दोस्तों आज हम जानेंगे मध्य प्रदेश में आदिवासी त्योहार (bhagoria festival in madhya pradesh) जो की आदिवासी संस्कृति और परंपरा का जशन मानते है | मध्य प्रदेश, जिसे भारत के दिल के रूप में अक्सर जाना जाता है, जो न केवल अपने प्राचीन इतिहास और दिलचस्प पर्यटन स्थल और दृश्यों के लिए जाना जाता है |
बल्कि अपनी जीवंत आदिवासी संस्कृति के लिए भी। इस राज्य में कई आदिवासी समुदाय हैं, प्रत्येक आदिवासी समाज के अपनी अनूठी परंपराएँ, रीति-रिवाज और त्योहार हैं। ये आदिवासी त्योहार मध्य प्रदेश की सांस्कृतिक विविधता का एक अभिन्न हिस्सा है, जो इसके विभिन्न जनजातीय जनसंख्या की समृद्ध धरोहर और परंपराओं का अध्ययन करता है। आज हम जानेगे bhagoria festival in hindi के बारेमे
मध्य प्रदेश में सबसे प्रमुख आदिवासी त्योहारों में से एक है भगोरिया हाट त्योहार (bhagoria famous festival of madhya pradesh)। इस त्योहार को प्रमुखत भिल और भिलाला जाति के लोगों द्वारा मनाया जाता है और इसे राज्य के विभिन्न हिस्सों में आयोजित किया जाता है, जैसे कि झाबुआ, अलीराजपुर और बड़वानी जिले।
भगोरिया हाट एक रंगीन और जीवंत उत्सव है, जिसमें पारंपरिक नृत्य, संगीत प्रस्तुतियाँ और जीवंत बाजार होते हैं, जहां समुदाय सामान खरीदने और बेचने के लिए एकत्र होते हैं। हालांकि, इस त्योहार का मुख्य आकर्षण युवा पुरुष और महिलाओं का अपने चयनित संगीतानुवादियों के साथ भागकर शादी करने की अद्वितीय प्रथा है, जो जनजातीय संघर्ष और विवाह की प्राचीन प्रथा को दर्शाती है।
भगोरिया हाट का मतलब क्या है ?
bhagoria festival of love भगोरिया जिसका मतलब भागना होता है और हाट का मतलब मार्केट होता है जहा पर आदिवासी समुदाय के लोग खरीदारी या सामान की बिक्री करते है | भगोरिया एक तरह का हाट है जहां पर सभी आसपास के गॉव वाले आदिवासी मिलते हैं। अपनने व्यापार-व्यवसाय के साथ ख़ुशी मनाते हैं। यह जीवन और प्रेम का आदिवासी उत्सव है जो संगीत, नृत्य और रंगों के साथ मनाया जाता है। जिसमे आदिवासी ढोल, बासुरी एवं मांदल बजाते और नाचते है |
भगोरिया हाट (bhagoria festival in madhya pradesh) यह त्योहार हर साल मार्च महीने में मनाया जाता है और यह वसंत के आगमन का प्रतीक है। इसे पारंपरिक रीति-रिवाजों, लोक नृत्यों और सांस्कृतिक प्रस्तुतियों के माध्यम से चिह्नित किया जाता है, जो जनजातीय समुदायों की सांस्कृतिक पहचान और परंपराओं को दर्शाते हैं।
दित्वारिया त्योहार क्या है ? (Dheetwariya festival)
आदिवासी किसान खेतों में नई फसल बुवाई के बाद पारंपरिक दित्वारिया त्योहार मनाते हैं जिसे कई आदिवासी समाज के लोग नवाय भी कहते है जिसका मतलब नया, नूतन होता है जो उनकी परंपरा को दर्शाता है तथा अपने प्रकृति से जुड़ा हुआ दर्शाता है। त्योहारों की शुरुवात से आदिवासी समाज में दित्वारिया से होकर होली के अंत तक चलती है।
दित्वारिया त्योहार परंपरा अनुसार रविवार को ही मनाया जाता है (आदिवासी भाषा में दीतवार का मतलब ही रविवार होता )। इस दिन सभी परिवार अपने घरों के बाहर भोजन बनाते हैं जिसमे सिर्फ चावल के साथ फ्राई की हुई हरी मिर्च और तुअर दाल पकाई जाती है ।
