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आज का हमारा ब्लॉग पोस्ट बनाने के पीछे की वजह यह है कि आपने अक्सर देखा होगा गांव के बाहर या हर आदिवासी गांव के बाहर जो भी आदिवासी गाँव या घरों के बाहर हनुमान बाबा जी का मंदिर या मूर्ति क्यों होती है (gaon ke bahar hanuman ji ka mandir kyu hota hai ) जानेंगे इसके पीछे जुडी जानकारी के बारेमें
इस जानकारी को लेकर आज का हमारा आर्टिकल बन रहा है लेकिन इस पोस्ट की शुरुआत करने से पहले आप सभी पाठकों से मैं एक निवेदन करना चाहूंगा कि अगर आपने अभी तक हमारे वेबसाइट को सब्सक्राइब नहीं किया है तो इसे आप सब्सक्राइब करले और हमारे पोस्ट को अपने दोस्तों के साथ जरूर शेयर करें तो चलिए दोस्तों आज हम लोग जानते है की आखिर आदिवासियों के गाँव के बाहर हनुमान जी का मंदिर क्यों होता है (gaon ke bahar hanuman ji ka mandir kyu hota hai)
भारत में वैसे तो कई जगह पर अक्सर अपने हनुमान जी की मुर्तिया और मंदिर देखे होंगे लेकिन क्या आप को पता है कुछ आदिवासी गांववाले क्यों अपने गॉव के बाहर हनुमान जी का मंदिर बनाते है क्यों की वे मानते है की हनुमान जी से बुरी शक्तिया हमेशा से ही डरती आयी है | वे गॉव वालो की बुरी ताकोतो से सुरक्षा करते है ऐसा उनलोगो का मानना है |
माना जाता है की अक्सर गॉव में काला जादू झाड़ फुक करने वाली बुरी तकते होती है | जिनसे लोगो की सुरक्षा स्वयं हनुमान जी करते है क्यों की रामनयन के अनुसार हनुमान जी आज भी जीवित है | और इसिलए कई गॉव वाले उन्हें पूजते है और मानते है |
इस कलयुग में केवल हनुमान जी ही एकमात्र भगवान है जिनसे काली ताकते डरती है इन ताक़तों को अपने गॉव में ना आने के लिए ही गॉव वाले मूर्ति या मंदिर की स्थापना करते और पूजते है | आजकल शहरो में तो वार के हिसाब से भगवनों को पूजा जाता है जिसमे हनुमान जी को लोग मंगलवार के दिन , गुरुवार को साई बाबा , सोमवार के दिन शंकर भगवन और शनिवार के दिन शनि भगवान को पूजते है लेकिन गॉव में ऐसा नहीं होता वे हर सुबह और शाम को हनुमान जी की पूजा आराधना करते है |
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रामायण से मिलता साक्ष
अगर हम लोग भगवानों के इतिहास की बात करें तो यही जो हनुमान जी जो है आपने इनका उल्लेख जो है वह ज्यादातर रामायण में मिलता है |
मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम जी जो है जब अपनी पत्नी सीता माता को जब ढूंढने के लिए जब वनो और जंगलों में जाते हैं |
तो वनों में उन्हें एक कम्युनिटी मिलती है एक समुदाय मिलता है और उन्हें समुदाय के जो गण प्रमुख जो थे वह सुग्रीव थे और उन्हीं के साथी जो थे वह हनुमान थे |
असल में ये जो गण प्रमुख जो थे वह आदिवासी गण प्रमुख थे आदिवासियों का जो कबीला हुआ करता था उस समय पर और उसी कबीलाई व्यवस्था के जो रखवाले जो उसी कबीला व्यस्था का जो एक गण होता है उसी गण के प्रमुख सुग्रीव थे और उन्हींके के साथी जो थे वह असल में हनुमान जी थे |
असल में यही जो हनुमान जी , सुग्रीव, बाली और अंगद जितने भी देवता थे ये सभी लोग देवता जो थे वह सभी आदिवासी लोग थे और इन्हीं का संबंध था मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम जी से जो कि सनातन धर्म के अनुयायी थे
श्री राम जी ने उनका सहयोग किया और सहयोग किया तो उनके बीच मित्रता हुई और मित्रता इतनी घनी हुई कि जब मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम को जब सनातन धर्म के अनुयायी जब याद करते हैं तो उनके साथ में आदिवासी गण प्रमुख हनुमान जी को भी याद किया जाता है
तो इसीलिए अगर हम लोग देखें आदिवासियों की बात करे हम लोग तो आदिवासी जितने भी है वे सभी हनुमान जी को याद करते हैं वह इसलिए याद करते हैं क्योंकि वह कहीं न कहीं आदिवासियों के पुरखे हैं और वो जो व्यक्ति थे वो जो व्यक्ति थे सर्व शक्तिमान थे उनकी दूसरी कथाएं
जो दूसरे ग्रंथ से मिलती है उनसे इत्तेफाक आदिवासी समाज नहीं रखता लेकिन हां आदिवासी समाज यह बिल्कुल कहता है कि आज जो हनुमान जी जो है वो आदिवासी गण प्रमुख थे और इसीलिए आदिवासी समाज जो है वो हमेशा उन्हें पुजता है
अपना आराध्य मानता है और इसीलिए सभी आदिवासी गांव के बाहर जो है वह हनुमान जी का मंदिर देखने को मिलता है |
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भारत के इस गाँव में नहीं होती हनुमान जी की पूजा
लेकिन भारत में कुछ ऐसे भी गॉव है जहा पर हनुमान जी की पूजा नहीं होती है जैसे की दुनागिरि गाँव, जो की उत्तराखंड राज्य के चामोली में स्थित है इस गॉव में हनुमान जी की एक भी मूर्ति या मंदिर नहीं है |
क्यों की माना यह जाता है की जब हनुमान जी लक्ष्मण के लिए संजीवनी बूटी लेने गयेथे वे इसी गांव में आये थे तब वाहा की एक आदिवासी महिला ने उन्हें पर्वत का वो हिस्सा दिखा था जहा पर बूटी मिलती है लेकिन समय कम होने की वजह से हनुमान जी पूरा का पूरा पर्वत ही ले गए थे इसीलिए इस गॉव के लोग हनुमान जी को आज भी नहीं पूजते है |
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