मध्य प्रदेश की एक पहचान उसकी अनूठी जनजातीय संस्कृति है। मध्य प्रदेश में लगभग 24 जनजातियां यहां निवास करती हैं | जनजाति यह शब्द दो शब्दो से जुड़कर बना है “जन” यानिकि जनता ओर “जाति” यानिकि बोली होता है | जनजातीय लोगों को आदिवासी भी कहा जाता है। ये दोनों शब्द इन जातियों की प्राचीनता का बोध कराते हैं। भारतीय संविधान की अनुसूची में अंकित होने के कारण ही आदिवासी समुदायों को अनुसूचित जनजातियाँ कहा जाता है। संविधान के अनुच्छेद 342 में इन्हें ‘ अनुसूचित जनजाति ‘ के रूप में अधिसूचित किया गया है।
दोस्तों क्या आप जानते है मध्यप्रदेश में निवास करती हैं भारत की सर्वाधिक जनजातियां जिहा साल 2011 की जनगणना के अनुसार पुरे भारत में जनजातियों (Tribes of madhya pradesh in Hindi) का प्रतिशत मध्यप्रदेश में 21.1% है जो की सर्वदिक है
मध्य प्रदेश की प्रमुख जनजातियाँ (madhya pradesh ki pramukh janjatiyan)
भील जनजाति (bhil janjati):
- यह मध्य प्रदेश की सबसे बड़ी जनजाति है। भील मध्य प्रदेश की प्राचीनतम जनजातियों में से एक मानी जाती है। पश्चिमी मध्य प्रदेश के झाबुआ, अलीराजपुर, धार, खरगौन, बड़वानी, रतलाम आदि ज़िलों में इनकी आबादी अधिक है।
- भील शब्द की उत्पत्ति तमिल भाषा के ‘तिल्लुवर’ शब्द से हुई है, जिसका अर्थ होता है तीर-धनुष। चूँकि, भील लोग तीर-धनुष का उपयोग करते हैं, इसलिये इन्हें भील कहा जाता है।
- यह जनजाति मध्य प्रदेश के अलावा महाराष्ट्र, राजस्थान तथा गुजरात में पाई जाती है। यह जनजाति मुख्यतः भीली भाषा बोलती है जो गुजराती, राजस्थानी तथा मराठी का मिश्रित रूप हे।
- उपजातियाँ : बरेला, रथियास, भिलाला, पटालिया, बैगास
- पर्व : भगोरिया, गल, जातरा, चलावंणी
- नृत्य : डोहा, भगोरिया, घूमर, बड़वा, गौरी
भौगोलिक वितरण : भीलों का निवास मध्य प्रदेश के पश्चिमी भाग के झाबुआ, धार, अलीराजपुर, खरगौन एवं बड़वानी ज़िलों में है। इस क्षेत्र को प्रदेश का सबसे बड़ा जनजातीय परिक्षेत्र होने का गौरव भी मिला हुआ है। भीलों के मकानों को ‘कृ” कहा जाता है।
इन्हे भी पढ़े :
मध्य प्रदेश की प्रमुख भाषा एवं बोलियाँ
मध्य प्रदेश के प्रमुख जनजातीय व्यक्तित्व
भारत आदिवासी पार्टी (Bharat Adivasi Party)
शारीरिक विशेषताएँ :
- भीलों का रूप-रंग प्रोटोऑस्ट्रेलॉयड लगता है। यद्यपि कुछ विद्वान इन्हें द्रविडियन या कोल मूल का भी बताते हैं। भील सामान्य रूप से कम ऊँचाई के या ठिगने होते हैं। इनका रंग भूरा होता है तथा देखने में सुंदर लगते हैं।
- शरीर सुडौल, मज़बूत एवं सुगठित होता है। भील जनजाति की दो उपजनजातियाँ हैं- 1. उजले भील, 2. कालिया भील।
- भील समाज में उजले भील खुद को उच्च श्रेणी का कहते हैं, इन्हें “भिलाला” कहा जाता है। “उजले भील” अपनी कन्या का विवाह ‘कालिया भील’ से नहीं करते हैं, परंतु कालिया भील की कन्या से विवाह कर लेते हैं।
- ‘उजले भील’ या ‘भिलाला’ की उत्पत्ति का कारण राजपूत राजाओं के भील कन्याओं से वैवाहिक संबंध स्थापित करने को माना जाता है।
गोंड जनजाति (gond janjati):
- गोंड मध्य प्रदेश की दूसरी सबसे बड़ी जनजाति तथा भारत की सबसे बड़ी जनजाति है। गोंड शब्द का उद्भव तेलुगु शब्द कोंड से हुआ है, जिसका शाब्दिक अर्थ ‘पहाड़॒’ होता है।
