जोहर दोस्तों आज हम जानेंगे आदिवासी कुलदेवी देव मोगरा माता (dev mogra mata in hindi) जिसे आदिवासी माँ अन्नपूर्णा / अन्न की देवी भी कहते है और महाराष्ट्र राज्य के नंदुरबार और धडगाव क्षेत्र में बसे आदिवासी लोग इन्हें यहां मोगी माता (yaha mogi mata) भी कहते है |
हम जानेंगे देव मोगरा माता का जीवन काल एवं इतिहास (dev mogra mata history) के बारे में संपूर्ण जानकारी आपको इस पोस्ट के माध्यम से साँझा करेंगे। तो चलिए जानते जानते है देव मोगरा माता और उनके मंदिर के बारेमे (dev mogra mata mandir)
इस ब्लॉग में वर्णीत संपूर्ण जानकारी सर्वेक्षण के दौरान मंदिर प्रबधकों, स्थानीय लोगो, तथा यहाँ मोगी माता के अनुयायियों के द्वारा मिलकर बताई गयी जानकारी को आपके के समक्ष इस ब्लॉग के माद्यम से आपके सामने प्रस्तुत कर रहा हु।
याहा मोगी माता का मंदिर
(Yaha mogi mata mandir)
आदिवासी कुलदेवी याहा मोगी माता (yaha mogi mata mandir) का पवित्र तीर्थस्थल सतपुड़ा पर्वत के उत्तर के क्षेत्र में गुजरात के नर्मदा जिले के सागबारा तहसील में आता है।
जहाँ पर माता का भव्य मंदिर है और वहा पर प्रति वर्ष (मार्च-अप्रैल माह में) महाशिवरात्रि के पावन पर्व पर भव्य मेले का आयोजन किया जाता है, जो माता के भक्तो के द्वारा हर्ष और उल्हास के साथ मनाया जाता है।
याहा मोगी माता का इतिहास (yaha mogi mata history) माता के प्रसिद्ध मंदिर के साथ गहरे रूप से जुड़ा हुआ है। इसके अनुसार मान्यता है की माता देवमोगरा एक प्राचीन समय की देवी है, जिन्होंने अपने अनुयायियों को शक्ति, सुरक्षा और अन्न प्रदान करती है।
याहा मोगी माता की कहानिया और महिमा कई लोक कथाओ और स्थानीय ऐतिहासिक परम्पराओ में प्रस्तुत की जाती है। इन कथाओ के माध्यम से देव मोगरा माता की महत्वपूर्ण भूमिका उनके भक्तो के जीवन में अत्याध्मिक और सामाजिक परिवर्तन के संचालन में देखी जाती है।
आदिवासी कुलदेवी माता देव मोगरा का इतिहास (dev mogra mata history)
स्थानीय इतिहास : देव मोगरा माता का इतिहास आज से लगभग पंद्रह सौ वर्ष पहले का बताया जाता है। वर्तमान का क्षेत्र अक्कलकुवा तहसील (जि. नंदूरबार, महाराष्ट्र) पहले के पहाड़ी क्षेत्र में आदिवासी राजाओं का साम्राज्य हुआ करता था।
उसे ‘दाब’ नाम से जाना जाता था। आज की तारीख में भी वह परिसर ‘हेलोदाब’ नाम से जाना जाता है और इस क्षेत्र में ‘दाब’ नामक एक गांव आज भी है वे राजा ‘दाब्ले’ (दाब के राजा) नाम से पहचाने जाते थे।
दाब साम्राज्य के परिसर में स्थित सभी आदिवासी जनजातियों के मुखियाओं को सम्मलित करके उन्होंने इस क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण साम्राज्य स्थापित किया, उसे ‘दाब मंडल’ कहलाया जाने लगा।
आदिवासी जनजातियों के प्रमुखों के अधिकार में जो मुख्य भाग रहा है, उसे ‘पाटी’ कहलता था। तथा इन्हे दिशा के आधार पर रखा गया जो इस प्रकार वर्गीकृत थे – दाब के उत्तर की दिशा स्थित कबीलों को ‘नोयरा पाटी’, पूर्व में की दिशा स्थित कबीलों को ‘निंबाडी पाटी’ पश्चिम में की दिशा स्थित कबीलों को ‘आंबुडा पाटी’/‘दुबळा पाटी’ तथा दक्षिण में की दिशा स्थित कबीलों को ‘देह पाटी’/‘मावचार पाटी’ कहा जाता था।
इन सभी को एकत्रित कर के दाब मंडल राज्य गठन किया गया था। इस दाब मंडल में नोयरा, निंबाडी, आंबुडा (वसावा), दुबळा, देहवाव्या, मावची जैसी प्रमुख आदिवासी जनजातियों के लोग बसे थे। इन कबीलों के लिए प्रत्येक जाति का एक मुखिया बनाया गया था।
