चमार कौन है जानिए रियल इतिहास

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चमार जाति का गौरवशाली इतिहास
(Chamar History in Hindi)

आज हिन्दू समाज अलग-अलग जातियों में बिखरता जा रहा है।ऊंची और नीची जाति का गंदा खेल लगातार बढ़ रहा है।

कुछ धर्म के ठेकेदार और राजनैतिक संगठनों से जुड़े नेता जातिवाद की राजनीति में हिंदुओं को बांट रहे हैं।

साल 2011 की जनगणना के अनुसार भारत में 20 करोड़ से अधिक लोग दलित समुदाय से ताल्लुक रखते हैं।

इसी समुदाय की एक प्रमुख जाति चमार (chamar kaun hai in hindi) भी है।

चमार शब्द का इतिहास

आज भले ही चमार शब्द (chamar shabdh) का प्रयोग किसी का अपमान करने के लिए किया जाता है।लेकिन असल में चमारों का अपना एक गौरवशाली इतिहास रहा है।

chamar jaati ka asali itihaas

विदेशी आक्रमणकारियों के खिलाफ आवाज उठाने से लेकर भारत की आजादी तक उनका योगदान महत्वपूर्ण रहा है।

आपको जानकर हैरानी होगी कि प्राचीन काल में चमार जाति का सीधा वर्णन कहीं भी नहीं मिलता।

तो फिर सवाल उठता है – चमार जाति कैसे अस्तित्व में आई?

क्यों सूर्यवंशी क्षत्रिय से ताल्लुक रखने वाले कुछ लोगों को आज चमार कहा जाता है?

आज के इस आर्टिकल में हम चमार जाति के बारे में विस्तार से बताएंगे।हमें पूरा विश्वास है कि इस पोस्ट को पढ़ने के बाद चमारों के प्रति आपकी सोच में जरूर बदलाव आएगा।

हिन्दू धर्म के अनुसार इस दुनिया की रचना ब्रह्मा जी ने की है।

प्रत्येक जीव ब्रह्मा जी द्वारा ही बनाया गया है और ईश्वर ने धरती के सभी मनुष्य को समान बनाया है।

लेकिन समय के साथ इंसान पंथवाद और जातिवाद के चक्कर में फंस गया।

धर्म और जाति के नाम पर समाज धीरे-धीरे विभाजित होता चला गया।

प्राचीन भारत में शुरुआत में किसी जाति के आधार पर भेदभाव नहीं होता था।

लोगों को उनके कर्म और काम के आधार पर पहचाना जाता था।

आज की तरह डॉक्टर, इंजीनियर, टीचर और वकील जैसे पेशे हैं, वैसे ही पहले कर्म के आधार पर चार वर्ण – ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र – तय किए गए।

महाभारत और रामायण काल में भी इंसानों का विभाजन अलग आधार पर होता था।

उस समय देव, दानव, राक्षस, यक्ष, किन्नर और गंधर्व जैसी श्रेणियां प्रचलित थीं।

यह व्यवस्था आज की जातिवाद प्रणाली से बिल्कुल भिन्न थी।

चमार जाति (chamar jaati) का कहीं स्पष्ट उल्लेख उस काल में नहीं मिलता।

पहली बार चमार शब्द का प्रयोग
(Use of Chamar Word First Time)

चमार शब्द की उत्पत्ति और पहला उल्लेख

ऐतिहासिक मान्यताओं के अनुसार चमार शब्द का उल्लेख मध्यकालीन भारत में अधिक प्रचलित हुआ।

कुछ इतिहासकार मानते हैं कि सिकंदर लोदी (15वीं–16वीं शताब्दी) के समय यह शब्द व्यापक रूप से इस्तेमाल होने लगा।

मध्यकालीन भारत और चर्मकार वंश का इतिहास

उस दौर में भारत में तुर्की और अफगान आक्रमणकारी प्रवेश कर रहे थे।

इसी समय पश्चिम बंगाल में चर्मकार वंश का प्रभावशाली शासन माना जाता है।

कहा जाता है कि यह वंश इक्ष्वाकु और सूर्यवंशी क्षत्रिय समुदाय से संबंध रखता था।

राजा चवरसेन और चर्मकार वंश की ऊँचाई

राजा चवरसेन के शासनकाल में चर्मकार वंश ने काफी ऊँचाई हासिल की।

बाद में इसी वंश से संत रविदास प्रकट हुए, जिन्होंने समाज में अपनी आध्यात्मिक शिक्षाओं से पहचान बनाई।

