नमस्कार दोस्तों मैं आज आपको उस वीर योद्धा यानी के भील राणा पूंजा (rana punja bhil history in hindi) की कहानी के बारे में बताऊंगा की कैसे पूंजा भील से राणा पुंजा भील नाम मिला जिसने मुगलो को धूल चटादि थी | उस गुरिल्ला युद्ध के माहारती राणा पूंजा के जीवन परिचय के बारे में बताने जा रहा हूँ |
तो दोस्तों हमारी इस पोस्ट को पूरा पढ़े मित्रो कैसे पूंजा भील से राणा पूंजा भील (rana punja bhil) बन गए इतिहास में आदिवासी भील जाति हमेशा से ही देशभक्त रही है राष्ट्र के प्रति अपना प्रेम दिखाती रही है उन लोगों ने अपने सर कटा दिए लेकिन कभी अपने सर नहीं हुकाये | ऐसे आदिवासी योधावोंको को हमारा कोटि कोटि नमन है |
राणा पुंजा का बचपन (rana punja bhil childhood)
राणा पूंजा बोहमोड़ के राजा थे 16 वी शताब्दी में राजस्थान के मेरपुर नमक गॉव में वानरवा में इनका जन्म हुआ इनके पिताजी का नाम दूदा सोलंकी था और माता का नाम था केरी बाई और 5 अक्टूबर के दिन इनकी जयंती ( rana punja bhil jayanti ) रहती है इसी दिन राणा पुंजा भील का जन्मदिन मनाया जाता है |
15 साल की उम्र में ही इनके पिता का देहांत यानि के पिता का स्वर्गवास हो गया 15 साल की कम आयु में ही इन्हे वानरवा का इनको मुखिया बनाया गया और कुछ ही वर्षो में पूंजा भील ने अपनी सेना को इतना शक्तिशाली बना दिया और इतना मजबूत बनाया गुरिल्ला युद्ध, में और धनुर्विद्या में इनके चर्चे हर जगह होने लगे |
राणा पूंजा ने कैसे साथ दीया सच्चाई का
अकबर का जो संरक्षक था जिसका नाम बैरम खान है उसको मालूम था कि यदि मुझे मेवाड़ में घुसने से पहले मुझे भीलो को रास्ते से निकलना पड़ेगा और मुझे उनसे दोस्ती करनी पड़ेगी |
बेरम खान आया राणा पूंजा के पास और बोला आप हमारे साथ मिल जाइये हमसे दोस्ती कर लीजिए आपको पद मिलेगा रुतबा मिलेगा आपकी शान बढ़ेगी आप हमारा साथ दीजिए तो उस ताकत को राणा पूंजा ने ठुकरा दिया और उसके बाद महाराणा प्रताप पहुंचे पूंजा भील के पास और कहा कि मुझे आपका साथ चाहिए इस देश के लिए मेवाड़ के लिए आजादी के लिए तो राणा पूंजा ने पूंजा भीलो ने तुरंत हां कर दी और मर्यादा का साथ देने के लिए तैयार हो गए |
1576 ईस्वी में जब हल्दीघाटी का युद्ध लड़ा गया तो राणा पूंजा ने गोरिल्ला युद्ध करते हुए महराणा प्रताप का साथ देते हुए अकबर की सेना के छक्के छुड़ा दिए और वह युद्ध काफी दिन तक चला और वह युद्ध अनिर्णय रहा | महाराणा प्रताप के साथ हल्दीघाटी में अकबर के खिलाफ हुए युद्ध में राणा पूंजा ने अदम्य साहस और वीरता का परिचय दिया. राणा पूंजा के पिता राणा खेता भी अकबर की सेना से लड़ते हुए गुरु राघवेंद्र व अन्य भील सरदारों के साथ वीरगति को प्राप्त हुए.