- ये पर्वतीय क्षेत्रों में निवास करते हैं, जिसके फलस्वरूप इन्हें गोंड की संज्ञा दी जाती है।
भौगोलिक वितरण :
- गोंड जनजाति मुख्य रूप से नर्मदा के दोनों किनारों पर विंध्य ओर सतपुड़ा अंचल में घने रूप में बसी हुई है। यह जनजाति मुख्यतः बैतूल, छिंदवाड़ा, होशंगाबाद, सागर, दमोह, जबलपुर, मंडला एवं बालाघाट ज़िले में निवास करती है।
- मध्य प्रदेश के बड़े हिस्से में गोंड शासकों का साम्राज्य रहा हैं जिनमें प्रभुख रूप से रानी दुर्गावती, शंकरशाह व रघुनाथ शाह के नाम उल्लेखनीय हैं। गोंड राजाओं के बावनगढ़ प्रसिद्ध हैं, गोंड राजा तख्त बुलंदशाह ने नागपुर शहर की स्थापता कर अपनी राजधानी देवगढ़ से नागपुर स्थानांतरित की।
- इनके प्रमुख देवता हैं : बड़ादेव (सृजन करने वाली शक्ति), दूल्हा देव (शादी-विवाह के सूत्र में बांधने वाला देव), बूढ़ा देव, कुलदेवता (जिनमें उनके माता-पिता को भी सम्मिलित किया जाता है), भीवासू आदि।
- इसके अतिरिक्त ग्रामों के देवता के रूप में खेरमाई (गाँव की माता), ठाकुर देव, नारसेन (ग्राम की सीमा पर पहरा देने वाला देव), ग्राम के लोगों की सुरक्षा, फसलों की सुरक्षा, पशुओं की सुरक्षा, बीमारी और वर्षा आदि के भिन्न-भिन्न देवी-देवता हैं।
- गोंडों का भूत-प्रेत और जादू-टोने में अत्यधिक विश्वास है।
- गोंड जनजाति में “दूध लौटावा” प्रथा प्रचलित है, अर्थात इनमें मामा एवं बुआ को लड़की से, विवाह करना श्रेष्ठ माना ज़ाता है।
- गोंड जनजाति प्रकृतिपूजक होती है। ये लोग ‘नाग’ के साथ-साथ ‘पीपल’ के वृक्ष की पूजा भी करते है।
बैगा जनजाति (baiga janjati):
- बैगा भारत के मध्य प्रदेश, झारखंड एवं छत्तीसगढ़ राज्यों में पाई जाने वाली जनजाति है। यह मध्य प्रदेश की आदिम एवं प्रमुख जनजातियों में से एक है।
- इस समुदाय के लोग स्वयं को द्रविड़ के वंशज मानते हैं। बैगाओ में मुंडा जतजाति की विशेषताएँ देखने को मिलती हैं।
- बैगा घने वनों में रहने के आदी होते है। इनके गाँव छोटे होते हैं। बैगाओं के घरों की दौवारें बाँस से बनी-होती हैं एवं छत में खपरे के स्थान पर घास-फूस का प्रयोग होता है।
- बेगाओं को जंगल और जड़ी-बूटियों के बारे में बहुत गहरी जानकारी होती है, ये आज भी आधुनिक दवाओं से ज़्यादा जंगल की औषधियों पर निर्भर रहते हैं। यही वजह है कि इन्हें ‘गुनिया’ और ‘ओझा’ का पर्याय माना जाता है।
- बैगा कृषि कार्य में हल का उपयोग नहीं करते, क्योंकि उनकी ऐसी मान्यता है कि इससे धरती माता को चोट लगती है और उन्हें पीड़ा होती हे। मंडला में लेगाओं का एक समूह ‘भारिया बैगा’ कहलाता है। बैगासमाज में ‘भारिया बैगाओं’ को हिंदू ‘पुरोहितों’ के बराबर महत्त्व मिलता है।
भौगोलिक वितरण :
यह जनजाति मुख्यरूप से डिंडोरी, मंडला, शहडोल, उमरिया , अनूपपुर ओर बालाघाट ज़िले में निवास करती है। इनका निवास क्षेत्र सतपुड़ा और मैकाल पर्वत श्रेणियों में है। बैगाओं का ‘बैगाचक क्षेत्र’ विख्यात है।
कोल जनजाति (kol janjati):
- कोल शब्द कौ मूल व्युत्पत्ति संस्कृत शब्द ‘कोला’ से मानी जाती है। कोल जनजाति मध्य प्रदेश के विंध्य कैमूर क्षेत्र की मूल निवासी है तथा यह रीवा क्षेत्र को अपनी रियासत बताती है।
