कलमकारी चित्रकला क्या है जाने कैसे बनाते है

हेलो दोस्तों आज हम इस पोस्ट में जानेंगे कि कलमकारी पेंटिंग क्या होती है | भारत की फेमस पेंटिंग जो पूरी तरह से नैचुरली बनाई जाती है |

इस पोस्ट की महत्वपूर्ण बातें : 

  • कलमकारी कला क्या है
  • इसे बनाने की विधियाँ क्या है
  • इसकी शैलियाँ क्या है
  • श्री कला हस्तशैली
  • मछीलि पटट्नम कलमकारी
  • करुप्पुर कलमकारी पेंटिंग और कल्लाकुरिची को मिला जीआई टैग
  • कल्लाकुरिची कलमकारी
  • करुप्पुर कलमकारी पेंटिंग क्या है
  • कलमकारी पेंटिंग में क्या खास बात है

कलमकारी पेंटिंग क्या है ( What is kalamkari painting in hindi )

कलमकारी आंध्र प्रदेश की अत्यंत प्राचीन लोक कला है जैसा कि नाम से स्पष्ट है कि यह कलम की कारीगरी है इसकी जड़ें आंध्र प्रदेश के श्रीकलाहस्ती और मछलीपुरम नामक नगरों में है इस चित्रकला में  सूती कपड़े पर रंगीन ब्लॉक से छापकर बनाई जाती है। जिसमे सब्जियों के रंगों से धार्मिक चित्र बनाए जाते हैं।

श्रीकलाहस्ती में आज भी कलमकारी के लिए कलम का प्रयोग होता है जबकि मछलीपुरम में ठप्पो का चलन है खास करके इस चित्राकला को भारत और ईरान में काफी पसंद किया जाता है

कलमकारी पेंटिंग की शैलियाँ (Kalamkari painting style)

भारत में इसकी दो विशिष्ट शैली है 

  • श्रीकलाहस्ती शैली (Srikalahasti style) 
  • मछलीपटटनम शैली (Machilipatnam style)

कलमकारी का अर्थ (What is meaning of kalamkari)

कलमकारी अरबी और फारसी के शब्दों से मिलकर बना है कलम से नक्काशी कहना कलम की कारीगरी बेल बूटे बनाना लेखन

कलम से किया हुआ काम जैसे नक़्क़ाशी बेल बूटा कलम की सहायता से की जाने वाली कारीगरी जैसे बर्तन या कागज आदि पर की जाने वाली कारीगरी

अन्य अनेक लोक कलाओं की तरह इस कला को भी स्थानीय मंदिरों का आश्रय प्राप्त हुआ है मानव आकृतियों और चित्रों में आज भी पुराण और रामायण के प्रसंगों को चित्रित किया जाता है

कलाकृतियों के किनारों को फूल पत्तियों के आकस्मिक नमूनों से सजाया जाता है

कलमकारी पेंटिंग बनाने की विधि (Process to make kalamkari painting)

सर्वप्रथम वस्त्र को रात भर गाय के गोबर के घोल में डुबोकर रखा जाता है अगले देने इसे  धूप में सुखाकर दूध मांड के घोल में डुबोया जाता है

बाद में अच्छी तरह से सुखाकर इसे नरम करने के लिए लकड़ी के दस्ते से कूटा जाता है इस पर चित्रकारी करने के लिए विभिन्न प्रकार के प्राकृतिक पौधों पत्तियां आदि की कलाएं बनाई जाती है

इस कला में आमतौर पर पूरा परिवार संलग्न रहता है परिवार का मुखिया ही इन कलाकारों का गुरु और मालिक होता है यह गुरु मुख्य चित्र को सफेद सूती कपड़े पर कलम से बनाकर कलम कार्य को प्रारंभ करता है

इसके बाद परिवार के अन्य सदस्य इसमें रंग भरते हैं इन रंगों को वेजेटेबल डाई या वनस्पति रंग कहा जाता है और इनमें रसायनों का प्रयोग नहीं होता है

कपडे पर आकृतियों को उभारने के लिए राल और गाय के दूध के मिश्रण में एक घंटा भिगोकर रखा जाता है और इस पर खमीरी गुड़ में पानी मिलाकर बांस की कलम से चित्र की रूप रेखा खींच दी जाती है

जहां पर रंग भरना है वहां फिटकिरी का घोल लगा दिया जाता है इसके बाद कपड़े के एक  मिश्रण में भिगोया जाता है जिसकी प्रतिक्रिया से चित्र के रंग भरकर दिखाई देने लगते हैं

विभिन्न प्रकार के प्रभावों को उत्पन्न करने के लिए गोबर बीज फूल और पत्तियों का प्रयोग किया जाता है

कलमकारी से चित्रित कपड़ों के परिधान ,पर्दे , बिस्तर की चादर दीवारों पर लगाने के चित्र से लेकर लैंप शेड तक सभी कुछ बनाया जा सकता है

इन्हें भारत की सरकारी हस्त कला की दुकानों में आसानी से प्राप्त किया जा सकता है

श्री कला हस्ती शैली क्या है

आंधप्रदेश में तिरुपति  के निकट श्रीकालाहस्ती मंदिर उत्सवो  या दीवारों पर लटकने  वाली चित्र बनाने के काम में आने वाला कपड़ा कलमकारी बनाने में विशेषज्ञता प्राप्त की है

