हेलो दोस्तों आदिवासी स्टेटस ब्लॉग परिवार में आप सभी का हार्दिक स्वागत है जय जोहर जय आदिवासी | क्या आप के मन मे भी ( Mithila painting kya hai ) क्या है , (madhubani chitrakala kya hai) ओर् (madhubani painting kya hota hai) इस तरः के सवाल आ रहे है, यदि हा तो आयिये आज हम जानते है मधुबनी या मिथिला पेंटिंग के बारे मे जानकारी
तो चलिए आज जरा जाना जाए बिहार की सांस्कृतिक विरासत के अंदर झांक कर देखा जाए तो बिहार के अंदर सांस्कृतिक विरासत में हम लोगों के पास सैकड़ो अनमोल धरोहरें हैं
सांस्कृतिक विरासत में इसी अनमोल धरोहर में एक हैं बिहार में फेमस मधुबनी चित्रकला तो चलिए जरा मधुबनी चित्रकला के बारे में जानते है |
मधुबनी चित्रकला को अगर देखेंगे कि यह बिहार की ऐतिहासिक, सामाजिक, सांस्कृतिक विरासत की एक अनमोल धरोहर है जो कि प्राचीन काल से विकसित एक चित्र कला है |
मधुबनी चित्रकला का इतिहास क्या है (madhubani painting ka itihaas)
इस मिथिला पेंटिंग का प्रारम्भ राजा जनक के समय में हुआ था, जब राजा जनक ने राम-सीता के विवाह के अवसर पर महिलाओं से चित्रों की रचना कराई थी।
इस चित्रकला को मिथिला क्षेत्र के कई गांवों में महिलाएं घर के दीवारों पर बनाती थीं। इस कला में स्थानिय रंग और प्राकृतिक दृश्यों का महत्व होता है, और ये महिलाओं की परंपरा और संस्कृति को प्रदर्शित करती है।
इस चित्रकला के प्रमाणिक साक्ष्यों के संबंधों में अगर हम बात करें तो इस चित्रकला का पहला वर्णन श्रृंगार रस के कवि विद्यापति का नाम आप सभी जानते हैं
सबसे पहले उसने इसका वर्णन किया है यह विद्यापति की कविताओं में विद्यापति की एक रचना है कीर्ति पताका इसी कीर्ति पताका में सबसे पहले इसका वर्णन इसका साक्ष्य प्राप्त होता है
कि ऐसी कोई चित्र कला है जिसको मधुबनी चित्रकला के नाम से संबोधित किया गया जाना गया
इस चित्र कला को देखेंगे तो अपने अंदर दोस्तों बहुत ढेर सारी विशेषताओं को लेकर के बैठी हुई है सबसे पहले अगर देखा जाए इसकी सबसे बड़ी विशेषता यह है कि यह पूरी तरह से प्राकृतिक चित्रकला का उदाहरण है
इसमें अधिकतर प्राकृतिक रंगों का ही प्रयोग किया जाता है अमूमन चित्रकला की गतिविधियों आप देखेंगे तो हाई फाई लोग ब्रश या कलर्स का यूज करते हैं लेकिन इसमें प्राकृतिक आवरण प्राकृतिक रंग और हाथों से ही दोस्तों हाथ की अंगुलियों से ही यह चित्र कला हो जाती है
हां इसमें कभी कबार दोस्तों ब्रश के तौर पर अगर देखेंगे तो मुझ का कुझ बनाकर के से पेंटिंग यानी चित्रकारी करी जाती है यह मधुबनी चित्रकला की दोस्तों सबसे बड़ी विशेषता होती यही वजह है कि यह जनमानस के रग रग में है
जिसमें तो दोस्तों इसमें अधिकतर अगर देखेंगे तो मधुबनी चित्रकला में रंग बिरंगे रंगों का प्रयोग होता है जिसमें अगर देखेंगे तो हरे रंग का पीले रंग का लाल रंग का नीला काला की या नारंगी बैगनी रंग है जो इस चित्रकला में दोस्तों सबसे अधिक प्रयोग किए जाते हैं
इस चित्रकला के चित्रकारी में इन विविध रंगों का प्रयोग सबसे अधिक होता है और ध्यान इस बात का रखा जाता है कि जो भी रंग हो वह क्या हो प्राकृतिक हो
वह सभी रंग क्या हो प्राकृतिक तरीके से बनाए जाते हैं यह चित्र कला चित्रकला को अगर देखा जाए तो दोस्तों यह जो मधुबनी चित्रकला है इसको तीन भागों में डिवाइड किया जाता है
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मधुबनी चित्रकला के प्रकार
मधुबनी चित्रकला के जो प्रकार होते हैं वो तीन होते हैं एक तो भित्तिचित्र होता है एक रिपन चित्र होता है और एक पट्ट चित्र होता है हालांकि दोस्तों इस चित्रकला की शुरुआत में अगर देखेंगे तो इसमें सबसे अधिक भित्तिचित्र ही जनरेट किए जाते थे यानी भित्ति चित्र ही बनाए जाते थे
