जोहर दोस्तों आज हम जानेंगे झारखण्ड के महान स्वतंत्रता सेनानी नीलाम्बर एवं पीताम्बर के बारे में ( nilamber pitamber biography in hindi ) हम जानेंगे उनके इतिहास के बारे में (nilamber pitamber history in hindi ) के आखिर अंग्रेजो ने उन्हें किस तरह से पकड़ा और फांसी पर लटका दिया |
साल (1857) के विद्रोह को भारत की आजादी का प्रथम स्वतंत्रता संग्राम कहा जाता है इतिहास हमें बताता है कि उस समय ब्रिटिश सरकार में जो भारतीय मूल के सैनिक हुआ करते थे उन्हें अंग्रेज जो कारतूज देते थे उसमें गाय एवं सूअर की चर्बी हुवा करती थी | इन सैनिको को करतूज को बन्दुक में डालने से पहले अपने दातो से खोलना पड़ता था |
जब यह खबर ब्रिटिश सरकार में कार्यरत हिंदू ओर मुसलमान सैनिकों तक पहुंचती है तो सैनिक आग बबूला हो उठे इस स्वत्रंता संग्राम में सर्वप्रथम मंगल पांडे ने विद्रोह का बिगुल फूंका था | देश की जनता अंग्रेजों के अत्याचारों से पहले ही आक्रोशित थी, लेकिन मंगल पांडे के इस विद्रोह से पूरा मुल्क उद्वेलित हो उठता है |
इस प्रथम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की आग जब झारखंड की धरती तक पहुंचती है देश का सबसे अधिक प्रभाव पलामू में होता है पलामू उन दिनों तीन जिलों में बटा हुआ था लातेहार, गढ़वा एवं पलामू और इन्हीं तीनों जिलों में से गढ़वा जिले में अट्ठारह सौ सत्तावन (1857) की लड़ाई में झारखंड की तरफ से ऐतिहासिक भूमिका निभाने वाले दो भाई नीलाम्बर एवं पीताम्बर का जन्म होता है |
नीलाम्बर एवं पीताम्बर जरुरी जानकारी
जन्म कहा हुवा | चेमो-सनया (वर्तमान गढ़वा जिला, झारखण्ड) |
मृत्यु | लेस्लीगंज, पलामू ( झारखण्ड ) |
आन्दोलन | 1857 का स्वतंत्रता आंदोलन |
राष्ट्रीयता | भारतीय |
जनजाति | खरवार |
कबीला | भोक्ता |
पिता का नाम | चेमो सिंग |
नीलाम्बर पीताम्बर जयंती | 10 जनवरी 1823 |
नीलाम्बर और पीताम्बर के सम्मान में बने कुछ जरुरी स्थान एवं योजना
- झारखण्ड में बना है विश्विधालय नीलाम्बर-पीताम्बर विश्वविद्यालय, मेदिनीनगर, पलामू, झारखण्ड (Nilamber Pitamber University)
- कई स्थानीय पार्क बनाये है
- नीलाम्बर-पीताम्बर की भव्य मुर्तिया बनायी गयी है जिसे वहा के लोग आज भी पूजते है
- साल 2009 में नीलाम्बर ओर पीताम्बर के नाम पर झारखण्ड सरकार ने मेदिनीनगर डालटेनगंज में नीलाम्बर-पीताम्बर विश्वविद्यालय की स्थापना की|
- नीलाम्बर पीताम्बर जल समृद्धि योजना (Nilamber Pitamber Jal Samriddhi Yojana)
नीलाम्बर ओर पीताम्बर की फोटो ( nilamber pitamber photo)
दोनों भाई नीलाम्बर पीताम्बर का जीवन (Nilamber Pitamber in hindi)
नीलांबर का अर्थ नीला वस्त्र पहननेवाला और पीताम्बर का अर्थ पीला वस्त्र पहननेवाला होता है
नीलाम्बर एवं पीताम्बर का जन्म गढ़वा जिले में चेमो सनेया गांव में खरवार जनजाति के भोगता कबीले एक गरीब परिवार में हुआ था उनके पिता का नाम चेमो सिंग था जो एक जागीरदार थे
नीलाम्बर एवं पीताम्बर की जयंती हर साल विश्व हिन्दी दिवस के दिन यानि के 10 जनवरी को मनाया जाता है |
खरवार जाति हमेशा से ही अपने जमीन जागीरों को लेकर के उग्र रहा करती थी अपनी जमीन के लिए मरना या मारना उनके लिए आम बात थी खरवारो की इसी रवैये को देखकर उन्हें शांत रखने के लिए अंग्रेजों ने उन्हें जागीर दे रखी थी नीलाम्बर एवं पीताम्बर के पिता से चेमो सिंग का संबंध ब्रिटिश सरकार के साथ हमेशा कड़वाहट भरा रहा था वह जानते थे कि ब्रिटिश सरकार हमारी जमीन को हड़पने और झारखंड वासियों का शोषण करने के लिए आई है |
