जानिए फड़ चित्रकला क्या होती है

नमस्कार दोस्तों आपका स्वागत है एक बार फिर से हमारे adiwasistatus website पर इस फड़ चित्रकला क्या है phad painting kya kise kehte hai इस पोस्ट के माध्यम से हम जानेंगे भी फड़ चित्रकला क्या है ओर यह  किस राज्य की चित्रकारी है।

फड़ चित्रकला क्या होती हैं
(phad painting kya hai)

राजस्थान के भीलवाड़ा शहर जिसे वस्त्र नगरी भी कहा जाता है इसमें कपड़े की पृष्ठभूमि पर लोग नारायण देवता  एवं पाबूजी आदि के जीवन पर आधारित एवं उनकी शौर्य गाथाओं पर बनाए जाने वाले पारंपरिक अनुष्ठानिक कुंडलित चित्र, फड़ चित्रकला ( phad painting ) कहलाती हैं

फड़ चित्रकला शैली केवल एक फोक पेंटिंग नहीं माना जाता है यह  अपने आप में देवों का स्वरूप है  इसलिए इसे  बनाने वाले चित्रकार और बेचने वाले भोपा, दोनों ही इसे पवित्र कला मानते हैं | भोपा पूरी फंड को साक्षात देवता का स्वरूप मानते हैं | वे लोग इसे प्रतिदिन धूप अगरबत्ती लगाते हैं और इस phad painting को  घर में पवित्र स्थान पर रखते हैं |  वे एक बार इस पेंटिंग को खोलने के बाद बिना बाँचे  बंद नहीं करते | फाड़  चित्रकला  के पुराने हो जाने पर उसे इधर उधर नहीं फेंका जाता बल्कि पुष्कर ले जाकर पवित्र सरोवर में विसर्जित किया जाता है | 

फड़ चित्रकला शैली बनाने की विधि (How to make Phad painting style)

परंपरागत रूप से फड़ चित्रकला बनाने के लिए हाथ से बुना मोटा कपड़ा जिसे रेजा या रेजी भी कहा जाता है इसका इस्तेमाल किया जाता है | आजकल के समय में मेल का बना पतला सूती कपड़ा, कोसा एवं सिल्क  का कपड़ा भी प्रयोग में लाया जाता है | 

सबसे पहले फंड का आधार तैयार किया जाता है इसके लिए कपड़े को वांछित माप में काट लिया जाता है | इसके बाद इसे बिछाकर इस पर चावल का मांड लगाया जाता है | सूखने पर माड़ लगे लेंगे कपड़े की सतह को  चिकने पत्थर से घोटा जाता है |  

घुटाई करने से माड़, कपड़े में बैठ जाता है | इसके बाद कपड़ा एकसार और चिकना हो जाता है | उसकी रंग पकड़ने की क्षमता बढ़ जाती है और रंग उसकी सतह पर फैलता नहीं है | 

अनुष्ठानिक फंड बनाने के लिए एक निश्चित विधि विधान है कपड़े की सतह तैयार हो जाने पर चित्रकार द्वारा  उस पर किसी कुंवारी कन्या से पीले कच्चे रंग से चित्रांकन की शुरुआत कराई जाती है |  इसके बाद चित्रकार  इसी रंग से फंड का समूचा रेखांकन करता है | अब रेखांकित आकृतियों के चेहरे और शरीर में केसरिया रंग भरा जाता है |  इसके बाद आवश्यकतानुसार चित्र में के क्रमशः पीला, हरा,कत्थई, नीला आदि रंग भर कर पूरी phad painting तैयार की जाती है | 

विभिन्न चरित्रों में रंगों का समायोजन पूर्णतः शास्त्रसम्मत होता है | देवी पात्रों के चेहरे लाल, राक्षस एवं पिशाचों के चेहरे काले, सात्विक पत्रों के चेहरे सफेद नीले बनाए जाते हैं |  

वैभवशाली, संपन्न और विलासी पात्रों में भी रंग विविधता रखी जाती है |  phad painting  की एक अन्य विशेषता यह है कि इसमें विभिन्न आकृतियों का निरूपण उसके मेहनत के अनुसार किया जाता है अधिक महत्व वाले चरित्र बड़े और प्रमुखता से तथा पूर्ण विवरण सहित अंकित किए जाते हैं | 