इसमें रामायण, महाभारत महाकाव्य और पुराणों की कहानियां एक निरंतर कथा के रूप में पेंट की जाती है जिसमें प्रत्येक मुख्य प्रसंग एक अलग आयत में रखा जाता है कभी कभी कहानियों के छोटे छोटे प्रसंग भी पेंट किए जाते हैं

पेंटिंग के नीचे उसका अर्थ स्पष्ट करने हेतु उससे पहले संबंधित तेलुगु कविताएं भी दी जाती है कहानियों को दृष्टांत देने वाले प्रारूप में संक्षिप्त करने के लिए बहुत हद तक काल्पनिक और तकनीकी कौशल की आवश्यकता होती है

मास्टर्स शिल्पकार मायरो बालन उपचारित कपड़े पर इमली की लकड़ी से बनी चारकोल डंडियों कदम से रूपरेखा बनाते हैं वह  पारंपरिक डिजाइन और नमूना और कई देवी देवताओं की मूर्तियों के विवरण से प्रेरणा लेते हैं इनके रंग वनस्पति और खनिज स्रोतों से प्राप्त होते हैं मुख्य रंगों में काला नीला लाल और पीला रंग शामिल होता है

फिटकरी के उपयोग इन रंगों को पक्का करने के लिए किया जाता है भगवान की रंग नीले राजस्व और दुष्टों का रंग लाल हरे रंगों से रंगे जाते हैं पीले का उपयोग स्त्रियों और आभूषणों को चित्रित करने में किया जाता है लाल रंग का उपयोग अधिकतर बैकग्राउंड के लिए किया जाता है

कला हटाने के लिए सूती कपडे को बहते पानी में डुबोया जाता का है समय के साथ कदम मिलाते हुए चित्रकार आगमन डिजाइनर बना रहे हैं यह कला मुख्यता श्रीहस्तीकला में की जाती है

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मछीलि पटट्नम कला शैली  (Machilipatnam  style )

आंध्र प्रदेश  के एक स्थानीय मछली पकड़ने के कृष्णा जिले की मछीलि पटट्नम में जहां कपड़े पर छपाई के लिए लकड़ी के सांचे का उपयोग होता है

लेकिन पीले नीले और लाल रंग को हाथ से पेंट किया जाता है देश के दक्षिणी कोने में स्थित कालाहस्ती क्षेत्र में रहने बालिजा समुदाय द्वारा कालाहस्ती पेंटिंग की परंपरा की शुरुआत की गई थी 14 वी शताब्दी से चली आ रही इस परंपरा का बीसवीं सदी की शुरुआत में भारी पतन हो गया था यह पतन इतना अधिक हुआ था कि 1950 के  दशक में इस समुदाय में इस कला को करने वाले केवल जोनालगादा लक्ष्मैया ही रह गए थे

करुप्पुर कलमकारी पेंटिंग और कल्लाकुरिची को मिला GI टैग

तो सबसे पहले हम जान लेते हैं कि जीआई टैग क्या है जीआई टैग का फुल फॉर्म है जियोग्राफिकल इंडिकेशन टैग

यह टैग किसी भी उत्पाद को उसकी भौगोलिक पहचान दिलाता है सीधे शब्दों में कहें तो जीआई टैग मिलने के बाद कोई भी वस्तु या कला विश्व के किसी भी कोने में जायेगी तो जिस क्षेत्र यह कला या वस्तु होगी उसको एक पहचान मिल जाती है और उस कला या वस्तु की मांग बढ़ जाती है और इससे जुड़े लोगों को रोजगार मिलने में मदद मिलती है फिलहाल जी आई तेज दस सालों के लिए होता है जिसे बाद में रिन्यू कराना पड़ता है

कल्लाकुरची  बुड नक्काशी (Kallakuruchi  wood carvings)

कल्लाकुरची लकड़ी की नक्काशियो नक़्क़ाशी डिजाइन और गहनों के लिए जानी जाती है ये मदुरै क्षेत्र से संबंधित है पारंपरिक डिजाइनों का उपयोग करके मंदिर से संबंधित वस्तुओं को तराशने माहिर कारीगरों द्वारा की जाती है

करुप्पुर कलमकारी पेंटिंग क्या है (Karuppur Kalamkari painting in hindi)

पारंपरिक डाई पेंडेंट आलंकारिक और पैटर्न वाले कपड़े करुप्पुर कलमकारी पेंटिंग कहलाती है यह पेंटिंग एक सूती कपड़े पर बांस के पेड़ और नारियल के पेड़ के तने से बनी पेन या वृक्ष  का उपयोग करके बनाई जाती है

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कलमकारी पेंटिंग में क्या खास बात है

कलमकारी पेंटिंग को एक उपचारकारी कपड़ा भी माना जाता है , क्योंकि रंग, रूपांकन और जादुई रूपों का वर्णन एक ऐसी आभा पैदा करता है जो किसी व्यक्ति को शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक रूप से ठीक करने का काम करता है। कलमकारी चित्रकला में केवल प्राकृतिक रंगों का उपयोग किया जाता है, जो इमली की कलम से सूती या रेशमी कपड़े पर हाथ से की जाने वाली पेंटिंग की एक प्राचीन शैली है।

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