भले ही खरवार जाति को उग्र स्वभाव के डर से वह जागीरें दे रखी हो लेकिन मौका मिलते ही उन्हें छीनने का भी प्रयास करेगी चेमो सिंग के दोनों बेटे नीलांबर एवं पीतांबर में से नीलांबर बड़े थे अपने पिता की तरह वह भी ब्रिटिश सरकार से नफरत करते थे
पिता चेमो सिंग ने नीलाम्बर को हमेशा यही कहा था कि बेटा नीलाम्बर इन ब्रिटिश अफसरों का कभी भी भरोसा मत करना इन्हें हमारी जमीनों से खदेड़ देना हमारे गांव वालों को हमारे राज्य के वासियों को इनके गुलामी से आजाद कर वाना
पिता के इन्हीं बातों को सुनते हुए धीरे धीरे नीलाम्बर बड़े होते उन दिनों अट्ठारह सौ सत्तावन (1857) के विद्रोह से पहले कोल विद्रोह हुआ था जिसमें नीलाम्बर एवं पीताम्बर के पिता चेमो सिंग ने एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी
इस कोल विद्रोह में नीलाम्बर के पिता से में चेमो सिंग को अंग्रेज पकड़ के जेल में डाल देते हैं जहां पर उनकी मौत हो जाती है पिता की मौत से नीलाम्बर अंग्रेजों के खिलाफ और ज्यादा क्रोधित हो जाते हैं
लेकिन उम्र कम थी तो क्या कर सकते थे पिता की मौत के बाद छोटे भाई पीताम्बर की देख रेख बड़े भाई नीलाम्बर करने लगते और अपने पिता के द्वारा सीखी गई हर एक बात को अपने छोटे भाई पीताम्बर को सिखाने लगते हैं
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स्वतंत्रता संग्राम में अपना योगदान
(nilamber pitamber freedom fighter in jharkhand)
समय के साथ धीरे धीरे दोनों भाई बड़े होते हैं इसी बीच उन्होंने तुरंत बाद ही कुश्ती एवं गुरिल्ला युद्ध नीति में महारत हासिल कर लेते हैं
दोनों भाइयो के अंदर कमाल का प्रेम और कमाल की देशभक्ति की भावना थी बेहद कम उम्र में दोनों भाइयों ने मिलकर एक क्रांतिकारी युवाओं के दल का गठन किया जिसका उद्देश्य अंग्रेजो द्वारा होने वाले शोषण से राज्य के लोगों को बचाना था इस दल के लोग अलग अलग क्षेत्रों में जाकर उन क्षेत्रों के लोगों की समस्याओं को सुनते और किस तरह से अंग्रेज उन पर अत्याचार करते हैं उनका समाधान ढूंढने का प्रयास करते हैं
इसी बीच सन अट्ठारह सौ सत्तावन (1857) के विद्रोह के समय छोटा भाई पीताम्बर रांची पहुंचे हुए थे उन्होंने आंदोलन को बहुत करीब से देखा और पलामू लौटकर अपने बड़े भाई नीलाम्बर को इसकी जानकारी दी
नीलाम्बर एवं पीताम्बर ने अपने अन्य साथियों के साथ मिलकर की देश की इस भयावह स्थिति के ऊपर चर्चा किया विचार विमर्श किया और अट्ठारह सौ सत्तावन (1857) के विद्रोह में शामिल होने का ठान लिया एवं अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह की योजना तैयार करने लगे उन्होंने स्थानीय खरवार, चेरो तथा भोक्ता समुदाय के लोगों को बड़े पैमाने पर एकत्रित किया और झारखंड की तरफ से अट्ठारह सौ सत्तावन (1857) के विद्रोह का शंखनाद कर दिया
इक्कीस अक्टूबर अट्ठारह सौ सत्तावन (1857) को दोनों भाई के नेतृत्व में चेनपुर, शाहपुर एवं लेस्ली गंदे स्थित ब्रिटिश कैम्प पर आक्रमण कर दिया गया सैकड़ों ब्रिटिश सेना को मौत के घाट उतार दिया गया इसके बाद राज धारा कोयला कंपनी पर हमला कर उस पर भी कब्जा कर लिया गया नीलाम्बर एवं पीताम्बर के ऊर्जा एवं आक्रोश को देखते हुए अन्य लोग उनका साथ देने के लिए आने लगे
रांची के प्रमुख क्रांतिकारी ठाकुर विश्वनाथ शाहदेव, पांडे गणपत राय और बिहार के कुंवर सिंग भी इस आंदोलन के साथ जुड़ गए क्रांतिकारियों के दल को देख डाल्टन मद्रास इन्फेंट्री के 140 सैनिक ने रामगढ़ घुड़सवार दल इत्यादि सोलह जनवरी अट्ठारह सौ अट्ठावन को पलामू आगए
