जानिए शहीद गुंडाधुर और गुंडा शब्द की उत्पत्ति कैसे हुवी

जोहर दोस्तों , गुंडा शब्द सबको को सुनते ही मन में बदमाश झगड़ालू गैंगेस्टर लोगों का गलत भावना मन में आती है इस वर्ड का इतना गलत प्रचार किया गया की फिल्मों में विलेन या गलत आदमी को गुंडा ही कहा जाने लगा हर बदमाश आदमी को गुंडा नाम से पुकारा जाने लगा इस गुंडा शब्द को किसने बदनाम किया और यह गुंडा  शब्द कहाँ से आया

यह आज हम आपको बताएंगे तो चलिए  पता करते गुंडा शब्द के रियल इतिहास के बारेमें

साथियों में  इस आदिवासी स्टेटस ब्लॉग में आपका स्वागत करता हूं

गुण्डा शब्द की जानकारी हमें इतिहास का मुआयना इस पुस्तक जिसके लेखक है डॉ. राजेंद्र प्रसाद सिंह इसकी पुष्ट संख्या 95 पर उलेखित है में इन्ही किताबों से जानकारी प्राप्त करके आपके सामने पेश कर रहा हु

1910 ईस्वी के बाद यह गुंडा शब्द खूब प्रचलन में आया छत्तीसगढ़ के बस्तर जिले व आसपास में आदिवासियों का भूमकाल स्वतंत्रता संग्राम चल रहा था जिसका नेतृत्व आदिवासी महान योद्धा गुण्डाधूर ( Veer Gundadhur ) कर रहे थे

इस बस्तर के इलाके में अंग्रेजी सरकार राजा रजवाड़े व जिम्मेदार वहां की गरीब जनता और आदिवासियों को लगान महंगाई बेरोजगारी आदि के नाम से मनमाना शोषण व अत्याचार कर रहे थे इस अत्याचार गुलामी से परेशान होकर स्वाभिमानी आदिवासियों ने स्वतंत्रता संग्राम को छेड़ दिया

कुछ ही दिनों के बाद इस आंदोलन का नेतृत्व युवा आदिवासी योद्धा गुण्डाधूर ने अपने हाथों में ले लिया गुण्डाधूर उस समय अपनी भरपूर जवानी में था अपने आदिवासी पारंपरिक हथियारों जैसे तीर कमान, कुल्हाड़ी, गोफन आदि को चलाने में माहिर था वो अपनी सूझबूझ से इस आदिवासी आंदोलन का कुशल नेतृत्व कर्ता साबित हुआ

दोस्तों आदिवासी शहीद गुंडाधुर  (Veer Gundadhur) का जन्म बस्तर के नेतानार नामक गाँव में हुआ था.

गुंडाधुर को समर्पित कुछ महत्वपूर्ण बातें 

  • भारत सरकार ने गुंडाधुर के नाम पर राज्य स्तरीय खेल पुरस्कार की स्थापना भी की है।
  • हमें साल 2014 में, गुंडाधुर की छवी वार्षिक गणतंत्र दिवस परेड में छत्तीसगढ़ की राज्य की  झांकी में देखने को मिली थी।
  • हर साल भारत के छत्तीसगढ़ राज्य में 10 फरवरी को भूमकाल स्मृति दिवस मनाया जाता है 
  • हालही में भूमकाल विद्रोह के नायक वीर गुंडाधुर का 113 वां शहादत दिवस मनाया
  • साल 1982 में आदिवासी वीर गुंडाधुर के नाम पर गवर्नमेंट गुंडाधुर कॉलेज कोंडागांव की स्थापना की गई| 
  • शहीद गुंडाधुर आज भी भारत के आदिवासी लोकगीतों में जीवित हैं और उनकी कहानियाँ छत्तीसगढ़ के स्कूलों और गाँवों में सुनाई जाती हैं..

भूमकाल विद्रोह के महानायक

कहा जाता है 10 फरवरी को 1910 में बस्तर के आदिवासियों के साथ आदिवासी शहीद गुंडाधुर ने अंग्रेजों के खिलाफ आंदोलन का बिगुल फूंका था | 

इस विरोध को बुलंद करने में आदिवासी जननायकों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और अपने जी जान की बाजी लगा दी । इन्हीं जननायकों में से अमर शहीद गुुंडाधुर के नेतृत्व में भूमकाल विद्रोह में आदिवासियों ने लिमिटेड संसाधनों के बावजूद अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ डटकर संघर्ष किया था।

गुण्डाधूर की आयु लगभग 35 वर्ष की थी जब बस्तर का संघर्ष हुआ था | इस विद्रोह को स्थानीय बोली में ‘भूमकाल’ कहा गया | 

गुण्डाधुर को आदिवासियों का खुप साथ मिला केवल कुछ ही  समय में ही हजारों लोग ‘भूमकाल आंदोलन’ से जुड़ गए थे |

अंग्रेज सरकार ने इस विद्रोह को दबाने  के लिए मेजर गेयर और डी बेरट को 500 सशस्त्र सैनिकों के साथ बस्तर भेजा था | 

गुण्डाधूर ने अपने साथी जैसे की  मूरतसिंह बख्शी, बालाप्रसाद नाजिर, वीरसिंह बंदार, सुवर्ण कुँवर तथा लाल कालेन्द्र सिंह के सहायता से भूमकाल  विद्रोह संचालन किया.

