जयसेवा का मतलब क्या होता है

हेलो दोस्तों आज की इस लेख में हम जानेगे जयसेवा का अर्थ क्या होता है (jay seva ka arth kya hota hai ) आपने आदिवासी लोगों को सेवा जोहर कहते हुवे जरूर सुनहि होगा जबबि वे मिलते रहते है एक दूसरे से लेकिन क्या आपको पता है की जय सेवा क्या है चलिए जानते है इसके बारेमे |  

जय सेवा मंत्र कोयापुणेम का सार होता है | कोयापुणेम में अर्थात मानव धर्म गोंडी धर्म जिसमें समस्त मानवता का कल्याण निहित है यह आदि धर्म है जो आदिकाल से अनवरत रूप से प्रवाहमान है जो मानव को प्रकृति के निकट लाकर गण्डजीवों को शांतिमय वातावरण में रहकर जीने की कला सिखाती है | 

जयसेवा मंत्र तो विशाल है किन्तु गोंडी  धर्मगुरु पारी कुपारिलिगो द्वारा संक्षेप में अर्थ इस प्रकार दी गई है

  • सुयमोदी आम्ट, सुयमोद सिम्ट! यानि के सत्यज्ञानी बनो औरो को ज्ञान दो ! 
  • तमवेडची आम्ट रिक्वेडची किम्ट ! अर्थात स्वयं प्रकाशित बनो और अपने प्रकाश से औरो को प्रकशित करो | 
  • सगा तम्मु आम्ट , सगा पारी विम्ट !  अर्थात  सगा सामुदायिक व्यवस्था के अंग बनो और सगा सामुदायिक सम्बन्द प्रस्थापित करो |
  • सुयवन्क  आम्ट  सूयवानी वान्काट ! अर्थात सत्य वचनी बनो और सत्य वाणी का प्रयोग करो |
    5 सेवकाया आम्ट , सगा सेवा  किम्ट ! अर्थात स्वयं सेवक बनो और सगा समुदाय की सेवा करो |

गोंड समाज में जय सेवा क्यों कहा जाता है (jay seva ka arth kya hai)

जयसेवा यह सेवा मंत्र गोंडवाना कोयापुनेम  का आधार है |  कोयापुनेमेंम  का अर्थ  है – जिसमें समस्त जगत के जीवों का कल्याण निहित है, यह धर्म का निर्माण आदिकाल से जो हमें जीवन में प्रकृति से प्रेम का सीख देता है

और मानव को प्रकृति के समीप लाकर सभी जीवों को शांतिमय तरीकों से वातावरण में रहने व जीने की कला सिखाता है जैसे वह मंत्र अति शक्तिशाली है जो हमें सेवा भाव करने और प्रकृति से प्रेम करना सिखाता है

गोण्डी धर्मगुरु पारी कूपरलिंगो  द्वारा जय सेवा वर्णन इस प्रकार दिया गया है

पहला सभी जन्मदाताओं की सेवा (jay seva ka arth)

याने की प्रत्येक जीव को इस सृष्टि में जन्म देने वाली दो महाशक्तियां हैं वे हैं सलाह और गांगरा  याने की माता और पिता के प्रति हमें सेवा करने का भाव सिखाता है हमारा तन मन और बुद्धि उन्हीं की देन है

जब हम पैदा हुए तो असहाय थे न तो चल फिर सकते थे न भोजन प्राप्त कर सकते थे न ही अपनी रक्षा कर पाते थे

उस समय माता पिता ने ही स्वयं कष्ट उठाकर हमारे पैदा होते ही हमारी सेवा किए

उस समय यदि माता पिता की सेवा नहीं मिलती तो हम जीवित नहीं रह पाते उन्होंने हमें नहलाया धुलाया मल मूत्र साफ किए स्तनपान कराएं

इसलिए माता पिता के प्रति हमारा भी कर्तव्य बनता है कि जब वे वृद्ध हो जावे तो हम उनकी पूर्ण श्रद्धा और भक्ति से निस्वार्थ भाव से तन मन और धन से सेवा करें

जन्मदाताओं की सेवा ही सलाह गांगरा की सेवा और देवों की पूजा के बराबर है जिसने माता पिता के महत्व को नहीं जाना वह फड़ापेन  को नहीं पहचाना माता पिता को छोड़कर मंदिरों में मूर्ति पूजा किया तीर्थों में घूम घूम कर स्नान किया वह व्यर्थ ही अपने जीवन के बहुमूल्य समय बर्बाद किया कोयापुनेम  जन्मदाताओं की सेवा को सर्वाधिक प्राथमिकता दी गई है

महिलाओं के लिए सास ससुर की सेवा सर्वोपरि है जिस स्कूल में महिलाएं विवाह करके लाई जाती हैं उस स्कूल के वृद्धजन उनके लिए पूजनीय होते हैं

दूसरा अपने संतान की सेवा (jay seva ka arth)

याने की युवा स्त्री पुरुषों के विवाहोपरांत संतान की उत्पत्ति होती है उनकी सेवा का पूर्ण दायित्व उनके माता पिता का होता है

यदि माता पिता अपने बच्चों को ठीक ढंग से सेवा एवं परवरिश करेंगे तो वे भविष्य में होनहार योग्य नागरिक बनेगा

बुद्धिमान एवं विवेकशील बनेगा चरित्रवान बनेगा उनमें सुसंस्कार का समावेश होगा

अधिकांश पढेलिखे सभ्य कहलाने वाले व्यक्ति अपने बच्चों की सेवा स्वयं न करके किसी नौकर नौकरानी उसे सेवाओं व परवरिश कराते हैं

अधिकांश शहरी माताएं अपने स्तन का दूध अपने बच्चों को नहीं पिलाती और बाजार से दूध खरीद कर पिलाती हैं