बाद में दोस्तों अपनी सुविधा अनुसार अपनी सोच के अनुसार लोगों ने इसके अलग अलग स्वरूप बनाने प्रारंभ किए जिसमें अरिपन चित्र तो अरिपन चित्र भी इसका प्राचीनतम ही प्रमाण होता है फिर आगे चलकर के पट्ट चित्र जो कपड़े पर बनाया जाता है यह पट्ट चित्र बिहार के साथ साथ दोस्तों नेपाल राष्ट्र में भी इसका प्रचलन फैला हुआ है
इसमें दोस्तों जो भित्तिचित्र हम लोग देखते हैं ये इस चित्रकला की सबसे बड़ी विशेषता है ये इसका सबसे बड़ा समूह होता है और यही इसमें सबसे ज्यादा लोकप्रिय है जो भित्ति चित्र कला इसके अंतर्गत बनाई जाती है इस भित्ति चित्र कला को भी आगे तीन भागों में बांटकर के देखते हैं इसके तीन रूपों में अगर देखेंगे
जो की भित्त चित्र है इसके अंतर्गत इसमें इसमें से इसका एक स्वरूप होता है गोसानी घर की सजावट क्या होती है वह गोसानी घर की सजावट तो मधुबनी भित्ति चित्र कला के अंतर्गत यह धार्मिक महत्व लेकर के आती है
इसका इसके अंतर्गत दोस्तों धार्मिक आवरण का प्रदर्शन किया जाता है जो धार्मिक देवी देवता हैं उनका प्रदर्शन होता है जैसे शिव और पार्वती हो गए राधाकृष्ण हो गए सीता राम हो गए देवी दुर्गा का प्रतिबिम्ब इसके माध्यम से चित्रित किया जाता है गोसानी घर की सजावट होती है
इसके अलावा भित्ति चित्र में जो दूसरा स्वरूप होता है वह कहलाता है कोहबर घर की सजावट कोहबर घर की सजावट दोस्तों यह बहुत ही लोकप्रिय होता यह कोहबर घर की सजावट जो होती है अधिकतर यह दोस्तों घर के अंदर करी जाती है और यह सजावट सामान्यतया अगर देखेंगे तो शादी विवाह के समय देखने को आती है
जब नव दंपत्ति शादी विवाह के बंधन में बंध कर के नए जीवन में प्रवेश करने के लिए होता है तो उसके कुछ सामाजिक संकेतों कुछ सामाजिक उत्तरदायित्वों के निर्वहन के लिए कोहबर घर की सजावट होती है घर के अंदर होती है अमूमन इसमें अगर देखेंगे तो कामुक चित्र बनाए जाते हैं
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इसी कोहबर घर की सजावट की तरह दोस्तों एक कोहबर घर की कोनिया सजावट होती है जो कि भित्ति चित्र का तीसरा स्वरूप है यह निकलकर के आता है तो यह कोहबर घर की कोनिया सजावट यह भी सामान्यतया जो है वह शादी विवाह के अवसर पर ही बनाई जाती है और यह तो एक प्रकार का सामाजिक मैसेज देता है संदेश देता है जो नव दंपत्ति होता है
अपना जीवन शुरू करने के लिए जो इस क्षेत्र में आगे बढ़ रहा है उसके लिए यह कई प्रकार के संकेतों का प्रतीक बन करके उसको प्रेरित करता है
उसको मैसेज देता है और उसको जीवन के यथार्थ का प्रतिबिम्ब परिचित कराता है तो ये तीन समूहों हो जाते हैं इसमें दोस्तों कोहबर घर की जो कोनिया सजावट होती है इसमें पशु पक्षियों से रिलेटेड कुछ संकेतांक होते हैं जिनका अलग अलग महत्व होता है
मधुबनी चित्रकला के कुछ प्रतीक चिन्ह होते हैं
- केला – यह मांसलता के प्रतीक के तौर पर इसमें देखा जाता है
- मछली – कोहबर घर में निकलकर आती है जिसमें यह मछली होती है यह कामोत्तेजना के प्रतीक के तौर पर इस को देखा जाता है
- सिंह है यानी शेर – शक्ति के प्रतीक के रूप में होता है
- सुग्गा यानी तोता जिसको बोलते हैं – ये काम वाह के के प्रति के तौर पर यहां पर देखा जाता है
- हाथी एवं घोड़ा – ये ऐश्वर्य के प्रतीक के तौर पर जाना जाता है
- बांस – जो की वंशवृद्धि का प्रति होता है
- कमल का पत्ता – स्त्री के प्रजननिद्रिया के प्रतीक के तौर पर इसका इस्तेमाल होता है
- हंस एवं मयूर – शांति के प्रतीक के तौर पर इसमें प्रदर्शित किए गए हैं
- सूर्य एवं चंद्रमा – दीर्घ जीवन के प्रति के के रूप में इसका प्रयोग किए जाते हैं