संत रविदास और चित्तौड़ का संबंध

चित्तौड़ के राजा राणा सांगा और उनकी पत्नी झाली रानी संत रविदास के बड़े अनुयायी थे।उन्होंने रविदास जी को चित्तौड़ बुलाकर राजगुरु बनने का आग्रह किया।

संत रविदास ने राजा का निवेदन स्वीकार किया और चित्तौड़गढ़ के महल में निवास करने लगे।

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उनके प्रवचनों और रचनाओं ने लोगों को गहराई से प्रभावित किया और बड़ी संख्या में लोग उनके शिष्य बन गए।

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कैसे सदना फकीर से बना रामदास
(Sadna Fakir to Ramdas Story in Hindi)

दिल्ली में सिकंदर लोधी का शासन चल रहा था। जब उसे संत रविदास जी के प्रभाव की खबर मिली, तो वह घबरा गया।

उसे डर था कि कहीं लोग इस्लाम की बजाय रविदास जी की शिक्षाओं से ज्यादा प्रभावित न हो जाएँ।

इस डर से सिकंदर ने अपने खास आदमी मुल्ला साधना फकीर को आदेश दिया।उसे चित्तौड़ जाकर रविदास जी से कहना था कि वे इस्लाम धर्म स्वीकार कर लें।

असल उद्देश्य था — रविदास जी को जबरन मुसलमान बनाना।

जब सदना फकीर की मुलाकात संत रविदास जी से हुई, तो उन्होंने एक प्रस्ताव रखा।

उन्होंने कहा: “हम शास्त्रार्थ करेंगे। यदि तुम मुझे पराजित कर दो, तो मैं इस्लाम स्वीकार कर लूँगा।

लेकिन यदि तुम हार गए, तो तुम्हें हिन्दू धर्म स्वीकार करना होगा।”

सदना फकीर को अपनी विद्वत्ता पर पूरा भरोसा था।

दोनों के बीच वाद-विवाद शुरू हुआ, लेकिन अंततः रविदास जी की जीत हुई।

उनके गहरे तर्कों से प्रभावित होकर सदना फकीर ने स्वेच्छा से हिन्दू धर्म स्वीकार कर लिया।

धर्म परिवर्तन के बाद उसका नाम रामदास रख दिया गया। रामदास और संत रविदास मिलकर हिन्दू धर्म और समानता का संदेश फैलाने लगे।

रविदास जी समाज के सभी लोगों को बराबरी की नजर से देखते थे।

उनकी शिक्षाएँ समानता और भाईचारे पर आधारित थीं।

लेकिन जब सिकंदर लोधी को खबर मिली कि सदना फकीर ने हिन्दू धर्म अपना लिया है, तो वह क्रोधित हो उठा।

उसने तुरंत आदेश दिया कि रविदास जी को बंदी बना लिया जाए।

संत रविदास जी को कैद करके कारागृह में डाल दिया गया।

वहाँ उन्हें चमड़े के जूते बनाने का काम सौंपा गया। यह सिकंदर लोधी के अत्याचारों की एक झलक थी,

क्योंकि वह लोगों को जबरन इस्लाम स्वीकार कराने पर तुला हुआ था।

रविदास जी की गिरफ्तारी से क्षत्रिय राजाओं और चर्मकार वंश के लोगों का खून खौल उठा।

कई राजाओं ने मिलकर दिल्ली को चारों ओर से घेर लिया।

आम जनता ने भी लोधी के खिलाफ आवाज बुलंद की।

बढ़ते विद्रोह को देखकर अंततः सिकंदर लोधी को झुकना पड़ा। उसने संत रविदास जी को रिहा कर दिया।

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क्षत्रिय से चमार कैसे बने
(Kshatriya to Chamaar History in Hindi)

संत रविदास के बाद का समय
(Sant Ravidas Death 1520 in Hindi)