राणा पूंजा का इतिहास (rana punja bhil history in hindi)
दोस्तों राणा पूंजा का इतिहास में जो सहयोग है देशभक्ति में जो सहयोग है जज्बा है इसका कोई मुकाबला नहीं है तो माहाराणा प्रताप ने आदिवासी पूंजा को अपना भाई मानतेहुवे राणा पूंजा को राणा की पदवी प्रदान की साथही मेवाड़ की जो राजकीय प्रतिक है आप देखते होंगे एक साइड में राणा पूंजा का फोटो और दूसरी तरफ राजपूत राजाओं के चिन्ह अंकित है आज भी मेवाड़ की मुद्राओं पर और मेवाड़ के राजनीतिक चिन्हो पर राणा पूंजा का चिन्ह अंकित है |
साथियो भील राजाओं का इतिहास बड़ा गौरवशाली रहा है इन लोगों ने अपने सिर कटा दिए देश के लिए बलिदान दे दिए पर कभी किसी का सर नहीं झुकाया मालवा में दक्षिण राजस्थान में छत्तीसगढ़ में मध्य प्रदेश में कई जगह कर इनके शासन रहे हैं इन लोगों ने राज किया है लेकिन बड़े दुखद विषय है बड़ा गंभीर विषय है |
आज तक इतिहासकारों ने पक्षपात किया है सिर्फ जीतने वाले आदमी का नाम ही इतिहास में लिखा लिखा है और इनका नाम इतिहास के पन्नों पर कही नहीं है किसी पन्ने पर जिक्र नहीं है क्योंकि इतिहास ने पक्षपात किया है और नहीं चाहते थे आज तक जितने भी भीलों के बहुजनो के पिछड़े वर्ग और दलितों के अनुसूचित जाति के और नीचे गरीबों के जितने भी योद्धा हुए है उसके इतिहास को दबाकर रखा गया है |
उनको मालूम था कि आने वाली पीढ़ियां अगर इनके बारे में पड़ेगी तो इनसे प्रेरणा लेगी और वह संघर्ष करेगी और ये इतिहासकार नहीं चाहते थे कि इनकी पीडिया आगे बड़े तरक्की के लिए प्रोग्रेस करे इसलिए इतिहास दबाया गया है |
1857 ईस्वी की क्रांति के अगर बात की जाए उसमें भी भील राजाओं का बहुत बड़ा योगदान था और बहुजनों का भी योगदान था परंतु इनको दर्शाया नहीं गया इतिहासकारों के द्वारा कई राजे रजवाड़े कई सामंत साहूकार जमीदारों ने अंग्रेजों का साथ दिया लेकिन भील जाति का इतिहास रहा है इन दुरुस्त वीरों का इतिहास रहा है |
इन गुरिल्ला युद्ध के जिनको का इतिहास रहा है कि इन लोगों ने कभी देश के साथ दोखा नहीं किया गद्दारी नहीं कि वह हमेशा वफादारी से रहे ये आदिवासी क्षेत्र के वासी हमेशा ही अपने देश से और अपने मेवाड़ से प्रेम करते रहे हैं तो राणा पूंजा की जो कहानी है उससे लोगों को सीख लेनी चाहिए और जिंदगी में आगे बढ़ना चाहिए संघर्ष करना चाहिए अपने देश के प्रति वफादार रहना चाहिए और पूरी निष्ठा से देश की सेवा करनी चाहिए |
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क्या राणा पूजा भील राजपूत थे या भील
दूदा होलंकी जोकि राणा पूंजा के पिता थे मुख्य रूप से भील थे। इसलिए राणा पूंजा को भीलो का राजा बनाया बनाया गया था और ये भीलो के बीच ही पले-बड़े थे। राणा पुंजा को राजपूत की पदवी मिली थी जिससे इनके नाम के आगे राणा लगाया जाता था इस कारण ये राजपूत कहे जाते थे। लेकिन मूल रूप से राणा पूंजा भील ही थे और भील जनजाति से जुड़े है।
Interesting Fact About Rana Punja Bhil
- राणा पूंजा भील के बेटे का नाम मेगा भील है जिसे लोग मोत का दुसरा नाम मेगा भील कहते थे |
- 1576 ई. के हल्दीघाटी युद्ध में rana पूंजा भील ने अपनी सारी ताकत देश की रक्षा के लिए झोंक दी थी |
- राणा पंजा के सम्मन में राणा पुंजा पुरस्कार 1986 में प्रारंभ हुआ जो एक राज्य पुरस्कार है |
- राणा पुंजा आदिवासी भील समुदाय से जुड़े जहा BIllu का मतलब bow होता है |
- मेवाड़ के युद्ध में मुगल बादशाह अक़बर की 1 लाख 20 हज़ार की संख्या में सेना का सामना पूंजा भील के मात्र 20 हज़ार भील योद्धाओं के साथ हुवा था |
- राणा पूंजा को गुरिल्ला युद्ध प्रणाली का जनक माना जाता है |
- मेवाड़ के राज्य चिन्ह में एक तरफ महाराणा प्रताप का फोटो हैं तो दूसरी तरफ राणा पूंजा भील का, ऐसा कहा जाता हैं कि मेवाड़ की सेना में भीलों का योगदान विशेष रहा हैं |
- राणा पूंजा भील मेवाड़ के एक भील योद्धा थे, जिन्होंने हल्दीघाटी युद्ध में महाराणा प्रताप का साथ दिया था |
अन्तः में
तो दोस्तों हमनें जाना राणा पूंजा का इतिहास (rana punja bhil history in hindi) क्या था कैसे उन्होंने सच्चाई का साथ दिया और भारत में मुगलो को धूल चाटने पर मजबूर किया | राणा पूंजा गोरीला वार में काफी निपुण थे |
दोस्तों आज भी इन महा पुरष को हमारे एससी एसटी के लोग पूंजा (rana punja bhil life ) के जीवन के बारे में नहीं जाते हैं कुछ भी नहीं जानते हैं तो जितने पढ़े लिखे लोग है इस समाज के बहुजनों के में सबसे निवेदन करता हूं कि इस पोस्ट को शेयर करें ताकि आदिवासियों को अपने वीर पुरुषों पर अभिमान हो
जय हिंद जय भारत जय जोहर जय आदिवासी |
इतिहास बदल ने की जरूर कोशिश की गयी हैं लेकीन राणा पुंजा भील समुदाय से ही हैं