गढ़वा से बात करके पलामू जाने पर एक बहुत बड़ी जीत लोगों को अंग्रेजों ने इस आंदोलन को दबाने के लिए एड़ी चोटी का जोर लगा दिया लेकिन निलंबन पीताम्बर के नेतृत्व में क्रांतिकारियों के दल के सामने वे लोग टिक नहीं सके
अंत में अंग्रेजों ने एक योजना बनाई है कि अगर एक जगह पर वार करेंगे तो हम मारे जाएंगे लेकिन एक साथ एक ही समय पर अगर कई जगहों पर वार करे तो यह स्वतंत्रता सेनानी अपने लोगों को बचाने के लिए कहां कहां जाएंगे अंग्रेजों की यही योजना नीलाम्बर सितंबर के दल को कमजोर कर देती है
अंग्रेज एक साथ कई इलाकों में हमला कर देते हैं बारह फरवरी अट्ठारह सौ अट्ठावन को नीलाम्बर पीताम्बर के घर समेत गावों को लूट लिया जाता है घरों को जला दिया जाता है जागिरे जब्त कर ली जाती है इसके बाद अंग्रेज सिपाही लोहार दागा की तरफ बढ़ने लगते हैं फिर तुरंत पलामू की तरफ बढ़ने लगते है
एक के बाद एक हमले के साथ नीलाम्बर एवं पीताम्बर की टुकड़ी परेशान हो जाते हैं लगातार चौतरफा हमले से नीलांबर पीतांबर के सेना कमजोर हो जाती है अंग्रेजों ने एक एक करके नीलांबर पीताम्बर के साथियों को मारना शुरू कर दिया
विश्वनाथ शाहदेव एवं पांडे गणपत को पकड़कर के फांसी दे दिया गया दूसरी तरफ निलंबन और पीताम्बर में मनिका, हतरपुर, लातेहार, महुवा, ताड, छेसारी जैसे कई महत्वपूर्ण अंग्रेजी ठिकानों पर आक्रमण करके अंग्रेजी कानून व्यवस्था की धज्जियां उड़ा दीं
अंततः अंग्रेजों ने अपने सबसे प्रमुख हथियार डिवाइड एंड रूल की नीति अपनाई और खारवारो को बरगलाया खरवार डरकर के आंदोलन से अलग हो गए
चेरो समाज के भवानी बाशराय ने भी अंग्रेजों के आगे घुटने टेक दिए जिससे चेरो समाज के लोग भी आंदोलन से अलग हो गए धीरे धीरे नीलाम्बर और पीताम्बर अपनी छोटी सी सेना की टुकड़ी के साथ अकेले पड़ गए लेकिन उन्होंने हिम्मत नहीं हारी अपनी लड़ाई अपने युद्ध को जारी रखा अंग्रेजों ने अंतिम बार एक और चाल चली
उन्होंने स्वरक्षम माफी और विश्मरण की घोषणा की अर्थात तय सीमा तक के भीतर आत्मसमर्पण करने वाले विद्रोहियों को क्षमा करने की नीति थी अंग्रेजों के इस जाल में नीलाम्बर एवं पीताम्बर जा फसे और आत्म समर्पण कर दिया
लेस्ली की अदालत में विद्रोहियों पर लूट हत्या आगजनी इत्यादि आरोपों के लिए मुकदमा चलाया गया अंग्रेजी सरकार एक भी महत्वपूर्ण गवाह नहीं जुटा सके लेकिन उनके पास पैसा था धन था गवाह और सबूत खरीद लिए गए खरीदे गए सबूतों और गवाहों के आधार पर सजा निर्धारित कर दी गई और दोनों भाइयों को लेस्ली गंज ले जाया गया
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कैसे हुवी मृत्यु Nilamber Pitamber Death
28 मार्च अट्ठारह सौ उनसठ (1859) ईसवी को सरेआम लेस्ली में पहाड़ी के सामने एक आम के पेड़ में दोनों भाइयों को फांसी दे दिया गया यह फासी आम जनता के बीच दिया गया ताकि आम जनता उनकी हत्या को देखकर के कभी भी अंग्रेजी सरकार के खिलाफ विद्रोह करने की हिम्मत ना करें लेकिन यह झारखंड की धरती है साहब यहां वीरों के बलिदान को कर्ज को चुकाने हर बार एक नया मसीह का जन्म होता है
दोस्तों नीलाम्बर एवं पीताम्बर (Nilamber Pitamber) की तरह लोग कभी मरते नहीं वे हमेशा हमारे दिलों में अमर हो जाते हैं वे आज भी झारखंड के हवाओं में झारखंड के हर क्षेत्र में झारखंड की मिट्टी में नीलाम्बर एवं पीताम्बर की अमर आत्मा की खुशबू आज भी मौजूद है
में स्वर्गीय नीलाम्बर एवं पीताम्बर की परम पुण्य आत्मा को श्रद्धांजलि अर्पित करती हूं जय हिंद जय आदिवासी जय जोहर
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