क्या आप जानते है इन आदिवासी महापुरुषों को ?

इन आदिवासी महापुरुषों (adivasi freedom fighters) को कितना जानते हैं आप दोस्तों आदिवासी दो शब्दों से मिलकर बना है आदि और वासी इसका अर्थ मूल निवास होता है

भारत की जनसंख्या का 8.6% यानी लगभग 10  करोड़ जितना एक बड़ा हिस्सा आदिवासियों है

आदिवासियों में ऐसे कई महापुरुष हुए जिन्होंने भारत देश को एक नई राह दिखलाई आई दोस्तों आज हम भारत के आदिवासियों के उन महापुरषों (adivasi freedom fighters in hindi) के बारे में जानते है

  • भगवान बिरसा मुंडा
  • वीर तिलका माँझी
  • टंट्या भील
  • राणा पूंजा भील
  • वीर नारायण सिंह

भगवान बिरसा मुंडा

नंबर एक भगवान बिरसा मुंडा आदिवासियों के भगवान कहे जाने वाले बिरसा मुंडा का जन्म 15 नवंबर 1875  के दशक में मुंडा जनजाति के पिता सुगना मुंडा और माता कर्मी  मुंडा के घर उलिहातू गॉव में हुआ |

मुंडा एक जनजाति समूह था जो छोटानागपुर पठार झारखंड में निवास करते थे बिरसा मुंडा ने १ अक्टूबर अट्ठारह सौ चौरानवे को सभी मुंडा नेताओं को एकत्र कर अंग्रेजो से लगान माफ कराने के लिए आंदोलन किया | 

1897 में उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया 1897 से 1900 के बीच मुंडा और अंग्रेज सिपाही के बीच युद्ध होते रहे  अगस्त 1897 में बिरसा मुंडा और उनकी चारसौ सिपाहियों ने तीर कमानों से लैस होकर खुटी थाने पर धावा बोल दिया था |

1898  में तांगा नदी किनारे मुंडाओं ने पहली बार अंग्रेजों को युद्ध में हरा दिया जनवरी 1900 में  डोंगरी  पहाड़ पर एक और संघर्ष हुआ जिसमें बहुत सी औरते और बच्चे मारे गए तीन फरवरी को चक्रधरपुर में जमकोपाई में  जंगल बिरसा मुंडा को गिरफ्तार कर लिया गया

9 जून 1900  को अंग्रेजों ने बिरसा मुंडा को जहर देकर मार दिया बिरसा मुंडा का 1898 से 1900 के बीच चला उलगुलान विद्रोह बेहद चर्चित रहा

उन्हें धरती आबा व  भगवान कहा गया 15  नवंबर को बिरसा मुंडा जयंती जनजाति गौरव दिवस के रूप में मनाई जाती है

वीर तिलका माँझी

नंबर दो पर है तिलका माँझी जिन्होंने अंग्रेजों के विरुद्ध सर्वप्रथम आदिवासियों ने विद्रोह किया और उनके नेता वीर तिलका माँझी थे |

तिलका मांझी का जन्म ग्यारह फरवरी 1771 से 1786 तक उन्होंने ब्रिटिश सत्ता के विरुद्ध  लंबी और कभी न समर्पण करने वाली लड़ाई लड़ी औरऔर स्थानीय  महाजनों सामंतो अंग्रेजी शासकों के नींद उड़ा रखी थी

तिलका माँझी ने 1778 इसा में पहाडिया सरदारों से मिलकर रामगढ़ कैंप पर कब्जा करने वाले अंग्रेजों को खदेड़कर कैंप को मुक्त कराया 1780 में  उन्होंने क्लीवलैंड को मार दिया बाद में उनके गुरीला सिपाहियों पर अंग्रेजो ने ताबड़ तोड़ हमले किए और उन्हें गिरफ्तार कर लिया |

कहते हैं कि तिलका मांझी को चार गोड़ो से बांधकर घसीटते हुए भागलपुर लाया गया पर मिलों घसीटे जानेके बावजूद वह लड़ाका जीवित था खून में डूबी उनकी देह तब भी गुस्सैल थे और उनकी आंखें ब्रितानियों को डरा रही  थी

