बसोहली पेंटिंग क्या है?

जोहर दोस्तों आदिवासी स्टेटस वेबसाइट में आप सभी का स्वागत है आज हम जानेंगे बसोहली शैली (basohli painting in hindi) के बारे में बसोहली शैली क्या है (basohli painting kya hai)? बसोहली शैली का इतिहास क्या है (basohli painting history in hindi)? इत्यादि के बारे में

Table of Contents

आइये एक नजर डालते हैं कि इस पोस्ट में आप क्या जानने वाले है

  • परिचय – Introduction
  • भौगोलिक स्थिति – Basohli Painting Jammu and Kashmir
  • कला संरक्षक राजागण –  Basohli Painting Protection
  • चित्रों के विषय – Basohli Painting Style
  • बसोहली शैली की विशेषताएं –  Features of Basohli Painting
  • बसोहली पेंटिंग को मिला GI टैग – Basohli Painting GI tag
  • बसोहली चित्रकला पेंटिंग की क़ीमत कितनी है – Basohli Painting Price  

बसोहली शैली का परिचय
(what is basohli painting)

माना जाता है की बसोहली शैली पहाड़ी शैली की एक बहुत ही महत्वपूर्ण व प्रमुख शैलियों में से एक है

पहाड़ी शैली की दो उपशैली ही सबसे ज्यादा लोकप्रिय हैं एक कांगड़ा व दूसरी बसोहली शैली

बसोहली शैली का प्रमुख केंद्र बसोहली गांव ही रहा है यहां के राजघराने में फली फूली यह कला अपने आंचल में बहुत सी सुंदर सुंदर दृश्य संजोए हुए है धार्मिक प्रकृतिक नारी व राजा महाराजाओं के चित्रों का अच्छा काम बसोहली शैली में देखने को मिलता है

बसोहली शैली की भौगोलिक स्थिति
(Basohli Painting Jammu Kashmir)

वर्तमान में बसोहली रावी घाटी की घाटी में स्थित एक छोटा सा गांव है यह वर्तमान में जम्मू के कठुआ जिले के अंतर्गत आता है

वैसे तो बसोहली क्षेत्र की दृष्टि से एक छोटा सा राज्य था परंतु सांस्कृतिक क्षेत्र में विशेष योगदान के कारण इसका एक विशेष महत्व है

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बसोहली शैली कला संरक्षण राजागण

इसमें हम जानेंगे के बसोहली शैली को किन किन राजाओं ने कैसा कैसा संरक्षण दिया और कहा तक पहुंचाया है उसके बारे में तो चलिए देखते हैं

बसोहली शहर बसोहली शैली का प्रमुख केंद्र रहा है जैसा कि बताया जा चुका है कि यह जम्मू राज्य के जसरोटा  जिले में एक तहसील के रूप में स्थित है

बसोहली राजा अपने आप को पांडवों का वंशज मानते थे सन 765 ईस्वी में कुल्लू में राजा भोगपाल ने इसकी स्थापना की थी

यहां की राजधानी बालौर या बल्लापुर थी जिसके कारण यह राजा स्वयं को बल्लाोरिया भी कहते थे

राजा कृष्णपाल के काल से चित्रों की परंपरा प्रारंभ हुई राजा कृष्ण पाल सर्वश्रेष्ठ अकबर के मुगल दरबार में 1560 ईस्वी में बहुमूल्य उपहार समिट उपस्थित हुआ था

कृष्णपाल के बाद उसका पुत्र भूपतपाल इसका राजा बना मगर उसका समकालीन नूरपुर का राजा जगतसिंह उससे जलता था

उसने मुगल सम्राट जहांगीर को भूपतपाल के विरुद्ध भड़का दिया जिसके फलस्वरूप भूपतपाल को मुगल कारागार में डाल दिया गया

परंतु भूपतपाल कारागार से भाग निकला और उसने अपना राज्य फिर से प्राप्त किया

आधुनिक नगर बसोहली की स्थापना राजा भूपतपाल ने की थी वह शाहजहाँ के दरबार में उपस्थित हुआ था