जबकि सामान चरित्रों को छोटा रखा जाता है जैसे पाबूजी की phad art में पाबूजी उनके सरदार और उनकी घोड़ी को सर्वाधिक महत्व दिया जाता है |  उन्हें आकार में बड़ा तथा ओजपूर्ण बनाया जाता है | 

आजकल के आधुनिक समय में तो रेडीमेड रंगों एवं ब्रशों का प्रयोग भी होने लगा है परन्तु phad chitrakar परंपरागत रंग स्वयं ही अपने लिए तैयार करते थे | फड़ चित्र  में सात रंगों का प्रयोग किया जाता है | 

यह रंग प्राकृतिक संसाधनों से प्राप्त किए जाते हैं जैसे नारंगी रंग तेवरी या सिंदूर से, पीला रंग हरताल से, हरा रंग जंगलो से, भूरा रंग गेरू या हरिमिच से, लाल रंग हींगलू से, नीला रंग नील से और काला रंग काजल से बनाया जाता है | इन रंगो को पक्का करने के लिए उसमें खेजड़ी वृक्ष का गोंद मिलाया जाता है | 

फड़ चित्रकला के बारे में कुछ महत्वपूर्ण बातें 

  • कल्याण जोशी भास्कर के लिए बनाई विशेष कोरोना कथा | 
  • फड़ चित्र का उदय मेवाड़ राज्य में 700 वर्ष पूर्व का माना जाता है |  
  • कपड़े पर प्रचलित लोक गाथा का चित्रण को पुरातन पट्ट चित्रण कहते हैं | 
  • इस पुरातन पट्ट चित्त को राजस्थानी भाषा में फड़ कहते हैं | 
  • फड़ चित्रण में एक साथ लोक नाटक, गायन, वादन, मौखिक साहित्यक, चित्रकला तथा लोक धर्म का अनूठा मिश्रण देखने को मिलता है | 
  • फंड वाचन भोपे करते हैं | 
  • फड़ चित्र  के माध्यम से किसी लोक देवताओं व लोकनायकों की कथा जो उनके जीवन में घटित घटनाऐ  हुई है,इनको चिन्हित किया जाता है | जिनमें प्रमुख हैं पाबूजी, रामदेव जी, देव नारायण जी, भगवान कृष्ण जी, एवं दुर्गा माता | 
  • फड़ चित्र की लंबाई अधिक लेकिन चौड़ाई कम होती है |
  • राजस्थान राज्य में स्थित भीलवाड़ा जिले का शाहपुरा शहर फड़ चित्रकला के लिए विश्व प्रसिद्ध है | श्री लाल जोशी ने इस चित्रकला को राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ख्याति दिलवाई | 
  • श्री दुर्गा लाल को 1967  में व शांतिलाल को 1993 में राष्ट्रपती पदक से सम्मानित किया गया | 
  • राजस्थान की फेमस kalyan joshi phad painting करने वाले चित्रकार फड़ चित्रकारों के वंशज है | 

कुछ महत्वपूर्ण राजस्तान की फड़ (Important phad painting of rajasthan )

पाबूजी की फड़ (pabuji ki phad)

यह फड़, राजस्थान की सर्वाधिक लोकप्रिय फड़ है |  इसकी लंबाई 15 से 20 हाथ तक की होती है |  इसमें मारवाड़ के कोलू गांव में जन्मे पाबूजी की जीवन गाथा चित्रित की जाती है | 

लक्ष्मण का अवतार माने जाने वाले पाबूजी का जीवन काल विक्रम संवत् 1313 से 1337 का माना जाता है |  इन्हें रबारी अथवा राइका ऊंट पालक समुदाय के लोग पूजते हैं |

राजस्थान में सर्वप्रथम ऊँट लाने का श्रेय पाबूजी को ही है |  इस फड़ की प्रस्तुति भोपा एवं भोपी द्वारा रावणहत्था वाद्य बजाते हुए की जाती है | 

गोगाजी की फड़ (gogaji ki phad)

गोगाजी ने जाहर वीर गोगा भी कहा जाता है |  राजस्थान के लोकप्रिय लोक देवता है, इन्हें पीर के रूप में पूजा जाता है |  इन्हें सर्पों का देव  भी कहा जाता है क्योंकि ये सर्प दंश से रक्षा करते हैं | 

