नमस्कार दोस्तों आज हम जानेंगे सिक्किम की एक बहादुर आदिवासी स्वतंत्रता सेनानी हेलेन लेप्चा (helen lepcha information in hindi) के बारे में जिन्होंने राष्ट्र की सेवा में अपना जीवन समर्पित करने का ठान लिया।
सिक्किम में इंडिया के इंडिपेंडेंट स्ट्रगल में पार्टिसिपेट करने वाले लोग बहुत ज्यादा नहीं थे लेकिन वहां की एकमात्र फ्रीडम फाइट की लीडर हेलेन लेप्चा (helen lepcha freedom fighter) के बारे में जानना काफी जरूरी है हेलन न सिर्फ गाँधीजी के नॉन कोऑपरेशन उर्फ बंटी असहाय आंदोलन के इंटीग्रल पार्ट थी
इसके अलावा भी हेलेन लेप्चा (helen lepcha) ने लगभग दस हजार कोयला खान के श्रमिक का एक जुलूस का नेतृत्व किया था और नेताजी सुभाष चंद्र बोस की मदद की थी कुर्सियांग में उनके इंटरटेनमेंट से बचने के लिए
इंटरेस्टिंग फैक्ट अबाउट हेलेन लेप्चा (Interesting fact about helen lepcha in hindi )
- हेलेन लेप्चा सक्किम राज्य की एक मात्र आदिवासी महिला सवतंत्रा सेनानी है
- सन 1939 – 1940 दौरान जब नेताजी सुभाष चंद्र भोस को कुर्सियां में बंदी बनाया लिया गया तब हेलेन लेप्चा ने उनकी काफी मदद की थी और उन्हें वहा की जेल से भागने में सहायता की थी
- हेलेन लेप्चा का जन्म लेप्चा समुदाय में हुवा था
- हेलेन लेप्चा का नाम बदलकर महात्मा गांधी जी ने सावित्री देवी रखा था
- भारत की प्रधान मंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी ने ताम्रपत्र से हेलेन लेप्चा को सम्मान दिया है
सिक्किम में प्रारंभिक जीवन
सिक्किम के बच्चों में जन्मी बहुत सी उस जनसंख्या में से एक थी हेलेन लेप्चा जिसका जन्म 14 जनवरी 1902 में सिक्किम के सांगमू गांव हुवा उनके पिता का नाम आचुंग लेपचा था जिसके तीसरे बच्चे के रूप में हेलेन पैदा हुई थी, और शायद ही कोई और महिला स्वतंत्रता सेनानी थी जो सिक्किम राज्य की स्थानीय आदिवासी फ्रीडम फाइटर जन्मी थी।
सन 1900 में कोरसे और दार्जिलिंग में शिक्षा के अवसर काफी ज्यादा थी और इसी के चलते हेलन का परिवार वहां से कुर्सियां शिफ्ट हुआ हेलन एक स्कूल ड्रॉपआउट थी
जिसे 1917 में हिल्स में प्रचारित किए जा रहे चरखा और खद्दर आंदोलन में शामिल हुए 1918 में एक बंगाली भद्रलो के भाषण को सुनने के बाद हेलंग काफी प्रेरित हुई और अपनी मातृभूमि के लिए अपना जीवन समर्पित करने का निश्चय किया और इसी के साथ में हेलेन लेप्चा (helen lepcha) कोलकाता चले गए
ईश्वर चंद्र विद्यासागर की पोती के अंतर्गत हेलन चरखा प्रशिक्षण केंद्र में कटाई की कला सीखने लगी अपने कौशल के कारण उन्होंने बिहार के मुजफ्फरपुर में खादी और शाखा प्रदर्शनी में कलकत्ता का प्रतिनिधित्व भी किया था
नाइनटीन ट्वेंटी (1920) में बिहार में जब भयानक बाढ़ आने के बाद गांधीजी वहां पहुंचे वहां स्वयंसेवक करते हुए हेलन गांधी जी से मिली गांधीजी ने उन्हें साबरमती आश्रम में न्योता भी दिया और हेलन लेप्चा उस समय चली भी गई वहीं पर उन्होंने अपना नाम बदलकर सावित्री देवी रखा क्योंकि हेलेन लेप्चा इंग्रेजी नाम था और गांधीजी को लगा कि उसका नाम आंदोलन की आत्मा के साथ मेल नहीं खाता था, इसलिए उन्होंने उसे साबित्री देवी नाम दिया
