प्रकृति, कुलदेवी ओर अपने पूर्वज की गांव के पुजारा (पुजारी) द्वारा पूजा की जाती है तथा साथ में ढोल और मांदल के ताल पर शेष परिजन नाचते है। यह हर पांच वर्षो के अंतराल में मनाया जाता है।
2) दिवावी (दिवाली)
शीत काल में मनाया जाने वाला प्रमुख त्यौहार है, जिसमें खेत से निकाली गयी फसल ओर बैल और गाय ( पशु संपत्ति ) की पूजा की जाती है।
3) शिमगा / होली
होली में पावरा समाज विभिन्न तरह के नित्य (pawara tribal dance) करते है जिसमे अलग अलग प्रकार की वेशभूषा धारण कर चहरे पर मुखोटे धारण कर के ढोल और मांदल के ताल पर नृत्य करते है। पावरा एवं अन्य भील उपजाती के लोगों के लिये होली एक महत्वपूर्ण उत्सव है।
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Origins and History of the Pawara Sub-Tribe (पावरा समाज का इतिहास)
पावरा समाज का इतिहास के समय के साथ बदलता हुआ देखा जा सकता है। सतपुड़ा पहाड़ियों और उसके पास में रहने वाले आदिवासी हैं और यह क्षेत्र तीन राज्यों महाराष्ट्र , मध्य प्रदेश, गुजरात में विस्तृत होने के कारण यहां पर मराठी, हिंदी और गुजराती तीन भाषाओं का प्रभाव उनकी बोली में देखने को मिलता है।
Pawara Cultural Traditions and Customs (पावरा सांस्कृतिक परंपराएँ और रीति-रिवाज)
सतपुड़ा क्षेत्र , नर्मदा के तटवर्ती क्षेत्र और विंद्य के कुछ क्षेत्र में अपनी संस्कृति और परमपरा को संजोये हुए पाए जाते है। पावरा जनजाति के लोग एवरेज कद के होते हे, थोड़े गहरे रंग, शर्मीले स्वभाव और शांत स्वभाव के होते हैं और सबके साथ विनम्रता के साथ बात करते है । ये काफी मिलनसार होते हे वे किसी भी क्षेत्र के अनुसार ढल जाते है।
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Pawara Traditional Weddings and Customs (पावरा पारंपरिक शादियाँ और रीति-रिवाज)
पावरा समुदाय अपनी पारंपरिक रीती के अनुसार विवाह समारोहों का मनाता है जो यह सामान्यतः तीन दिनों तक चलते हैं।
पावारा समाज शुरु से ही मातृसत्तात्मक रहा है, इसलिए महिलाओं को सम्मान का स्थान प्राप्त है। इसी के चलते शादी में लड़केवालो की तरफ़ से लड़की के परिवार को गांव के सम्माननीय बुजुर्गो द्वारा निर्धारीत धनराशि दहेज (देजो) दी जाती है। राशि का निर्णय सभी ग्रामवासी के आर्थिक स्थिति को समझते हुए निर्धारीत की जाती है जिससे किसी भी पक्ष पर आर्थिक संकट का सामना न करना पड़े।
वधू पक्ष इससे अधिक रकम नहीं ले सकते और ना ही वर पक्ष इससे ज्यादा दे सकता है । इस कारण ही पावरा जनजाति में दहेज बलि या भ्रूणहत्या जैसी कोई चीज नहीं है।
शादियों के दौरान महू के फूलों से बनी शराब का उपयोग औपचारीक रूप से पूजा के लिए और पारंपरिक उत्सवों के दौरान अतिथिगण के स्वागत और सम्मान लिए पेय के रूप में किया जाता है। पारम्परिक रीतिरिवाज में यह अपने पूर्वजो को भी भेट करते है दो बून्द जमीन पर डालकर उन्हें याद करते है |
Pawara Language and Communication (पावरा भाषा और संचार माध्यम )
भाषा संचार का माध्यम है वैसे ही पावरा समाज में अपने क्षेत्र के अनुसार भाषाओ का भी विभाजान हुआ है इस समाज के लोग पावरी और भीली भाषा बोलते हैं, जो स्थानीय और क्षेत्र के आसपास बोली जाने वाली अन्य भाषाओं से प्रभावित है जिसमे मराठी, हिंदी और गुजरती भाषाओ का संगम देखने को मिलता है ।
यहा पर क्षेत्र के आधार पर लोगो को वर्गीकृत किया गया जैसे नंदुरबार जिले के उत्तर की और नर्मदा के तट पर रहने वाले लोगों को निमाड़िया कहा जाता है, जबकि अक्रानी (धडगांव) तहसील के पहाड़ी और जंगल के इलाकों में रहने वाले लोगों को भारला कहा जाता है। इस बीच, जो लोग धुले जिले के शिरपुर तहसील के समतल क्षेत्र में रहते हैं उन्हें मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र की सीमा पर डाफला, निमड़िया, राठवा, बारेला और पालिया कहा जाता है। उनकी बोलियों और पहनावे में कुछ विविधता देखने को मिलती है।
Economic Activities and Livelihoods of Pawara (आर्थिक गतिविधियाँ और आजीविका)
आदिवासी समाज शुरु से ही प्रकृति से जुड़ा हुआ होने के कारन पावरा ट्राइब (Pawara Tribe) के लोग खेती और प्रकृतिक संसाधनों पर अपना गुजर बसर करते है।
पावरा आदिवासी प्राचीन काल से सतपुड़ा पहाड़ियों में रह रहे हैं और अभी भी नंदुरबार जिले में अपना जीवन यापन कर रहे हैं। आज भी पावरा समाज (pawara samaj) के कई परिवार पारम्परिक खेती या प्राक्रृतिक संसाधनों जैसे की लहसुन, सीताफल और आम की खेती कर अपना जीवन जी रहे हैं।