विश्वास किया जाता है कि इनका जन्म गुरु गोरखनाथ नाथ के आशीर्वाद से नवीं शताब्दी में हुआ था | इन्हें गायों की सेवा और रक्षा के लिए माना जाता है | राजस्थान एवं गुजरात के रेबरी समुदाय में इनकी बहुत मान्यता है

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देवनारायण जी की फड़ (devnarayan  ki phad)

देवनारायण, राजस्थान के पूज्यनीय लोक देवता है |  जिन्हें विष्णु का अवतार माना जाता है |  ऐतिहासिक रूप से उनके जीवन काल के सम्बन्ध में मतभेद है | कुछ विद्वान उनका जीवन काल विक्रम 1200 से 1400 के मध्य मानते हैं | फड़ चित्रों की दृष्टि से यह सबसे प्राचीन फड़ है तथा इसकी माप  भी सबसे बड़ी होती है | इसका वाचन गुर्जर व कामड जाति के भोपा द्वारा जंतर वाद्ययंत्र पर इस फड़ का वाचन किया जाता है | 

इसकी लंबाई 20  हाथ से लेकर 25  हाथ तक होती है | इसमें देवनारायण (बगड़ावत) की कथा का चित्रांकन किया जाता है | इस फड़ की प्रस्तुति दो भोपा, जंतर वाद्य बजाते हुए करते हैं | यह भोपे गूजर, राजपूत तथा बलाई जाति के होते हैं | इस फड़ के यजमान गुज्जर समुदाय के लोग होते हैं | इसमें सर्प का चित्रण होता है इनकी घोड़ी लीला घर को हरे रंग से चित्रित किया जाता है | देवनारायण जी की फड़ पर 1992 में भारत सरकार ने डाक टिकट जारी किया है |

रामदेव जी की फड़ (ramdevji ki phad)

कहते हैं कि रामदेव जी की फड़ का प्रचलन पाबूजी की फड के बाद हुआ और यह पहले हाड़ौती क्षेत्र में प्रचलित हुई वहां से हैं मेवाड़ और मारवाड़ तक फैली रामदेव राजस्थान के महत्वपूर्ण लोक  देवता है जिन्हें विष्णु का अवतार माना जाता है | इनका जीवनकाल सन 1352 से 1385 तक माना जाता है | 

इनकी मान्यता यहां कि मेघवाल संदर्भ में बहुत अधिक है यह फड़ चमार, बलाई, भांभी  और डेढ़ जाति के लोग बंचावते है | यह फड़  भोपा-भोपीन इन दोनों मिलकर बांचते हैं और साथ में रावणहत्था भी बजाया जाता है | 

माताजी की फड़ (mataji ki phad)

इसे भैंसासुर की फंड भी कहा जाता है | इस फंड का प्रचलन वागरी समुदाय में है | इस पर का वाचन नहीं होता है | इसे घर में रखा जाता है |

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अमिताभ जी की फड़  (amitabhji ki phad)

भारतीय सिनेमा के सुपर स्टार अमिताभ बच्चन जी की फड़ को मारवाड़ के भोपा रामलाल एवं भोपी पसी ने एक डॉक्यूमेंट्री में लोक देवता के रूप में प्रदर्शित किया गया है |  

फड़ चित्र लोक गाथाओं का चित्रण है जिसे भोपा एवं भोपी वह भी द्वारा वाद्य यंत्र द्वारा कहानी को गाकर बताया जाता है | शांति लाल जोशी को शाहपुरा शैली की पर चित्रकारी के लिए कई सम्मान मिल चुके हैं वर्ष 1991 में राष्ट्रपति डॉ शंकर दयाल शर्मा के हाथों पुरस्कृत किया गया है | इनको कालसी की उपाधि से भी सम्मानित किया गया है | 

आखिर में

दोस्तों में आशा करती हु आपको फड़ चित्रकला क्या है यह पोस्ट आपके लिए बहुत हेल्पफुल रहा होगा अगर आपने इस पोस्ट के माध्यम से कुछ नया जाना हो या आपको ये जानकारी पसंद आई हो तो पोस्ट को अपने दोस्तों को   शेयर करे और कमेंट करना न भूलें और बने रहिए हमारे साथ । धन्यवाद जय जोहार जय आदिवासी 

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