हेलेन लेप्चा (helen lepcha) ने उत्तर प्रदेश और बिहार के कुछ हिस्सों में पार्टी के नेता के रूप में कांग्रेस मजदूर संघ की गतिविधियों में सक्रिय रूप से भाग भी लिया 1921 में कलकत्ता के मुहम्मद अली पार्क में एक बैठक के बाद वह असहयोग आंदोलन में गांधीजी के साथ शामिल हो गयी
इसके बाद एक तिरंगा लेकर हेलेन लेप्चा ने झरिया कोयला क्षेत्र जो वर्तमान झारखंड में है हेलेन ने लगभग दस हजार श्रमिकों का जुलूस का नेतृत्व किया और आदिवासी मजदूरों के शोषण का विरोध किया उनकी बढ़ती लोकप्रियता ने अंग्रेजों को परेशान कर दिया
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इसके बाद अंग्रेजो ने उनके खिलाफ गिरफ्तारी वारंट जारी किया जिससे बचने के लिए वह अलाहबाद में नेहरू के आवास पर छिप गई हेलेन लेप्चा ने स्थानीय सायंसेवको को एक साथ एकत्रित किया और विदेशी सामानों के खिलाफ घर घर अभियान शुरू किया एक बार उनके ऊपर गोली भी चलाई गई लेकिन वह बच निकली सरोजनी नायडू, जवाहर लाल नेहरू, मोरारजी देसाई से उनके संबंध अच्छे हो गए और वे उनके साथ मिलकर काम करने लगी।
इसी के चलते ब्रिटिश पुलिस ने कर्फ्यू लगा दिया लेकिन हेलेन लेप्चा ने अपना अभियान बंद नहीं किया और इसके चलते 29 जनवरी 1922 में हेलेन लेप्चा को अरेस्ट कर लिया गया था
बारह और लोगों के साथ हेलेन लेप्चा ( helen lepcha) को तीन महीने के लिए दार्जिलिंग सदर जेल में कैद कर दिया गया और इसके बाद उन्हें कुर्सियां (दार्जिलिंग के निकट स्थित एक प्रसिद्ध हिल स्टेशन) में हाउस अरेस्ट में रखा गया लगभग तीन साल तक 1932 में वह कुर्सियां नगर पालिका की पहली महिला आयोग बन गई
सन 1939 – 1940 के बीच में जब नेताजी सुभाष चंद्र बोस को कुर्सियां में बंदी बनाया लिया गया तब हेलेन लेप्चा लगातार उनके संपर्क में थी वह अपने हसबैंड ईशान अहमद की बेकरी से डिलीवर होने वाले ब्रेड में नेताजी के लिए जरुरी खत भेजते थे
हेलेन लेप्चा ने नेताजी सुभष चंद्रबोस को कुर्सियां में हाउस अरेस्ट से बचाकर भागने में मदद की थी और काबुल होते हुए जर्मनी तक पहुंचने में भी हेलेन लेप्चा ने सहायता की और भागने के दौरान अपनी पहचान छिपाने के लिए नेता जी ने जो पठान ड्रेस, दाढ़ी और मूंछें इस्तेमाल करी थी वह हेलेन लेप्चा ने अपने हाथों से बनाया थे
1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में भी हेलेन लेप्चा ने सक्रियता से भाग लिया वहां के काफी एसोसिएशन के हेड बनी और बाद में कुर्सियों के मंडल के रूप में भी काम किया
15 अगस्त 1972 में भारत के आजादी की लड़ाई में उनकी अथक योगदान के लिए हेलेन लेप्चा को उस वक्त के प्रधान मंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी ने ताम्रपत्र सम्मान दिया
हेलेन लेप्चा की मृत्य 18 अगस्त 1980 को भारत के उत्तर प्रदेश राज्य में हुई
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अंत में
इतिहास के पन्नों में हेलन लेप्चा ( helen lepcha information in hindi ) के बारे में चाहे ज्यादा कुछ लिखा न गया हो पर उनका योगदान महत्वपूर्ण रहा है दोस्तों में उम्मीद करती हु आप लोगो को हमारी हेलेन लेप्चा कौन है यह पोस्ट पसंद आई हो इसे अपने फ्रेंड्स के साथ जरूर शेयर करे जय जोहर जय आदिवासी
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