अंग्रेजों ने भागलपुर चौराहे पर एक विशाल वट वृक्ष पर सरेआम तिलका मांझी को लटकाकर उनकी जान ले ली

टंट्या भील

नंबर तीन पर है टंट्या भील इंडियन आदिवासी रोबिन हुड  नाम से पूरे भारत में विख्यात महान स्वतंत्रता सेनानी टंट्या भील का जन्म 1842  में मध्यप्रदेश के खंडवा जिले में हुवा इनका वास्तविक नाम डंडरा था वे 1878 से 1890 के बीच भारत में सक्रिय स्वतंत्रता सेनानी थे

1818 में मराठा साशन के बाद सतपुड़ा के बहादुर भीलों ने अंग्रेजी के नाक में दम कर दिया टंट्या भील गुरिल्ला युद्ध नीति में पारंगत थे ऐसा कहा जाता है कि टंट्या भील में अलौकिक शक्तियां थीं

कहते हैं कि वे ब्रिटिशों को लूटकर गरीबों में धन बांट दिया करते थे उनकी पहुँच वर्तमान मध्यप्रदेश, राजस्थान, गुजरात और महाराष्ट्र तक थी तांत्या भील को सभी लोग मामा कहकर पुकारते थे 4 दिसंबर 1889 को जबलपुर जेल में टंट्या भील को फांसी दी गई उनका मंदिर पातालपानी में स्थित है |

राणा पूंजा भील

नंबर चार राणा पूंजा लेखक ने नेनसिह के अनुसार पानरवा में भील राजा राणा दयालदास का शासन था और 1989  में प्रकाशित महाराणा प्रताप एंड हिज टाइम्स पुस्तक के अनुसार पानरवा के ठिकाने भील राजा राणा हरपाल के पोते राणा पूंजा थे राणा पूंजा भील का जन्म 16वी शताब्दी में राजस्थान के मेरपुर नामक स्थान पर हुआ था। राणा पूंजा जन्म दूदा सोलंकी और माता केहरी बाई के यहाँ हुआ

राणा पूंजा बहुमत बनावा के शासक थे जब मेवाड़ पर मुगलों का संकट उभरा तब महाराणा प्रताप ने राणा पूंजा भील जी को याद किया राणा पूंजा जी के पास में मुगल दोनों ही सहायता प्राप्त करने आए थे तब राणा पूंजा भील ने  मेवाड़ का साथ दिया भील राणा पूंजा के सहयोग के कारण मेवाड़ सुरक्षित रहा

राणा पुंजा ये बचपन से ही वीर और पराक्रमी हुवा करते थे। राणा पुंजा को अपने  पिता की मृत्यु के बाद मात्र 14 वर्ष की आयु में ही मेरपुर गांव का मुखिया बना दिया गया था।

वीर नारायण सिंह

नंबर पाँच वीर कुंवर नारायण सिंह को छत्तीसगढ़ के पहले शहीद आदिवासी के रूप में जाने जानेवाले वीर नारायण सिंह का जन्म छत्तीसगढ़ के सोना खाना है 1795 में जमींदार परिवार में हुआ था

इनके पिता का नाम रामा राई था इनके पूर्वजों के पास तीन सौ गांव की जमींदारी थी 1856 के अकाल के समय भी अंग्रजो, साहूकारों का अवेद जमाखोरों से अनाज लूटकर भूखे गरीब जनता को बाट देते थे

इसका इसकारण 24 ओक्टूम्बर 1856  उन्हें बंदी बनाकर जेल में डाल दिया उनके घोड़े का नाम कब्रा था उन्होंने 500 लोगों की एक बंदूकधारी सेना बनाई थी |

10 दिसंबर 1857 को रायपुर में उन्हें अंग्रेजो के द्वारा सार्वजनिक फांसी दे दी थी |

आखिर में

हमें जाना की आदिवासी (adivasi freedom fighters) महा पुरषो के बारेमें जिन्होंने आपने आदिवासी समुदाय के लिए अपनी जान को दाव पर लगाया और अंग्रेजो एवं जमीन दरों से आजादी दिलाई | यदि आप को हमारी पोस्ट अच्छी लगी तो अपने दोस्तों के साथ शेयर करे और हमें कमेंट करके सपोर्ट करे |

जय जोहर जय आदिवासी |

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