शाहजहाँ का सम्मान करते हुए भूपतपाल को एक चित्र में दिखाया गया है जो डोगरा आर्ट गैलरी जम्मू में सुरक्षित है

राजा भूपतपाल के पश्चात उसका कम आयु का पुत्र संग्राम पाल 1635 ईस्वी में गद्दी पर बैठा राजकुमार संग्राम पाल बहुत ही सुंदर व बड़ी बड़ी आँखों के युवराज थे

जब राजा संग्राम पाल का सम्मान शाहजहां के दरबार में हुआ तो शाहजहां के पुत्र दाराशिकोह की बेगमों ने उसे देखने की इच्छा प्रकट की

उनके सौंदर्य पर मुग्ध होकर बेगमों ने में कई उपहार दिए सम्बवतः इसी समय मुगल चित्रकारों से उनका परिचय हुआ होगा

इस शैली का सबसे अधिक विकास राजाकृपाल पाल के शासनकाल में हुआ राजाकृपाल विद्वान व कला प्रेमी राजा थे

Basohli  painting

Fact about Basohli Painting and images of Basoli

  • बसोहली शैली इतिहास में बसोहली की 8 वीं शताब्दी में स्थापना हुई।
  • बसोहली शैली चित्रकला यह छोटी चित्रकला की एक विशिष्ट शैली है जिसमें हिंदू पौराणिक कथाओं, लोक कला और फ़ारसी प्रभावों का एक अनूठा मिश्रण देखने को मिलता है।
  • बसोहली के वंशज अपने आप को पांडवों की संतान मानते थे।
  • कुल्लू राजवंश का राजकुमार ‘राजा भोगपाल(765)’ बसोहली राज्य का संस्थापक था।
  • बसोहली पेंटिंग अपने जीवंत रंगों, जटिल विवरण और अनूठी शैली के लिए जानी जाती हैं, जो बोल्ड रेखाओं, गहन चेहरे के भाव और समृद्ध अलंकरण की विशेषता दर्शाती है।
  • बसोहली का प्रथम शासक राजा ‘कृष्णपात्र था कृष्णपात्र के बाद भूपतपाल्र व संग्रामपात्र शासक रहे
  • हिंदपाल के पश्चात उनका पुत्र कृपालपाल (650) गद्‌दी पर बैठा। जिस प्रकार संसारचंद के
    समय कांगड़ा का स्वर्ण काल रहा, उसी प्रकार कृपाल्पाल के समय बसोहली अपनी उत्कर्षता
    पर थी।

बसोहली शैली के चित्रों के विषय
(Basohli Painting Style)

मुख्यतः बसोहली शैली के चित्र तीन विषयों पर बने हैं

  • धार्मिक चित्र
  • काव्य व रागमाला के चित्र
  • व्यक्ति चित्र

धार्मिक चित्र शैली

धार्मिक चित्र शैली में वैष्णव धर्म की विचारधारा और भक्ति भावना दिखलाई पड़ती है इस शैली में विष्णु तथा उनके दस अवतारों के चित्र प्राप्त होते हैं इस शैली में रामायण को भी चित्रित किया गया है

काव्य व रागमाला चित्र शैली

राजा कृपालपाल का प्रिय ग्रंथ काव्य ग्रंथ रस मंजरी था रस मंजरी में नायक नायिका श्रृंगार व रसों को सुंदरता से वर्णित किया गया है किंतु इसमें कृष्ण का वर्णन नहीं है

संभवतः राजा कृपालपाल ने ही चित्रकारों से रस रस मंजरी के चित्रों में कृष्ण को आदर्श प्रेमी के रूप में चित्रित करवाया होगा

कृपाल पाल के समय में मुख्य चित्रकार भानु दत्त ने रस मंजरी की सचित्र प्रति तैयार की थी

इसके अतिरिक्त जयदेव के गीत गोविन्द बारह मास और रागमाला पर आधारित चित्र भी बनाए गए हैं

इन बारह मास बलाग मालाओं के चित्रों में कृष्ण राधा को नायक नायिका के रूप में चित्रित किया गया है