साल 1520 ईस्वी में संत रविदास जी का देहांत हो गया।

उनके बाद एक बार फिर सिकंदर लोधी के अत्याचार बढ़ गए।

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चर्मकार वंश के लोगों ने इस्लाम धर्म स्वीकार करने से साफ इनकार कर दिया। इसके जवाब में सिकंदर लोधी ने इस वंश के हजारों लोगों को बंदी बना लिया।

उन्हें जबरन चमड़े के जूते और अन्य वस्तुएँ बनाने का काम सौंपा गया।

सिकंदर लोधी के अत्याचार और चर्मकार वंश
(Sikandar Lodhi and Chamar history)

विदेशी आक्रमणों से पहले भारत में चमड़े के जूते आम प्रयोग में नहीं थे।

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उस समय चमड़े को अशुद्ध माना जाता था और इसे सामाजिक रूप से नीचा काम समझा जाता था।

कहा जाता है कि सिकंदर लोधी ने इस काम में लगाए गए क्षत्रिय लोगों का अपमान करने के लिए

उन्हें “चमार” कहकर संबोधित करना शुरू कर दिया। यह शब्द धीरे-धीरे पूरे समुदाय की पहचान बन गया।

चमड़े का काम और सामाजिक अपमान
(Leather work caste history in India)

लेकिन क्षत्रिय हमेशा अपने उसूलों और स्वाभिमान के पक्के रहे। उन्होंने न सिकंदर के आगे झुकना स्वीकार किया और न ही इस्लाम धर्म अपनाया।

अपने स्वाभिमान की रक्षा करते हुए उन्होंने चमड़े का काम करना स्वीकार किया।

और तभी से यह समुदाय “चमार” नाम से जाना जाने लगा।

क्षत्रियों का स्वाभिमान और चमार नाम की उत्पत्ति (Kshatriya pride to Chamaar origin)

यह कहानी दिखाती है कि कैसे क्षत्रियों ने अपने धर्म और स्वाभिमान की रक्षा करते हुए समाज में समानता और आत्मसम्मान का संदेश कायम रखा।

“चमार” नाम उनके इतिहास और परंपरा का एक हिस्सा बन गया।

क्या जाटव और चमार एक ही हैं?
(Are Jatav and Chamar Same)

बहुत लोग पूछते हैं कि जाटव और चमार एक ही जाति हैं या अलग-अलग हैं।

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असल में यह सवाल इतिहास, सामाजिक परंपरा और आधुनिक पहचान से जुड़ा है।

जाटव और चमार – इतिहास का नजरिया
(History of Jatav and Chamar)

इतिहास में चमार शब्द का इस्तेमाल चमड़ा काम करने वाले लोगों के लिए किया गया। जैसे-जैसे समय बीता, यह समुदाय अपने गौरवशाली क्षत्रिय और चर्मकार वंश के इतिहास को भूलने लगा।

जाटव शब्द 20वीं सदी में सामाजिक सुधारकों और राजनीति में उभरने के दौरान लोकप्रिय हुआ।

जाटवों ने अपने आप को शिक्षित और समाज में बराबरी पाने वाले वर्ग के रूप में पहचान दी।

इस कारण जाटव अक्सर चमारों का ही एक उपसमूह माने जाते हैं।

सामाजिक और राजनीतिक पहचान 

राजस्थान, उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश में जाटव और चमार दोनों एक ही सामाजिक समूह के हिस्से हैं।

लेकिन राजनीति और आरक्षण नीति के कारण आज जाटव को अलग पहचान मिली है।

जाटवों ने दलित राजनीति में प्रमुख भूमिका निभाई, खासकर भीमराव अंबेडकर के सिद्धांतों के आधार पर।

क्या दोनों पूरी तरह एक ही हैं? 

इतिहास और सामाजिक संरचना के अनुसार:

चमार → प्राचीन चमड़ा काम करने वाले क्षत्रिय या चर्मकार वंश। जाटव → आधुनिक समय में चमारों का समान उपसमूह, जिन्होंने शिक्षा और राजनीतिक पहचान बनाई।

तो, जाटव और चमार पूरी तरह अलग नहीं हैं, बल्कि जाटव चमार जाति का आधुनिक पहचान वाला हिस्सा हैं।

अगर आप किसी से पूछें कि “क्या जाटव और चमार एक ही हैं?” तो उत्तर होगा: हाँ, इतिहास और समाजशास्त्र के हिसाब से जाटव चमारों का ही एक उपसमूह हैं,