- कोल मुंडा समूह की एक प्रमुख जनजाति है। रीवा के बरदीराजा क्षेत्र के कुरली को कोल जनजाति का पूर्व मूल निवास स्थान माना जाता है।
- वर्तमान में ये रीवा, सतना, सीधी, जबलपुर और शहडोल ज़िलों में निवास करती है। कोल जनजाति को मैक्समूलर ने कोल या ‘कोलारियन’ कहा है।
- कोल एक आदिम जनजाति है, जिसका उल्लेख पौराणिक ग्रंथों में भी मिलता है।
भारिया जनजाति (bhariya janjati):
- भारिया द्रविडियन परिवार की प्रमुख जनजाति है, जिसे प्रदेश की विशेष पिछड़ी जनजाति घोषित किया गया है।
- भारिया जनजाति का विस्तार मुख्य रूप से मध्य प्रदेश के छिंदवाड़ा, सिवनी, मंडला, जबलपुर जिलों में है। छिंदवाड़ा जिले के तामिया विकास खंड के पातालकोट के भारिया सदैव आकर्षण का केंद्र रहे हैं।
- भारिया जनजाति का एक छोटा-सा समूह छिंदवाड़ा ज़िले को पातालकोट में सदियों से रह रहा है। इस क्षेत्र के निवासी शेष दुनिया से अलग-थलग एक ऐसा जीवन जी रहे हैं जिसमें उनकी अपनी मान्यताएँ, संस्कृति और अर्थव्यवस्था है।
- उपजातियाँ : भुमिया, पंडो तथा भूँईहार हैं। भारिया जनजाति को मुख्य रूप से गोंड जनजाति की ही उपशाखा या भाग माना जाता है।
सहरिया जनजाति (sahriya janjati):
- सहरिया जनजाति मध्य प्रदेश के उत्तर-पश्चिम ज़िलों में निवास करती है। यह ग्वालियर एवं चंबल संभाग के ज़िलों में प्रमुख रूप से पाई जाती है। इन जिलों में सहरिया जनजाति की लगभग 84.65% जनसंख्या निवास करती है।
- पुराने समय में यह समस्त क्षेत्र वनाच्छादित था और यह जनजाति शिकार एवं संचयन से अपना जीवनयापन करती थी, किंतु अब अधिकांश सहरिया या तो छोटे किसान हैं या मज़दूर। ये बीड़ी और शराब के विशेष शौकीन हैं।
भौगोलिक वितरण :
- सहरिया मुख्यरूप से मध्य प्रदेश के उत्तर-पश्चिम क्षेत्र, विशेषकर शिवपुरी, गुना, मुरैना, राजगढ़, रायसेन, विदिशा क्षेत्रों में निवास करते हैं।
- इनका घनत्व ग्वालियर संभाग में सर्वाधिक है। सहरिया के निवास स्थान को ‘ सहराना ‘ कहते हैं।
पारधी जनजाति (pardi janjati):
- ‘ पारधी ‘ शब्द मराठी शब्द पारध का तद्भव रूप है, जिसका अर्थ होता है- आखेट य़ा शिकार। सामान्य तौर पर पारधी जनजाति के साथ बहेलियो को भी सम्मिलित कर लिया जाता है।
- मध्य प्रदेश के एक बड़े भाग में पारधी जनजाति पाई जाता है। पारधी और शिकारी में मुख्य अंतर यह है की शिकारी आखेट करने में बंदूकों का उपयोग करते है, जबकि पारधी इसके बदले जाल का प्रयोग करते हैं।
- भील पारधी रायसेन, भोपाल और सीहोर ज़िलों में पाए जाते हैं।
अगरिया जनजाति (aghariya janjati):
- अगरिया जनजाति मुख्य रूप से गोंड जनजाति वाले क्षेत्रों मे ही निवास करती है। गोंड क्षेत्र में ये आदिवासी लुहार कहलाते हैं।
- अगरिया जनजाति आदिमकाल से ही लौह अयस्क को साफ करके लौह धातु का निर्माण करती रही है।
- अगरिया मध्य प्रदेश के शहडोल, मंडला तथा छत्तीसगढ़ के दंडकारण्य जिलों में पाए जाते हैं।
- इनके प्रमुख देवता ‘ लोहासुर ‘ हैं। लोक मान्यता के अनुसार इनका निवास धधकती हुई भट्ठियों यें जाना जाता है।
- इनका मुख्य भोजन मोटे अनाज और सभी प्रकार के माँस हैं। सूअर का माँस ये विशेष चाव से खाते हैं।
- विवाह में वधू शुल्क देने का प्रचलन है। समाज में विधवा विवाह करने की भी स्वीकृति है।