इनके माध्यम से सामाजिक जीवन के विविध संकेत दिए जा रहे हैं और इसका समाज में व्यापक प्रभाव है इसके अलावा मधुबनी चित्रकला का जो दूसरा स्वरूप बनता है इसको बोलते हैं अरिपन
जैसे रंगोली चित्रकला यानी रंगोली का आप प्रयोग जानते हैं तो यह अरिपन कुछ इसी तरह होता है इसको भूमि चित्रण भी कहते हैं इसमें क्या कहते हैं इसको भूमि चित्रण भी कहते हैं सामान्यतः अगर देखेंगे तो इसके अंतर्गत उसको आंगन या चौखट पर इसके अंतर्गत चित्रण किया जाता है
यह पांच श्रेणियों के इसमें भिन्न भिन्न चित्र बनाए जाते हैं जो प्रतिबिम्बों के तौर पर इसमें लिए जाते
हालांकि इसमें कोई लिमिटेशन नहीं है आप अपनी सोच से कुछ नया भी कर सकते हैं लेकिन अमूमन इसमें 5 प्रतिबिम्ब कहा सामान्यतः प्रयोग किया जाता है
- मनुष्य और पशु पशु पक्षियों के चित्र बनाने की बात होती है
- वृक्ष, फल – फूल के चित्र बनाए जाते हैं
- तांत्रिक प्रतीकों के दोस्तों ने बनाए जाते हैं
- देवी देवताओं के चित्र बनाए जाते हैं
- स्वास्तिक द्वीप चित्र इसमें बनाए जाते हैं
तो स्वास्तिक द्वीप जो होता है दीपक जो दोस्तों ये इसमें बनाया जाता है इसके लिए विशेष अवसर जैसे कोई अनुष्ठान है घर परिवार में कोई व्रत है कोई त्योहार है दीवाली है छठ मैया व्रत रहता है
तो ऐसी दशा में दोस्तों ये अरिपन चित्र का विशेष महत्व रहता है कोई धार्मिक अवसर चल रहा है तो उन सबमें इसके द्वारा चित्रकारी करी जाती है जिसको अरिपन चित्रकला बोलते हैं
इसके बाद मधुबनी चित्रकला का तीसरा स्वरूप हमने आपको बताया था यह चित्र है पट्ट चित्र ये छोटे छोटे कपड़ों पर या कागज पर इसमें चित्रकारी करी जाती है और यह चित्र कला भारत के बिहार के साथ साथ अगर देखेंगे तो नेपाल में भी इसका प्रचलन है
तो यह मधुबनी चित्रकला के तीन प्रकारों का यह तीसरा स्वरूप होता है मधुबनी चित्रकला की चर्चा इन दिनों दोस्तों पूरे भारत के साथ साथ अंतरराष्ट्रीय स्तर पर है
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भारत में दोस्तो मधुबनी चित्रकला के प्रतीक कहां कहां पर आपको स्पष्ट रूप से दिखाई देंगे जो इसके महत्व को प्रदर्शित करते हैं
- जयंती जनता एक्सप्रेस के डिब्बे हैं यानि ट्रेन है उसके डिब्बे पर इसका चित्रण किया गया है
- दिल्ली संसद भवन का जो प्रवेश द्वार है वहां पर भी आपको मधुबनी चित्रकला दिखाई देंगी
- पटना रेलवे स्टेशन पर आपको मधुबनी मधुबनी चित्रकला
- पटना गंगा रिवर फ्रंट का जो निर्माण हो रहा है वहां पर भी मधुबनी चित्रकला दिखाई देगी
- मधुबनी रेलवे स्टेशन पर
दोस्तों जब आप यात्रा करेंगे तो यहां आपको मधुबनी चित्रकला राष्ट्रीय स्तर पर प्रतिबिम्ब के तौर पर बिहार का नेतृत्व करते हुए आपको मिल जाएगी
बिहार में शायद ही ऐसा कोई फेस्ट हो जिसमे आपको मधुबनी यानि के मिथला पेटिंग देखने को ना मिले ऐसा ही एक बड़ा मेला हरसाल फरीदाबाद के सूरजकुंड में एक बार मेला लगता है जिसे सूरजकुंड मेला के नाम से दुनिया जानती है यहाँ पर भी मिथला की ये कलाकारी अपना रंग भिखेर रही है
अन्तः में
दोस्तों मधुबनी चित्रकला (madhubani painting) बिहार की एक ऐसी विरासत है जो बिहार के लोगों को हर क्षण हर समय खुश और प्रसन्न रखने का एक बहाना दे देती है जिससे बिहार के लोग अपने हर मुसीबतों हर परेशानियों को भूलकर के इस सामाजिक जीवन में लोग रम बस जाते हैं और हर परिस्थिति में अपने जीवन का आनंद लेते हैं
एक झोपडी पर बनाई गई पेंटिंग झोपडी के दीवाल पर ये किसी को भी दूर से ही अपनी ओर आकर्षित कर लेगी और यह आपको जो उसको परम संतोष परम शांति की प्राप्ति कराने में सक्षम है यह चित्रकला बिहार की विशेषता बिहार की सबसे बड़ी खासियत है
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