लेकिन आधुनिक सामाजिक और राजनीतिक पहचान में दोनों में अंतर देखने को मिलता है।

चमार जाति के शिक्षा पर लगी रोक
(Chamar Education in India)

चमार जाति के लोगों की शिक्षा पर भी रोक लगा दी गई, ताकि उनकी आने वाली पीढ़ी अपने गौरवशाली इतिहास के बारे में न जान पाए।

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चमड़े का काम करने के कारण इन्हें क्षत्रिय समुदाय से अलग कर दिया गया।

सिकंदर लोधी ने इन्हें नीच और शूद्र जाति का दर्जा दिया।

कर्नल टॉड ने अपनी किताब The History of Rajasthan में चर्मकार वंश और चवरसेन के बारे में लिखा है।

जाति के इतिहास और गौरव के बारे में सबसे अच्छी व्याख्यान डॉ. विजय सोनकर शास्त्री जी की पुस्तक हिन्दू जन का जाति में मिलती है।

आज भी चमार जाति के लोग सम्पूर्ण भारत में पाए जाते हैं।

भारत के अलावा नेपाल और पाकिस्तान में भी यह समुदाय मौजूद है।

राजस्थान के कुछ हिस्सों में चमारों का रहन-सहन और बर्ताव राजपूतो जैसा नजर आता है। महिलाएं घूंघट रखती हैं, तो पुरुष स्वाभिमान के लिए मूँछ और पगड़ी रखते हैं।

आज किसी दलित या चमार जाति के व्यक्ति को अपमानजनक शब्दों से बुलाया जाए, तो वे गुस्सा हो जाते हैं।

यह उचित भी है, क्योंकि जब वे चमार नहीं हैं, तो किसी की गलत बातें बर्दाश्त करना उनकी जगह नहीं है।

चमार जाति की सूची
(Chamar Caste List in India)

चमार जाति (Chamar caste) भारत में एक प्रमुख अनुसूचित जाति है, जो मुख्य रूप से चमड़ा उद्योग से जुड़ी रही है। इस जाति में कई उपजातियाँ (subcastes) शामिल हैं, जो विभिन्न राज्यों और क्षेत्रों में पाई जाती हैं।

प्रमुख चमार उपजातियाँ (Major Chamar Subcastes)

  • जाटव (Jatav) – ये उत्तर भारत, विशेषकर उत्तर प्रदेश और राजस्थान में प्रमुख मिलती है।
  • रविदासिया (Ravidasiya) – गुरु रविदास के अनुयायी, पंजाब और अन्य क्षेत्रों में पायी जाती है।
  • मोची (Mochi) – चमड़े का काम करने वाले, मध्य प्रदेश, पश्चिम बंगाल और ओडिशा में बसे चमार को कहते है।
  • रेगर (Regar) – राजस्थान, पंजाब, हरियाणा और गुजरात में पाए जाते हैं।
  • धोर (Dhor) – महाराष्ट्र, कर्नाटक और गुजरात में स्थित है।
  • चौरसिया (Chaurasia) – बिहार, उत्तर प्रदेश और अन्य क्षेत्रों में।
  • माधिया (Madhya) – मध्य प्रदेश और अन्य क्षेत्रों में।

अन्य उपनाम (Other Surnames)

चमार जाति के लोग विभिन्न उपनामों (surnames) का उपयोग करते हैं, जैसे की अग्रवाल (Agrawal), बांगड़ (Bangar), भट्ट (Bhatt), चौहान (Chauhan), कुमावत (Kumawat), लोच (Loch), महेन्द्रा (Mahendra), राणा (Rana), सिंगला (Singla), ठाकुर (Thakur), यादव (Yadav) आदि।

राज्यवार उपजातियाँ (State-wise Subcastes)

  • उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh): जाटव, चौरसिया, कुमावत।
  • राजस्थान (Rajasthan): जाटव, रेगर, चौरसिया।
  • पंजाब (Punjab): रविदासिया, कुमावत, चौरसिया।
  • मध्य प्रदेश (Madhya Pradesh): मोची, कुमावत, चौरसिया।
  • गुजरात (Gujarat): रेगर, मोची, कुमावत।

स्रोत:

चमार लेनी क्या है? (Chamar Leni in Hindi)