- अगरिया उड़द की दाल को अत्यंत पवित्र मानते हैं और विवाह में इसका उपयोग शुभ माना जाता है।
- इनमें गोदने गुदवाने की परंपरा है।
खैरवार जनजाति (kharwar janjati):
- मुंडा जनजाति समुदाय कौ एक प्रमुख जनजाति खैरवार है। राज्य के विंध्य क्षेत्र एवं मंडला में कत्था निकालने वाली इस जनजाति को खैरुआ भी कहते हैं। ये कत्था के अतिरिक्त वनोपज संचयन तथा मज़दूरी का कार्य भी करते हैं।
- खरियागढ़ ( कैमूर पहाड़ियों ) को यह अपना मूल निवास स्थ्रान मानते हैं।
- खैरवार के विभिन्न निवास क्षेत्रों में इनके जीवन स्तर में काफी विभिनताएँ पाई जाती हैं।
- खैरवार जनजाति ने एक ओर छोटानागपुर क्षेत्रों में सवर्ण या उच्च जातीय स्तर को प्राप्त किया है तो दूसरी ओर मूल निवास स्थान के कई भागों में ये विशिष्ट धंधों वाले आदिवासी के रूप में रह गए हैं।
पनिका जनजाति (panika janjati):
- द्रविड़ समुदाय की एक मुख्य जनजाति पनका है। यह जनजाति छोटनागपुर क्षेत्रों में ‘पाने’ के नाम से भी जानी जाती है।
- इस जनजाति के लोग प्रमुख रूप से विंध्य क्षेत्र एवं छत्तीसगढ़ में पाए जाते हैं।
- कुछ लोगों का ऐसा मानना है कि कबीर के जन्म के पश्चात् उनका पालन-पोषण एक पनका महिला द्वार किया गया था। आजकल पनका कबीरपंथी की संख्या में वृद्धि हुई है, जिन्हें ‘ कबीरहा ‘ भी कहते हैं।
- यह जनजाति मदिरा, माँस इत्यादि से परहेज़ करती है।
- कबीरहा पनका के धर्मगुरु को ‘ मंति ‘ कहते हैं। इसमें पुरुष एवं स्त्रियाँ दोनों ही गले में कंठी तथा तन पर श्वेत वस्त्र धारण करते हैं।
बंजारा जनजाति (banjara janjati):
- बंजार भारत की प्राचीन जनजाति है। प्रदेश के कुछ क्षेत्र निमाड, मालवा तथा मंडला आदि में यह जनजाति स्थायी रूप से निवास करती है।
- बंजारों का मूल निवास स्थान राजस्थान को माना जाता है। यह जनजाति अपने को राजपू्तों का वंशज मानती है। तलवार नृत्य एवं डंडा बेली नृत्य इस जनजाति के प्रमुख पारंपरिक नृत्य हैं।
- पशुचारण बंजारा जनजाति का प्रमुख व्यवसाय है। इसे घुमंतू जनजाति भी कहते हैं।
- इस जनजाति का रहन-सहन व वेशभूषा राजस्थानी संस्कृति से साम्यता रखती है। इस जनजाति कौ महिलाएँ सौंदर्य प्रसाधन का प्रयोग सर्वाधिक करती हैं।
- ‘ ‘गणगौर ‘ बंजार जनजाति का प्रमुख त्योहार है, जो सावन के माह में मनाया जाता है। उंजारे सिख धर्म से सर्दाधिक प्रभावित होते हैं।
- इनके काफिले को ‘टांडा’ कहते हैं। किसी टांडे क॑ मुखिया या सरदार को नायक कहते हैं।
कोरकू जनजाति (korku janjati):
- कोरकू मध्य प्रदेश को प्रमुख जनजाति है। यह जनजाति प्रदेश के दक्षिणी ज़िलों होशंगाबाद, बेतूल, छिंदवाड़ा, हरदा तथा पूर्वी निमाड़ में निवास करती हैं।
- कोरकू जनजाति को कोलेरिबत जनजाति की एक प्रमुख शाखा के रूप में मानते हैं।
- यह जनजाति पितृसत्तात्मक होती है। इस जनजाति में गौत्र चिह या टोटम का विशेष महत्त्व है, क्योंकि इनमें समगोत्री विवाह निषेध
- इस जनजाति की सबसे प्रचलित प्रथा लमसेना है, जिसमें शर्तों के तहत दामाद को ससुर के घर पर रहना पड़ता है।
- इस जनजाति का मुख्य व्यवसाय कृषि है। कोरकू जनजाति में भू-स्वामी को राजकोरकु तथा शेष लोगों को पोथारिया कोरकू कहते हैं।