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आदिवासी कुलदेवी माता देव मोगरा के जीवन से जुड़े हुए प्रमुख पात्र
पश्चिमी दाबमंडल में स्थित क्षेत्र आंबुडापाटी के प्रमुख राजा तारहामल हुआ करते थे। उनके राज्य को ‘घाणीखुंटका राज्य’ के नाम से भी जाता था। राजा तारहामल और रानी उमरावाणू के एक ही पुत्र थे, जिनका नाम राजापांठा था। कहा जाता हे की वह बहुत बलवान और अस्त्र-शस्त्र में निपुर्ण था। उनकी माँ को तंत्र-मंत्र विद्याओं की ज्ञानी माना जाता था।
अपने पुत्र को उन्होंने आत्मरक्षा और जनकल्याण के लिए इस विद्या की शिक्षा दी। विद्या ग्रहण के पश्च्यात राजापांठा ने अपने व्दयालु, स्नेही और उदारता के लिए मशहूर हो गए। वह अपने राज्य के गरीबो और असहाय लोगों की हमेशा निस्वार्थ रूप से सहायता किया करते थे।
राजापांठा की नौ रानियां थीं। जिनमे प्रमुख पटरानी देवरुपन थी, जो कि राजा कोठार्याकी सुपुत्री थी। बाद में याहा मोगी भी उसकी एक पटरानी बनी जो दाब के राजा बाहागोर्या और रानी देवगोंदर की मुहबोली पुत्री थीं । बाहागोर्या और देवगोंदर का एक पुत्र भी था, जिसका मूल नाम विना देव (विना ठाकोर) था। किन्तु यह लोक कथाओ में इनका वर्णन गांडा ठाकोर के नाम जाता है जो की देव मोगरा माता के भाई थे ।
राजापांठा और गांडा ठाकोर दोनों आत्मीय मित्र थे साथ ही वो देव मोगरा के पति थे। उनकी शक्तिशाली और बुद्धिमानी के कारण, दाबके राजा ने उन्हें संपूर्ण राज्य की देखरेख की जिम्मेदारी सौंपी थी। किन्तु वे कभी दाब के राजा नहीं बने, लेकिन उन्होंने सदैव उस जिम्मेदारी को निष्ठा, ईमानदारी और जनकल्याण में अपना योगदान निभाया। इस बात का वर्णन याहामोगी की कथा में भी वर्णित है।
देव मोगरा माता के बालपन की कहानी
( dev mogra mata baalpan ki kahani )
याहा मोगी के बारे में कई लोक कथाएं प्रसिद्ध हैं, जिनमें से एक कथा में यह उल्लेख है कि, याहा मोगी दाब मंडल के मावचार पाटी के एक धनी आदिवासी किसान की सात पुत्रियों में से ये चौथी पुत्री थी, और उनकी सुंदरता का काफी प्रशंसा किया जाता था।
लोग उसे उनकी बड़ी बहनों की बजाय विवाह के हेतु प्रस्ताव रखते थे। याहा मोगी के कारण उनका विवाह नहीं हो रहा था, जिससे उनकी बड़ी बहनें उससे अनबन होती रहती थी। देव मोगरा माता ने एक दिन अचानक अपने माता-पिता के घर को छोड़कर बीहड़ जंगलों की ओर निकल गयी, यह सोचते हुए कि अब उनकी बड़ी बहनों का विवाह में कोई बाधा उत्तपन नहीं होगी।
उसी दौरान क्षेत्र में भयंकर अकाल पड़ा था। वर्षा न होने के कारण हर जगह सूखा पड़ गया। लोगों को अनाज मिलना मुश्किल हो गया। लोग जंगल के कंद-मूल खाकर अपना जीवन यापन करने लगे थे। कई लोग समूह बनाकर कंद-मूल की खोज में जंगलों में भटका करते थे।
एक दिन याहा मोगी एक समूह के साथ दर-दर भटकते हुए, विभिन्न मुसीबतों का सामना करते हुए सतपुड़ा के पहाड़ों में आ पहुंची। यह अकाल बारह वर्षों चला था। इसलिए जंगल के कंदमूल भी नष्ट हो गए थे। समूह के कई लोग भूखमरी और बीमारियों के कारण मरने लगे थे।
याहामोगी दाब के जंगलों में एक पेड़ के नीचे भूखी और मरणासन्न हालत में पड़ी थी, तब शिकार के लिए आए दाब के राजा को वहाँ पाया गया। वे उसे घर ले आए।