अंग्रेजो के आधुनिक हथियारों के साथ सैनिकों का इन वनवासियों ने अपने तीर कमान , डंडे लढ़िया , भाला, दराती , तलवार, गोफन  और फरसा से जमकर मुकाबला किया था | 

इस विद्रोह में सैकड़ों क्रांतिकारी तथा अंग्रेज सैनिक मारे गए थे अंग्रेजों ने वीर गुंडाधुर को गिरफ्तार कर 10 फरवरी को फांसी पर चढ़ा दिया | 

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साल 1910 तक इस भूमकाल विद्रोह को अंग्रेजों द्वारा क्रूरतापूर्वक कुचल दिया गया |

इस आदिवासी स्वतंत्रता संग्राम को भूमकाल नाम से जाना गया गुण्डाधूर  ने खुद को वह अपने लड़ाकू साथियों को इतना मजबूत कर दिया था कि अंग्रेजों की बंदूक की गोलियों के सामने आदिवासियों के तीर हल्ले गोफन भारी पड़ने लगे गुण्डाधूर ने अंग्रेजो जमीदारों को इतना परेशान लाचार कर दिया कि इन अंग्रेज जमीदारों को न

दिन में चैन मिलता न  रात को सकून मिलता गुण्डाधूर भी  स्वतंत्रता सेनानी टंट्या भील की तरह ही गरीबों और लाचारों से प्रेम करता था टंट्या मामा  की तरह ही गुण्डाधूर जमीदारों अंग्रेजों का धन लूटकर गरीबों में बांट देता था

गुण्डाधूर  व उसकी टुकडी इतनी तेज थी कि पलक झपकते ही जंगल में गायब हो जाते थे कब गांव पालो में आते थे कब चले जाते थे किसी को पता ही नहीं चलता था अधिकतर लोगों अंग्रेजों ने तो गुण्डाधूर  को देखा तक नहीं था सिर्फ नाम ही सुना था

इस गुंडा दूर से परेशान होकर अंग्रेजी सरकार ने अपनी वहां की पूरी सैनिक छावनियों को जंगलों में गुंडा दूर को पकड़ने के लिए भेज दिया था फौज ने जंगलों का चप्पा चप्पा छान मारा पर गुण्डाधूर नहीं मिला अंग्रेजों की पूरी फौजे गुंडा दूर को नहीं पकड़ पा रही थी इससे अंग्रेज परेशान हो चुके थे

इस गुण्डाधूर नाम से अंग्रेजों को नफरत हो गई थी अब अंग्रेजों को जो भी बदमाश या अपराधी मिले उसे गुंडा गुंडा कहकर पकड़ लेते थे गुण्डाधूर को तो अंग्रेज पकड़ नहीं पाए पर अपने मन की संतुष्टि के लिए हर बदमाश झगड़ालू को पकड़कर उन्हें गुंडा कह कर जेल में डाल देते थे इस प्रकार अंग्रेजों जमींदारों ने गुंडा दूर से नफरत के कारण हर बदमाश अपराधी को गुंडा कहने लगे

इस गुंडा शब्द को इतना बदनाम किया कि धीरे धीरे आम लोग गुंडा का मतलब अपराधी, डकैत और  डाकू समझने लगे और उस महान गुण्डाधूर को भूल गए

इस प्रकार इस आदिवासी महान योद्धा गुण्डाधूर  से अंग्रेजों व जमीदारों ने अपनी जलन गुस्सा निकालने के लिए इसके आगे के आदि शब्द गुंडा को बदनाम कर दिया साथियों इस महान शब्द गुंडा को इस प्रकार बुरा बना दिया गया

आज फिल्मों में नाटकों में सरकारी भाषा में आम जनता में इस गुंडा शब्द को अपमानजनक शब्द के रूप में उपयोग किया जाता है

और तो और इन बदमाशों अपराधियों के लिए बाद में एक गुंडा एक्ट भी बना दिया गया साथियों बस्तर इलाके में आज भी वहां के आदिवासियों के दिलों में गुण्डाधूर  जिंदा है और गर्व से कहते हैं कि मैं भी गुण्डाधूर हु

जल जंगल जमीन अपने वतन के लिए लड़ने वाले उन आदिवासियों व गुण्डाधूर को मेरा नमन उनके चरणों में जोहार

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