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व्यक्ति चित्र शैली

इस शैली के संरक्षकों राजाओं के साथ साथ दरबारियों के सम्मानित सदस्यों जैसे विद्वानों, संगीतज्ञों, संतों के व्यक्ति चित्र भी बनाए गए हैं

बसोहली शैली की विशेषताए
(Features of Basohli Painting)

हाशिये तथा लेख

बसोहली शैली के चित्रों में हाशिए भी बनाए गए हैं यह हाशिये गहरे लाल रंग की मिट्टी से बनाए गए हैं यह हाशिये कहीं कहीं लाल रंग के स्थान पर पीले रंग की पट्टी में दिखाए गए हैं

रस मंजरी तथा गीत गोविंद के चित्रों के पीछे संस्कृत काव्य से संबंधित अंश लिखे हुए हैं

तकरी लिपि में हाशिए के ऊपरी भाग के उपरी भाग में शीर्षक भी दिए गए हैं

रंग

बसोहली शैली के चित्रों के आकर्षण का प्रमुख कारण इनके चटक व चमकीले रंग है यह रंग शुद्ध रूप से प्राथमिक विरोधी रंग के रूप में प्रयोग किए गए हैं

चित्रकारों ने लाल तथा तथा पीले रंगों को चमकदार व बिना मिलाए प्रयोग किया है जो दर्शकों को आकर्षित करता है

चित्रकारों ने रंगों का प्रयोग प्रतीकात्मक आधार पर किया है जैसे कि

  • पीले रंग का जो प्रतीक के रूप में उन्होंने प्रयोग किया है वह किया है बसंत तथा सूर्य के ताप या प्रकाश वर्ष का प्रतीक
  • प्रेम ज्वार का प्रतीक
  • नीले रंग – कृष्ण , वर्षा के बादलों के लिए
  • लाल रंग का प्रयोग प्रेम के देवता, श्रृंगारिक दृश्यों के लिए किया गया है

प्रकृति

प्रकृति का प्रतीकात्मक प्रयोग हुआ है जो चित्रों से पूरी तरह जुड़ा रहता है

क्षैतिज रेखा चित्र में ऊपर की ओर दिखलाई गई है शायद गहराई को देखने के लिए ऐसा किया गया है बृक्ष, बादल, सरोवर, बिजली, भवन व फूल पत्तियां सभी आलंकारिक हैं

ज्यादातर आम, मजनू, अखरोट मोरपंखी के वृक्ष बनाए गए हैं

बादल व वर्षा

इस शैली की एक और विशेषता इसमें चित्रित किए गए बादल, बिजली व बसा है

बादलों को प्राय: पतली, लम्बी, लहरदार बत्तियों या चक्राकृतियों के माध्यम से दिखाया गया है बिजली को सोने के रंग से सर्पाकार बनाया गया है हल्की बारिश को सफेद रंग की बिन्दुओं से व तेज बारिश को सीधी रेखाओं से दिखाया गया है

पानी में कमल के फूलों को भी बनाया गया है कभी कभी इनके साथ बगुले भी बनाए गए हैं जिससे नदियों सरोवरों का किनारा और अधिक सुंदर बन गया है

पशु

इस शैली के चित्रों में पशुओं का भी काफी अंकन हुआ है चित्रों में पतली दुबली गायों का अंकन हुआ है जिनके कान लंबे व सिंग मुड़े हुए हैं इस नस्ल की गाय आज भी जम्मू में पाई जाती है

वस्त्र व पहनावा

इस शैली में पुरुषों व महिलाओं के परिधान अलग चित्रित हुए हैं पुरषों के परिधान में औरंगजेब कालीन घेरदार जामा पीछे झुकी हुई पगड़ी है

वहीं महिलाओं को कसा हुआ सुथान (यानी की पजामा), चोली व झीना पेशबाज पहनाया गया है
स्त्रियों को कभी कभी छिटदार घाघरा, चोली और पारदर्शी दुपट्टा ओढ़े दिखाया गया है कृष्ण को पीले धोती पहने ही बनाया गया है और सिर पर मुकुट मोरपंखी चित्रित किया गया है