देव मोगरा माता को पाण्डुरी कहलाने की कहानी (dev mogra mata ki kahani in hindi)
राजा बाहागोर्या और रानी देवगोंदर माता देव मोगरा को अपनी स्वयं की पुत्री समान उनका लालन-पालन किया। वे माता को वहा से वापस ना भेज दे इसलिए उन्होने अपने अतीत की सच्चाई को राजा को नहीं बताई। जंगल में पाई गई अनाथ लड़की का लालन-पालन करते समय, उसका नाम ‘पोहली पांढर’ रखा गया। वह ‘पोहली पांढर’ या ‘याहा पांढर’ के नाम से प्रसिद्ध हुई।
राजापांठा और देव मोगरा माता का विवाह (dev mogra mata ki shadi)
जब याहा मोगी बालिग हुई, तब राजापांठा ने उनसे विवाह का प्रस्ताव रखा। परंतु, राजापांठा की पहले ही आठ रानियाँ थीं, फिर भी राजापांठा केवल उनके सौंदर्य सें मोहित होकर विवाह करना चाहता था। इस बात को जानकर, याहा मोगी ने उसे घरजमाई के रूप में दाबके राजा के यहाँ रहने की शर्त रखी। राजापांठा ने इस शर्त को स्वीकार कर लिया किन्तु उसने केवल सात वर्ष तक घरजमाई के रूप में रहने की शर्त रखी।
सात वर्ष के सेवा-विवाह की अवधि समाप्त हो जाने पर राजापांठा ने अपने पिता के राज्य में जाने का निश्चय किया। परंतु घरमें आठ रानियां होते हुए दाबके राजा के यहां घर-जमाई के रुप में रहने और अपने ही घर में कलेश उत्पन का कारण न जाए इस कारण राजा तारहामल ने संतप्त होकर राजापांठा और याहा मोगी को घर में प्रवेश देने से मना कर दिया। जिसके कारण दाब छोडने पर दोनों कई कष्ट सहते हुए जंगलों में भटकते रहे और बाद में एक व्यक्ति से जमीन खरीद कर देव मोगरा नामक गॉंव बसाकर वहां रहने लगे। जहां पर प्रतिवर्ष महाशिवरात्रि के पावन पर्व पर मेला लगता है।
देव मोगरा माता की लोकमाता बनने की कहानी (devmogra mata ki lokmata banne ki kahani)
याहा मोगी के राजापांठा की पटरानी बन जाने के बावजुद उनके कष्ट कम नही हुए। राजापांठा की बाकी रानियां भी देव मोगरा गांव में रहने आ गई। सौतनों के कारण परिवार में कलेश पैदा हो गया। तब याहा मोगी ने पति से एक छोटी सी कुटिया बनवा कर वहां अकेली ही रहने लगी।
बारह वर्ष के भीषण अकाल के कारण दाब राज्य के लोगों की गाय-बैल और अन्य पशुधन मर गए। कई लोग अकाल के कारन भूखमरी से मारे गए, कई लोग अपना राज्य छोडकर पलायन कर गए।
दाब राज्य धीरे-धीरे उजाड होने लगा था। तब याहा मोगी बडी हिम्मत के साथ अपने परिजनो से गुजरी मास के गवळी राज्य में जाकर राजापांठा, विना ठाकोर, राजा वाघणमल तथा धामणमल की मदद से पर्याप्त अनाज एवं पशुधन दाब राज्य में ले आई।
दाबके भूखमरी से पीडित लोगों को अनाज एवं पशुधन उपलब्ध करवाया। अकाल के दिनों में याहा मोगी के इस उद्दात्त एवं मानवता से कार्य के लिए लोग उन्हे ‘ याहा’ (माँ/लोकमाता/अन्न की देवी) मानने लगे। यह कार्य तत्कालीन जरूरीयात के अनुसार बहुत बडा समाज सेवा या चमत्कार से कुछ कम नहीं था।
देव मोगरा माता का मंदिर निर्माण
(dev mogra mata ka mandir nirman)
याहा मोगी के मरणोपरांत उनके संम्मान में राजापांठा और विना ठाकोर उनकी सोने के मूर्ति बनवाकर मंदिर जैसी कुटीर में मिट्टी की कोठी में स्थापना की। यह एक ऐतिहासिक प्रमाण है की आदिवासी समाज सिर्फ प्रकृति पुजक न होकर मूर्ति पुजक भी है आज से हजारों साल पहले राजापांठा और विना ठाकुर ने याहा मोगी की मूर्ति बनाई। इस परिसर में उस समय कई बाहरी आक्रमण हुए। आक्रमणकारियों से मूर्ति को बचाएं रखने के लिए राजापांठा के वंशजोंने मूर्ति जमीन में छुपा दी।