चमार लेनी उस प्रथा को कहते हैं जिसमें चमार समुदाय अपने परिवार या समाज में आने वाले नए सदस्य या जातीय पहचान को नोट करता है।

यह शब्द मुख्य रूप से उत्तर भारत के ग्रामीण इलाकों में इस्तेमाल होता है।

“लेनी” का मतलब है रजिस्टर करना या स्वीकार करना।

किसी नए बच्चे, विवाह या नए सदस्य के लिए इसे लागू किया जाता है। यह परंपरा समुदाय की सामाजिक और सांस्कृतिक पहचान बनाए रखने में मदद करती है।

आज भी कई गांवों में यह प्रथा एक सामाजिक दस्तावेज़ और सम्मान का प्रतीक मानी जाती है।

चमार को काबू में कैसे करें?
(Chamar Ko Kabu Mein Kaise Karen)

कई लोग (Chamar Ko Kabu Mein Kaise Karen) यह खोजते हैं क्योंकि वे समाज में किसी मतभेद या व्यवहार के कारण तनाव महसूस करते हैं।

यह सवाल अक्सर व्यक्तिगत या पारिवारिक संघर्ष से जुड़ा होता है, न कि जाति को नीचा दिखाने के लिए।

सचाई यह है कि किसी भी समुदाय के साथ सहानुभूति और समझ से व्यवहार करना ही सही रास्ता है।

शांति, संवाद और सम्मान से ही रिश्तों और समस्याओं का समाधान संभव है।

यह ध्यान रखना जरूरी है कि जाति आधारित हिंसा या दबाव किसी भी समाज में स्वीकार्य नहीं है।

इसलिए इस तरह की समस्याओं का हल हमेशा सम्मानजनक और कानूनी तरीके से खोजें।

चमार रेजिमेंट (Chamar Regiment)

दूसरे विश्व युद्ध के दौरान अंग्रेजों ने एक चमार रेजीमेंट का गठन किया था। यह एक पैदल रेजीमेंट थी और आधिकारिक तौर पर 1 मार्च 1943 को बनाई गई थी।

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चमार रेजीमेंट की सेना ने कोहिमा की लड़ाई में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और उसके लिए रेजीमेंट को सम्मानित भी किया गया।

सन 1946 में रेजीमेंट को भंग कर दिया गया। समय-समय पर लोगों द्वारा इस रेजीमेंट के पुनः गठन की मांग की जाती रही है।

बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर ने अपना पूरा जीवन दलित और पिछड़ी जातियों को समाज में बराबरी दिलाने में समर्पित किया।

आज भी चमार और अन्य दलित समुदाय के लोग उन्हें अपना आदर्श मानते हैं।

जरा सोचिए कि यदि चर्मकार वंश के इन क्षत्रियों ने इस्लामिक आक्रमणकारियों के खिलाफ आवाज नहीं उठाई होती और इस्लाम धर्म स्वीकार कर लिया होता,

तो आज भारत में मुसलमानों की संख्या पचास करोड़ से भी अधिक हो सकती थी। यह बात नकारा नहीं जा सकता कि शायद हिन्दू से भी ज्यादा मुसलमान की आबादी देश में होती।

चमार के देवता और कुलदेवी कौन है?
(Chamar Devta aur Kuldevi)

चमार समाज अपने देवताओं और कुलदेवी की पूजा बड़े सम्मान से करता है।

  • प्रमुख देवता माने जाते हैं बाबा बाली और गड्डा देव।
  • कई क्षेत्रों में चमार समाज काली माता और भैरव बाबा की भी आराधना करता है।
  • उत्तर भारत में कुछ उपजातियाँ अपनी कुलदेवी के रूप में देवी चामुंडा और काली को पूजती हैं।

यह परंपराएँ अलग-अलग राज्यों और गोत्रों के अनुसार बदलती हैं। मतलब, चमार समाज के देवता और कुलदेवी एक नहीं बल्कि क्षेत्रीय परंपराओं के अनुसार विविध हैं।

भारत का सबसे अमीर चमार कौन है?
(Bharat ka Sabse Amir Chamar)

भारत के सबसे अमीर चमार व्यक्तियों में से राजेश सरैया (Rajesh Saraiya) का नाम लिया जाता है।