गांव के सभी परिवार पटेल के घर एकत्रित होकर पटेल, पुजारा, वारती, गांव मुखिया, चौकीदार व सभी समाजजन प्रकृति की पूजापाठ करते हैं।
इसके लिए आवश्यक सामग्री खैर की लकड़ी की खिल्ली, उड़द, ज्वार, प्याज, निंबू, सिंदूर, लाल मिर्ची, तलवार, ऊल्की, शराब, सिक्के, नीम की पत्ती, आम की पत्ती, बास का डंठल पूजा सामग्रियों से पारंपरिक विधि विधान से गांव पुजारा ( जो गांव का पुजारी होता हे ) पूजा कर के गांव की सुख-शांति के लिए मन्नत मांगते हैं और हर उस वस्तु के लिए प्रकृति का धन्यवाद करते हे जो प्रकृति सब को दी है , यह आदिवासी भाईयों का प्रकृति से जुड़ा हुआ होना दर्शता है ।
साथ ही घर को बुरी नजर से बचाने के लिए नीम, आम की पत्ती, लाल मिर्च, प्याज से बनी तोरण को मुख्य दरवाजे पर लगाते हैं। घर परिवार की सुख- शांति के लिए खैर की लकड़ी की खिल्ली बनाकर घर के मुख्य दरवाजे पर जमीन में गाड़ देते हैं जो सुख और समृद्धि के प्रतीक को दर्शाता है । ज्वार, उड़द के दानों को कपड़े में लपेटकर कमर के कंदौरे या गले की चैन में परिवार के सदस्यों को बांधते हैं। ताकि परिवार के सदस्यों का बीमारियों से बचाव हो सके। घर के बाहर भोजन बनाकर मनाया दित्वारिया त्योहार, ईष्ट देवताओं का पूजन किया जाता है |
पूजन के लिए खैर की लकड़ी तैयार करते आदिवासी समाजजन। पूजन सामग्री में पत्तियां का उपयोग करते हैं यहां फिर से यह देखने मिलता है की आदिवासी बंधुओ का प्रकृति के साथ जुड़ा हुआ होना दर्शाता है।
भगोरिया की शुरुवात
होली के एक हफ्ते पहले भगोरिए की शुरुवात हो जाती है यह होली के उस पहले हाट बाजार के दिन लगता हे जिससे यह पूरा त्यौहार अलग अलग जगह पूर्व हफ्ते चलते रहता है , जिसमे ढोल मांधव के साथ नाचते गाते उत्साह के साथ मनाया जाता है और अलग अलग गांव से लोग आकर अपना महत्वपूर्ण योगदान देते है।
यहाँ अलग अलग गांव से लोग आपास में मिल कर कॉम्पिटिशन करते है और जितने वाले को इनाम दिया जाता हैं। इस हाट में व्यापारी अपने-अपने दाम और तरीके से खाने पीने की चीजें- जैसे की गुड़ की जलेबी, भजिये, खारिये (सेंव), पान, कुल्फी, केले, मीठी ताड़ी बेचते, साथ ही कुछ झूले वाले, खिलोने वाले, गोदना (टैटू) वाले अपने व्यवसाय करने में जुट जाते है |
कई आदिवासी नौजवान युवक-युवतियां झुंड बनाकर पैदल भी हाट देखने को जाते हैं। भगोरिया पर्व का बड़े-बूढ़े सभी आनंद लेते हैं।
भीलों के लिए विवाह बंधन में बंधने की परंपरा त्योहार – पुराने ज़माने कुछ आदिवासी भगोरिआ में शादी करने के लिए आते थे लेकिन आज कल के सुशिक्षित आदिवासी सिर्फ मेला का आनंद लेते है
कई युवक-युवतियां एक से रंग की वेश-भूषा में नजर आते हैं। इस दौरान कई युवक-युवतियां को रिश्ता भी तय हो जाता है।
माना यह भी जाता है के भगोरिया हाट-बाजारों में युवक-युवती बेहद सजधज कर अपने भावी जीवनसाथी को ढूंढने आते हैं। इनमें आपसी रजामंदी जाहिर करने का तरीका भी बेहद निराला होता है।
सबसे पहले लड़का लड़की को पान खाने के लिए देता है। यदि लड़की पान खा ले तो हां समझी जाती है और फिर लड़का लड़की को लेकर भगोरिया हाट से भाग जाता है और दोनों शादी कर लेते हैं।
यदि लड़का लड़की के गाल पर गुलाबी रंग लगा दे और जवाब में लड़की भी लड़के के गाल पर गुलाबी रंग मल दे तो भी रिश्ता तय माना जाता है।