सागबारा (जि. नर्मदा, गुजरात) रियासत के मूल पुरुष चंपाजी वसावा को यह मूर्ति सागबारा के घने जंगलों में प्राप्त हुई। उन्होने पारंपरिक पद्धतिसे मूर्तिकी स्थापना छोटी सी कुटीर मंदिर जैसा बनाके हिंदू महोत्सव महाशिवरात्रि के दिन प्राण प्रतिष्ठान किया गया ।
आगे प्रतिवर्ष पावन पर्व महाशिवरात्रि पर पारंपरिक पद्दतिसे पूजा-आराधना होने लगी और सागबारा के राजाओंने यहां प्रतिवर्ष हिंदू पर्व महाशिवरात्रि पर मेले का अयोजन करना निश्चित किया गया । तब से यह निरंतर आयोजित हो रहा है।
तो दोस्तों अभी तक हमने जाना आदिवासियों की देवी देव मोगरा माता के बारे कैसे उन्होंने गरीब और भुखमरी से लड़ रहे लोगो को खाना पानी दिलाया और उनका साथ दिया |
चलिए जानते है प्रचलित देव मोगरा माता रोडाली
(famous dev mogra mata rodali songs)
आज के इस आदुनिक समाज में यहाँ मोगी माता को आज भी याद किया जाता है, हमारे आदिवासी सिंगर जैसे की suresh thakare ने कई adivasi rodali devmogra mata songs बनाये है
सातपुड़ा वाली तु याहा देवमोगरा ये Devmogra Mata Aarti साल 2023 में काफी प्रचलित हुआ था जो आज भी सुनने को मिलता है
New Adivasi Rodali Song | Singer Masilal Vasave द्वारा गाया गया है जी गाने के म्यूजिक कंपोजर
Sunil Chouhan है |
आप Dev Mogra Mata Rodali online और Dev Mogra Mata Rodali को लोकल लैंग्वेज में इन गानो को jiosaavn पर सुन सकते है जिसे 2021 में प्रस्तुत किया था |
सतुपड़ा रेनारि हेला दाब Dev Mogra Mata Aarti
रोडली एक तरह का लोकल आदिवासी गेनर है जिसमे पुरषों द्वारा महिलाओं की आवाज में देव मोगरा माता के गाने गाए जाते है जिसमे लोकल वाद्य का इस्तेमाल किया जाता है वे लोग अक्सर एक गांव से दूसरे गांव जाकर गाने गाते है और अपने जीवन व्यतीत करते करते है| कुछ रोडली फेमस सिंगर के नाम vasan songadya rodali है |
चलिए जानते है कुछ अच्छे dev mogra mata Status और shayari
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देवमोगरा माता जयंती के बधाई सन्देश शायरी फोटो : हर साल महाशिव रात्रि के समय आदिवासी लोग पुरे गांव वालो के साथ तीर्थ स्थल पर जाते है | देव मोगरा माता जयंती के दिन माता की पूजा जाती है | देव मोगरा माता स्टेटस और dev mogra mata shayari का शानदार कलेक्शन लेकर आये है |
आप सभी आदिवासी भाइयो को देव मोगरा माता जयंती की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं! में आशा करता हु हमारे किसान भाइयों व देश के अन्न के भंडार सदैव भरे रखें।
माँ अन्नपूर्णा की कृपा ऐसे ही हम सभी पर अनवरत बरसती रहे। माँ अन्नपूर्णा जयंती की आप सभी को हार्दिक शुभकामनाएं।
याहा मोगी तू हेला दाब की माँ तू हम गरीब सेवक पर ऐसे ही सदा कृपा बनाये रखना |
याहा मोगी माता तूने अपने आपको भूखा रख कर अपने बेटो को खिलाया माँ तू सदा हमारे दिलो में रहेगी |
yaha mogi mata तूने ही मुझ गरीब किसान को शिखाया दोनों हातो से बाटना तुझे कोटि कोटि प्रमाण |
ना जात ना पात चाहे हो बालक या हो बुजुर्ग
देश का कोई भी नागरिक भूखा ना रहे आज
Yaha mogi mata की यही पुकार है की सबको मिले
एक-एक कण कण अनाज लाकर, उसनें सबको बाटा,
फिर भी उसका स्थान, बगल तुम्हारे नहीं ज़रा,
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