  • वे भारत के पहले दलित अरबपति माने जाते हैं।
  • राजेश सरैया Steel Mont Trading Ltd. के सीईओ और संस्थापक हैं, जो एक बहुराष्ट्रीय कंपनी है।
  • वे दलित इंडियन चेंबर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री (DICCI) से भी जुड़े हुए हैं।
  • अपनी मेहनत और उद्यमिता से उन्होंने समाज के लिए एक प्रेरणादायक मिसाल कायम की है।

10 Unknown Facts about Chamar Caste

  1. इतिहास में योद्धा वंश – चमार जाति की जड़ें चर्मकार वंश और क्षत्रिय परंपरा से जुड़ी मानी जाती हैं, जिन्हें चमड़े के काम के कारण बाद में नीचा दिखाने की कोशिश की गई।
  2. रविदास जी का योगदान – संत रविदास, जिन्हें विश्वभर में संत परंपरा का महान संत माना जाता है, इसी समुदाय से थे और उन्होंने समानता का संदेश दिया।
  3. चमार उपजातियां – इस समुदाय में 150 से अधिक उपजातियां पाई जाती हैं, जैसे जाटव, रैगर, मोची, रामदासी आदि।
  4. भूगोल में फैलाव – भारत के अलावा नेपाल, पाकिस्तान और बांग्लादेश में भी चमार समुदाय की बड़ी संख्या रहती है।
  5. राजनीति में योगदान – भारत की कई बड़ी राजनीतिक हस्तियां और मंत्री इस जाति से रहे हैं, जिन्होंने सामाजिक न्याय की लड़ाई में अहम भूमिका निभाई।
  6. चमार रेजीमेंट – द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान ब्रिटिश शासन ने 1943 में “चमार रेजिमेंट” बनाई थी, जिसने कोहिमा की लड़ाई में बहादुरी दिखाई।
  7. कला और संगीत – इस समुदाय से कई प्रसिद्ध लोकगायक और कलाकार भी जुड़े रहे हैं, जो भक्ति संगीत और लोककला को आगे बढ़ाते हैं।
  8. सबसे अमीर दलित उद्योगपति – राजेश सरैया को भारत का पहला दलित अरबपति माना जाता है, जो स्टील मॉन ट्रेडिंग लिमिटेड के सीईओ हैं।
  9. जनसंख्या – भारत में चमार समुदाय की जनसंख्या लगभग 2.8 करोड़ से अधिक है, जो अनुसूचित जातियों का बड़ा हिस्सा है।
  10. कानूनी सुरक्षा – अनुसूचित जाति एवं जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम 1989 और संविधान का अनुच्छेद 17 चमार समुदाय सहित सभी दलित जातियों को जातिगत अपमान और भेदभाव से कानूनी सुरक्षा प्रदान करता है।

आख़िरी में 

हिन्दू धर्म और समाज की रक्षा में चमार जाति (chamar jaati) का योगदान कभी भुलाया नहीं जा सकता।

दोस्तों, उम्मीद है कि आपको यह पोस्ट पसंद आई होगी। साथ ही अब आप चमार जाति के गौरवशाली इतिहास को भी बेहतर समझ पाए होंगे।

आज के बाद यकीनन आपके नजरिए में बदलाव आएगा और आप चमारों को उनके इतिहास और योगदान के आधार पर देखेंगे।

आज लोग सेकुलर होने के नाम पर ईद पर सवैया खा सकते हैं, तो फिर एक चमार या दलित के घर का पानी पीने में क्या गलत है?

ईश्वर ने प्रत्येक मनुष्य को समान बनाया है, और हमें उसकी रचना में भेदभाव नहीं करना चाहिए। यदि आपको यह आर्टिकल अच्छी लगी हो, तो इसे शेयर और कमेंट करना न भूलें।

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FAQs

चमार क्रिकेटर कौन हैं? (Chamar Cricketer)

लगभग 140 साल पहले भारत में कई क्रिकेट खिलाड़ी हुए करते थे। उनमें से पहला चमार खिलाड़ी था पालवंकर बालू, जिन्हें लोग ‘स्पिनर का जादूगर’ कहते थे। डॉ. भीमराव आंबेडकर उन्हें अपना नायक मानते थे। अन्य चमार क्रिकेटरों में सीके नायडू, विजय मर्चेंट, विजय हजारे और वीनू मांकड़ शामिल हैं।