वे सोचती हैं कि स्तनपान कराने से उनकी सुंदरता नष्ट हो जायेगी परिणामस्वरूप उनकी संतान संस्कारित नहीं हो पाते अस्वस्थ, कमजोर, विवेकहीन, शिलगुणहीन होते हैं

इसलिए कोयापुनेम उन्हें में अपनी संतान की सेवा स्वयं करने का विधान है

तीसरा सभी सगाजनो की सेवा (jay seva ka arth)

याने  की गोंडी  धर्म में सम और विषम गोत्र धारक आपस में एक दूसरे के सगाजन कहलाते हैं इन्हीं सगा जनों के बीच आपस में वैवाहिक संबंध स्थापित होते हैं

गोंड  समाज में सभी धार्मिक और सामाजिक कार्य सगाजनों द्वारा संपन्न कराए जाने का विधान है समाज में विवाह मृत्यु संस्कार या अन्य कोई भी देव पूजन कार्यों में ब्राम्हण से कोई भी कार्य नहीं कराए जाते ये सभी कार्य सगाजनों द्वारा ही संपादित किए जाते हैं

इसलिए सगाजनों के बीच सामंजस्य और सेवा भाव आवश्यक है सम और विषम गोत्रीय सगाजन आपस में एक दूसरे के पूज्यनीय होते हैं उन्हें एक दूसरे की सेवा करनी चाहिए

जब भी जरूरत पडे सगाजन आपस में सेवा एवं सहयोग करके समस्त गोंडवाना समाज का कल्याण करते हैं

इस प्रकार की सगा  सामाजिक व्यवस्था विश्व के किसी भी धर्म में नहीं हैं

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चौथा जगत के दीन दुखियों की सेवा (jay seva ka arth)

याने की गोंड समाज में कुछ धनी लोग हैं और अधिकांश निधन है ऐसे व्यक्ति विवाह या मृत्यु संस्कार के अवसर पर या बीमारी पढ़ने पर मजबूर हो जाते हैं

ऐसे में समाज के धनी लोगों का कर्तव्य बन जाता है कि वे ऐसे निर्धनों की वक्त आने पर यथासंभव सेवा करें
एक व्यक्ति न करें तो समाज के व्यक्ति चंदा करके उसे कष्ट से बचाने का प्रयत्न करना चाहिए

दीन दुखियों की सेवा निःस्वार्थ भाव से होनी चाहिए यह भी हमारे समाज रूपी शरीर के अंग हैं शरीर का एक अंग विकारग्रस्त हो जाने पर पूरा शरीर अस्वस्थ्य हो जाता है शरीर की कुशलता के लिए सभी अंगो का स्वास्थ्य होना आवश्यक है इसी प्रकार समाज में सभी का विकास एक साथ होना आवश्यक है

पांचवा संपूर्ण धरती की सेवा (jay seva ka arth)

याने की धरती से अनाज पैदा करना वृक्ष लगाकर फल प्राप्त करना धरती को खाद डालकर उपजाऊ बनाना ही धरती की सेवा है

गोंडीयनों का मुख्य व्यवसाय कृषि है कृषि कार्य करना आदिवासी की पहचान समझा जाता है कृषि कार्य में हिम्मत और मेहनत की जरूरत होती है

भूख प्यास सर्दी गर्मी बरसात थकान सभी को सहन करके गोंड धरती की सेवा करता है पसीना बहाता हुआ सुख की आशा में अथक परिश्रम करता है

अन्न उपजाता है और विश्व का भरण पोषण करता है धरती माता की सेवा जो व्यक्ति सही लगन से करता है वह कभी भूख से नहीं मरता और कभी भीख नहीं मांगता

धरती माता की गोद में जितने जितने वृक्ष उगाएंगे वह उससे कई गुनी अधिक फल प्रदान करता है बड़े बड़े कारखाने स्थापित करने से गोला बारूद बनाने से धरती की सेवा नहीं होती है

बल्कि धरती की हरियाली नष्ट होती है धरती की सेवा करने के लिए अधिक से अधिक अनाज पैदा करें फलदार वृक्ष लगाएं समाज कल्याण के लिए सेवा भाव प्रत्येक कोया  जनों में होना चाहिए एक पवित्र कार्य समझकर उसे करना चाहिए

छठवां जगत के संपूर्ण जीव जंतु की सेवा (jay seva ka arth)

हमें जगत के सभी जीवों की सेवा के लिए धर्मगुरु पारी कुपार लिंगों द्वारा जीवों की रक्षा के लिए बांट दिया गया है

सभी सगाजन को सभी देवों का सम्मान करना चाहिए व पेड़ पौधे के सभी सगाजनों को अपने अपने पेड़ो  को पूजना होता है

जैसे की सेवा हमारे लिए कितना महत्वपूर्ण है यह सम्पूर्ण जगत का निर्माण सेवा से ही हुआ है इसलिए सेवा एक दूसरे के सम्मान के लिए व अभिवादन के लिए प्रयोग किया जाता है

जिस प्रकार दो सिख आपस में अभिवादन करते समय सत श्री अकाल शब्द का प्रयोग करते हैं मुसलमान अस्सलाम वालेकुम करते हैं ईसाई गुड मार्निंग कहते हैं हिन्दू जयराम जी की कहते हैं

इसी प्रकार हम गोड़ी  धर्मी लोग अभिवादन करते समय जय सेवा कहते रहें  आदि गुरु द्वारा बताया गया यह सेवा मंत्र कोया समाज का मूल मंत्र है

हमें इस मंत्र का जाप श्रद्धा एवं भक्ति के साथ करना चाहिए इससे हमें आत्म शक्ति एवं प्रेरणा की प्राप्ति होती

जय सेवा जय जोहर जय गोंडवाना 

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