मानवाकृतियाँ 

इस शैली की मुखाकृतियाँ मौलिक हैं इन्हें स्थानीय लोक कला की सद्भावना माना जाता है शैली का विकास इन्हीं लोक कला के आधार पर विकसित हुआ है ढलवा ललाट, माथे से निकलती हुई ऊंची लंबी नाक नेत्रों को कमलाकर रूप प्रदान किया गया है

बादामी रंग के शरीर वाली नायिकाएं बसोहली शैली के चित्रकारों को प्रिय थी नारी आकृतियां पुरुषों की बाती ओजपूर्ण बनाई गई है चेहरे प्रायः एक चश्म ही अंकित किए गए हैं

आभूषण

इस शैली के चित्रों में आकृतियों को आभूषण से सजाया गया है यहां तक कि राक्षसों को भी आभूषणों से युक्त बनाया गया है चित्रों में विभिन्न रत्नों को दिखाया गया है जिसमें की मुकुट, हार, कुंडल,भुजबंद आदि प्रमुख हैं

भवन

बसोहली शैली में भवनों को भी चित्रों में बनाया गया है आलेखन युक्त दरवाजे, जालीदार खिड़कियां, नक्काशीदार लकड़ी या पत्थर के स्तंभों से युक्त भवन मुगल कालीन शैली में मिलते हैं

दीवारों को सुंदर ताखो या आलो से सजाया गया है

बसोहली पेंटिंग को मिला GI टैग
( Basohli Painting GI tag )

बसोहली चित्रकला को भारत में GI टैग याने की भौगोलिक संकेत (Geographical Indication) एक प्रकार का बौद्धिक संपदा अधिकार होता है जो उन वस्तुओं को दिया जाता है जो एक विशिष्ट भौगोलिक स्थान पर उत्पन्न होती हैं और उनकी वस्तु की विशिष्ट प्रकृति, गुणवत्ता और विशेषताएं होती हैं जो उस स्थान से जुड़ी होती हैं।

बसोहली पेंटिंग जम्मू क्षेत्र का पहला स्वतंत्र जीआई टैग है। बसोहली पेंटिंग की जीआई टैगिंग की प्रक्रिया दिसंबर 2020 में हस्तशिल्प और हथकरघा विभाग के परामर्श और समर्थन से नाबार्ड (NABARD) द्वारा शुरू की गई थी। तब केंद्र शासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर का उत्पाद उन 33 उत्पादों की सूची में शामिल था जिन्हें 31 मार्च 2023 को जीआई टैग प्राप्त हुआ था।

बसोहली चित्रकला पेंटिंग की क़ीमत कितनी है
( basohli painting price ) 

यह चित्रकला आप लोगो को दुनिया के फेमस e commerce स्टोर यानि के अमेज़न पर लगभग 1000 से लेकर 2000 की कीमंत में मिल जाती है |

अन्तः में

तो दोस्तों इस पोस्ट में इतना ही उम्मीद करता हूं कि मेरे इस इन्फोर्मटिव बसोहली शैली क्या है ( basohli painting kya hai ) इस पोस्ट से आपको पहाड़ी चित्रकला शैली से संबंधित बहुत सी उपयोगी जानकारी मिली होगी और कमेंट्स करके अपने सुझाव जरूर शेयर करें इस पोस्ट को पड़ने के लिए आपका धन्यवाद

FAQ

बसोहली स्कूल का प्रसिद्ध चित्रकार कौन है?

कला प्रेमी देवीदास को बसोहली शैली का प्रसिद्ध चित्रकार माना जाता है।

बसोहली चित्रकला की मुख्य विशेषताएं क्या हैं?

इन चित्रों की खास विशेषताएं चित्र के सीमाओं में लाल, पीले और नीले जैसे चमकीले और बोल्ड रंगों के साथ-साथ आम तौर पर सपाट पृष्ठभूमि का उपयोग है। अन्य विशिष्ट भाग चेहरे की विशेषताएं थीं – एक प्रमुख नाक और कमल के आकार की आंखें है।

बसौली शैली के सौंदर्य को सर्वप्रथम किसने पहचाना

राजा किरपाल पाल

बसोहली पेंटिंग का दूसरा नाम क्या है?

कांगड़ा पेंटिंग

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