उधम सिंह चमार कौन हैं? (Udham Singh Chamar)

कुछ जगह यह भ्रामक जानकारी फैली कि शहीद उधम सिंह चमार जाति से थे। ऐतिहासिक तथ्य बताते हैं कि वे काम्बोज जाति से संबंध रखते थे। उनका जन्म 26 दिसंबर 1899 को पंजाब के संगरूर जिले के सुनाम कस्बे में हुआ था। ऐसे महापुरुषों की जाति से अधिक उनके बलिदान और देशभक्ति को महत्व देना चाहिए।

बॉलीवुड में चमार कौन हैं? (Chamar in Bollywood)

कुछ बॉलीवुड हस्तियाँ चमार समुदाय से जुड़ी हैं। जैसे सीमा बिसवास, राखी सावंत, खविंदर सिंह, कैलाश खैर, गौरी शिंदे, सोनू निगम और अजय देवगन।

चमार कितने प्रकार के होते हैं?
(Types of Chamar Subcastes)

चमार समुदाय में लगभग 150 से अधिक उपजातियाँ पाई जाती हैं। इनमें से कई की सामाजिक पंचायतें और संगठन भी हैं।

भारत में चमार की जनसंख्या कितनी है?
(Chamar Population in India)

वर्तमान में चमार जाति की जनसंख्या लगभग 2.8 करोड़ है, जो भारत की कुल आबादी का करीब 12% है।

चमार कौन सी जाति के हैं? (Chamar Caste Category)

इतिहास और सामाजिक संरचना के अनुसार, चमार लोग छत्र जाति (Kshatriya) से संबंध रखते हैं।

चमार किस वंश के हैं? (Chamar Lineage)

चमार उत्पल वंश से संबंध रखते हैं। उनके शासक भी इसी वंश से जुड़े थे।

चमार का अर्थ क्या है? (Meaning of Chamar)

“चमार” का मतलब है चमड़े के जूते, मोट आदि बनाने वाला पेशा करने वाले लोग।

चमार और जाटव में अंतर क्या है?
(Difference Between Chamar and Jatav)

चमार → सबसे पुरानी जाति, चमड़े का काम करने वाली मुख्य जाति। जाटव → चमार की एक उपजाति, जो मुख्य रूप से उत्तर प्रदेश में पाई जाती है।

सभी जाटव चमार हैं, लेकिन सभी चमार जाटव नहीं। जाटव शब्द 1 दिसंबर 1942 को पहली बार सरकारी दस्तावेज़ में इस्तेमाल हुआ।

चमार को काबू कैसे करें?
(How to Respect and Deal with Chamar)

किसी भी व्यक्ति के साथ सम्मान और सहानुभूति से व्यवहार करना ही सही तरीका है।

  • चमार भाई का सम्मान और आदर करें।
  • महिलाओं का हमेशा सम्मान करें।
  • धैर्य और शांत स्वभाव के साथ बात करें।
  • झगड़ा या बहस से बचें।
  • दोस्ती का हाथ बढ़ाएँ और मीठी बातें करें।
  • किसी को धोखा या झूठ न बोलें।

चमार जाती के गोत्र (Gotra of Chamar Caste)

इस चमार जाति में कई गोत्र हैं। कुछ प्रमुख गोत्र हैं: पाटिदया, पड़ियार, रमंडवार, रेसवाल, राताजिया, राईकवार, रांगोठा।

चमार रेजिमेंट क्या है? (Chamar Regiment in Hindi)

स्थापना: 1 मार्च 1943 चमार रेजिमेंट एक पैदल सेना थी, जिसने कोहिमा की लड़ाई में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। रेजिमेंट को सम्मानित किया गया, लेकिन 1946 में इसे भंग कर दिया गया।

Content References:

https://en.wikipedia.org/wiki/Chamar
https://www.wikiwand.com/en/articles/chamar
Ravidas
The Scheduled Castes and the Scheduled Tribes (Prevention of Atrocities) Act, 1989

प्रशासनिक दृष्टिकोण से कानून की जानकारी — भारत सरकार (Social Justice Ministry) की आधिकारिक साइट पर उपलब्ध PDF

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