माना यह भी जाता है की कुछ जनजातियों में चोली और तीर बदलने का रिवाज है। वर पक्ष लड़की को चोली भेजता है। यदि लड़की चोली स्वीकार कर बदले में तीर भेज दे तब भी रिश्ता तय माना जाता है।
इस तरह भगोरिया भीलों के लिए विवाह बंधन में बंधने का अनूठा त्योहार भी है।
मध्य प्रदेश के गोंड समुदाय का कर्मा त्योहार (Gond festival in madhya pradesh)
मध्य प्रदेश के गोंड समुदाय उत्साह और उत्साह के साथ कर्मा त्योहार (Gond festival in madhya pradesh) को मनाते हैं। यह त्योहार समुदाय के लिए धर्म की देवी की पूजा के लिए मनाया जाता है, जो समृद्धि और कल्याण लाने के लिए विश्वास किया जाता है।
कर्मा त्योहार के दौरान, गोंड समुदाय वृक्षों की पूजा, लोक गीतों का गायन, और एक प्रचंड खेती के लिए प्रार्थना करते हैं। त्योहार में पारंपरिक नृत्य प्रदर्शित होते हैं, जो गोंड समुदाय की सांस्कृतिक धरोहर और कलात्मक प्रतिभा को दर्शाते हैं।
बैगा समुदाय का माटी की सांझ त्योहार
माटी की सांझ त्योहार, बैगा समुदाय के द्वारा मध्य प्रदेश में मनाया जाने वाला एक और प्रमुख आदिवासी त्योहार है। यह त्योहार पृथ्वी देवी को समर्पित करने के लिए मनाया जाता है और उसके फलदार फसल के लिए उसकी आशीर्वाद को मांगा जाता है। बैगा लोग पूजा, बलिदान करने की पारंपरिक रीति के साथ पृथ्वी देवी यानि के धरती माँ को संतुष्ट करने के लिए विभिन्न धार्मिक रीतियों का पालन करते हैं। त्योहार में लोक नृत्य और संगीत का आयोजन किया जाता है, जो बैगा समुदाय की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत को दर्शाते हैं।
इन त्योहारों के अतिरिक्त, मध्य प्रदेश में कई अन्य आदिवासी उत्सव भी हैं (major festivals in madhya pradesh), जैसे कि संथाल समुदाय का सारहुल त्योहार, यादव समुदाय का पोला त्योहार, और गोंड और बाइगा समुदाय का हरेली त्योहार।
अंत में
इन सभी त्योहारों में विभिन्न आदिवासी समुदायों की अद्वितीय परंपराएं, विश्वास और रीति-रिवाज बसे हैं, जो मध्य प्रदेश राज्य की सांस्कृतिक विविधता में योगदान करती हैं। समाप्ति में, मध्य प्रदेश में आदिवासी त्योहारों (famous adivasi festival in madhya pradesh) का महत्व राज्य के जनजातीय समुदायों की सांस्कृतिक विरासत को संरक्षित और बढ़ावा करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
ये त्योहार न केवल समुदायों को एक साथ आने और अपनी परंपराओं का जश्न मनाने के अवसर प्रदान करते हैं, बल्कि उनकी प्राचीन सांस्कृतिक विरासत को दुनिया को दर्शाने के लिए मंच भी बनते हैं। जैसे ही मध्य प्रदेश अपनी आदिवासी जड़ों को स्वीकार करता है, ये त्योहार राज्य की सांस्कृतिक पहचान का एक अभिन्न हिस्सा बनेंगे, जो राज्य की जनजातीय जनसंख्या के प्राचीन परंपराओं और रीति-रिवाजों को जिंदा रखते हैं। जय जोहर जय आदिवासी
FAQ
मध्य प्रदेश में कौन से आदिवासी समुदाय लोग भगोरिया त्यौहार मनाता है?
भील जनजाति के लोग
मध्य प्रदेश के कौन कौन से जिले में भगोरिया त्यौहार मानते है?
झाबुआ, धार, खंडवा, खरगोन, बड़वानी और अलीराजपुर
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